माँ बगलामुखी कल्प विधान
श्री पञ्च मुखी वीर हनुमन्त कवच
विधि -विधान सहित
ॐ अस्य श्री पञ्च-मुख वीर-हनुमन्त कवच श्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि ,गायत्री छंद ,पञ्च मुखी श्री वीर हनुमान देवता,रां बीजं ,मं शक्ति,चंद्र कीलकं , पंचमुख्यान्तर्गत श्री हनुमन्त कृपा प्रसाद प्राप्तर्थ्य कवच पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर-न्यास
ॐ रां अंगुष्ठाभ्यां नमः , ॐ रीं तर्जनीभ्यां नमः ,ॐ रुं मध्यभ्यां नमः , ॐ रें अनामिकाभ्यां नमः ,ॐ रों कनिष्ठाभ्यां नमः ,ॐ रं करतल कर प्रस्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि शडांग न्यास
ॐ रां हृदयाय नमः , ॐ रीं शिरसे स्वाहा ,ॐ रुं शिखायै वषट , ॐ रें कवचाय हूँ , ॐ रौं नेत्रयाय वौषट , ॐ रः अस्त्राय फट्ट।
दिग्बन्ध
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ कं खं गं घँ डं चं छं जं झं त्रं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा ।( दशो दिशाओं में दृष्टिपात करते हुए अपने चारों और तीन चुटकी बजाए तथा अस्त्र मुद्रा निर्मित कर बाये हाथ की हथेली पर तीन ताली बजाये।
ध्यान
वंदे वानर नरसिंह खग्राट क्रोडाश्ववक्तृनविंतं ।
दिव्यालङ्क्रणं त्रिपंच नयनं दैदीप्यमानं ऋचा।
हस्ताब्जैरसिखेट पुस्तकं सुधा कुम्भ अंगशादीन्हलान्।
खटवाडगं फणिभूरूहं दश भुजं सर्वारिदपार्पहम ।
पञ्च वक्त्र महा भीम त्रिपंच नयनैरयुतम्।
दशभिर्बाहुभिरयुक्तं सर्व कामार्थ सिद्धिदम।।
पूर्व दिशा को मुख -
पूर्वे तु वानर वक्त्रं कोटि सूर्य समप्रभम ।
द्रष्टा कराल वदनं भृकुटि कुटिलेक्षणं ।।
दक्षिण दिशा को मुख -
अस्यैव दक्षिणे वक्त्र नारसिंघम महाद्भुतं।
अत्युग्र तेजो जवलितं भीसणं भय नाशनम।।
पश्चिम दिशा की मुख-
पश्चिमे गरुड़ वक्त्रं व्रज-तुण्ड महा-बलम
सर्व-नाग-प्रश्मन्न विष क्रंत्तनम ।।
उतर दिशा को मुख -
उत्तरे सुकर वक्त्रं कृष्णदित्य महोज्वलंम
पाताल सिद्धिद नृणाम ज्वर-रोगादि नाशनम ।।
उध्र्व दिशा को मुख -
उध्र्व हयानं घोरं दानवान्तकरं परम
येन वक्त्रेण विपेंद्र सर्व -विद्याविनिर्ययु ।।
खडंग त्रिशूलं खट्वांग पाशांकुश पर्वतम
खेटांगसिनीपुस्तम च सुधा कुम्भ कळं तथा
एतन्यायुद्ध जातानि धार्यन्तं भजमहे।
प्रेतासनोपविस्ठ तु दिव्याभरण भूषितं।
दिव्य मलाम्बर धरं दिव्य गन्धानुलेपनम् ।।
सर्वेश्वर्यमयं देवमनन्तं विश्वतो मुखम् ।
एवं ध्यायेत पञ्च मुखं सर्व काम फल प्रदम्।।
पंचास्यमचयुतमनेक विचित्र विर्यम् ।
श्री शंख चक्र रमणीय भुजाग्र देशम ।।
पिताम्बरं मुकुटं कुण्डलं नुपुरांगम ।
उदधैतिं कपि वरं हृदि भावयामि
चंद्रार्द्ध चरणावरबिंद युगलं कौपीन मौजी धरम।
नाभ्यां वैकटि सूत्र बद्ध वसनं यज्ञोपवीतं शुभम् ।।
हस्ताभ्यामवलमव्यम चांचलि पुटं हारावलिं कुण्डलम् ।
विभद्रवीर्यम शिखं प्रसन्न वदनं विद्याजनेयं भजे।
ॐ मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशन।
शत्रुंसंहार मां रक्ष श्रियं दापय में प्रभो ।।
ॐ पूर्व दिशायां श्री कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ रं दुताय विदमहे पवन-पुत्राय धीमहि तन्नो वीर प्रचोदयात।ॐ हरी-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ वं वं वं वं वं फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ पञ्च वादनाय पूर्वे कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ दक्षिण दिशायां श्री नरसिंह मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ व्रज-नाखाय तीक्ष्ण द्रष्टाय च धीमहि तन्नो नारसिंह प्रचोदयात।ॐ हरि-मार्केट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ फं फं फं फं फं हुं फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय दक्षिणे श्री नारसिंह-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ पश्चिम -दिशायां श्री गरुड़-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ वीनता सुताय विदमहे सुवर्ण-पक्षाय च धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात। ॐ हरि मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ खं खं खं खं खं हूँ फट् घे घे घे मारणाय स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय पश्चिमे श्री गरुड़ मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ उत्तर-दिशायां श्री वाराह -मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ नारायणाय विदमहे विष्णु-स्वरूपाय च धीमहि वराहः प्रचोदयात ।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ ठं ठं ठं ठं ठं हूँ फट् घे घे घे स्तम्भनाय स्वाहा।ॐ पञ्च वादनाय उत्तरे श्री वराह-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ उध्र्व दिशायां श्री अश्व-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः। ॐ बागीश्वराय विदमहे हयग्रीवराय च धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट्।ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ हूँ फट् घे घे घे आकर्षण- सकल सम्पत्कराय स्वाहा। ॐ पञ्च वादनाय उधर्वे श्री अश्व-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः ।
दिशान्तर्गत श्री पञ्च-मुख श्री हनुमन्त के प्रथक प्रथक मुख के मन्त्र पाठ----
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पूर्वे श्री कपि-मुखाय ॐ नमो श्री वीर-हनुमंते ॐ ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्रु विनाशाय सर्व शत्रु संघारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय दक्षिणे कराल वदन श्री नारसिंह -मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ हं हं हं हं हं सकल भूत-प्रेत-दमनाय ब्रह्म-हत्या समंध बाधा निवरणाय महा-बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पश्चिमे श्री गरुड़-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ मं मं मं मं मं महा रुद्राय सकल रोग-विष हरणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय उत्तरे श्री आदि वराहः-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ लं लं लं लं लं लक्ष्मण प्राण-दात्रे लंका-पुरी दाहनाय सकल संपत-कराय पुत्र-पौत्रादि वृद्धि कराय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय ऊध्र्व दिशे श्री अश्व मुखाय श्री नमो श्री वीर-हनुमंते आईएम रुं रुं रुं रुं रुं रूद्र मूर्तये वेद विद्या स्वरूपिणे सकल-लोक कारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते अंजेनाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते प्रबल पराक्रमाय आक्रान्ताय सकल दिग्मंडलाय शोभितान्याय धवलीकृताय जगत्तराय, व्रज देहाय,रुद्रावताराय, लंका-पुरी दाहनाय, उद्धिलंगकनाय,सेतु-बंधनाय,दश-कंठ-शिराक्रांताया,सिताआश्वासनाय,अनंत-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायकाय,महा-बलाय,वायु-पुत्राय,अंजनी-देवी गर्भ-सम्भूताय,श्री राम लक्ष्मणानंदकराया ,कपि-सैन्य प्रिय-कराया,सुग्रीव सहायकारण कार्य-साधकाय,पर्वतोत्पातनाय,कुमार-ब्रह्मचारिणे,गंभीर-शब्दोदयाय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व-दुष्ट-गृह निवर्णाय,सर्व-रोग ज्वरोच्चाटनाय, डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रं हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते महा बलाय ,सर्व -दोष निवर्णाय,सर्व-दुष्ट-गृह-रोगानुच्चाटनाय,सर्व-भूत-मंडलादि सर्व-दुष्ट मंडलोच्चाटनाय-उच्चाटनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा-,,बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर -हनुमंते सर्व -भूत ज्वर,सर्व-प्रेत-ज्वर, एकाहिक-ज्वर,द्वाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर,चातुर्थिक ज्वर,संतप्त-विषम ज्वर,गुप्त-ज्वर,ताप-ज्वर,शीत-ज्वर,माहेश्वरी-ज्वर,वैष्णवी ज्वरादि सर्व ज्वारान् छिंदि-छिंदि, भिन्दि- भिन्दि,यक्ष-राक्षसान भूत-प्रेत-वेताल-पिसाचन् उच्चाटोच्चाटय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः आहो-आहो असई-असई एहि-एहि ॐ ओहो ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सिंह -शार्दुल व्याघ्र गण्ड भेरुण्ड पुरुषामृगणां आसानिर्वासिनो आक्रमण कुरु कुरु ,सर्व रोगान निवारय-निवारय ,हरय हरय,आक्रोशय-आक्रोशय, सर्व-शत्रुन मर्दय मर्दय उन्माद भयं छिन्दी-छिन्दी, भिन्दि-भिन्दि,विषादय-विषादय मारय मारय, शोषय शोषय ,मोहय,-मोहय,ज्वालय ज्वालय,प्रहराय-प्रहराय,मम सकल -रोगान छेदय-छेदय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सर्व-रोग दुस्ट-ग्राहान उच्चाटय-उच्चाटय पर बलान क्षोभ्य-क्षोभ्य सर्व-कार्याणि साधय साधय, श्रृंखला-बंधन मोक्षय मोक्षय ,काराग्रहादिभ्यः मोचय मोचय ,शिर-शूल,कर्ण-शूल,अक्षि-शूल,कुक्षी-शूल,पार्श्व,-शूलादि महा-रोगान निवारय-निवारय सर्व-शत्रु कुलं संघारय संघारय,नाग-पाशं काटय-काटय, निर्मूलय-निर्मूलय ॐ अनंत-वासुकि-तक्षक-कार्कोटकालिय-कुलिक-पदम्-महापदम-कुमुद-जलचर,रात्रिचर,दिवाचरादि सर्व-विषं निर्विष कुरु,सर्व रोगनिवारणं कुरु,निवारण कुरु,सर्व-वश्यं कुरु वश्यं कुरु,सर्व-दुष्ट-जन मुख-स्तम्भनं कुरु स्तम्भनं कुरु,सर्वराज-भयं, चोर-भयं, अग्नि-भयं प्रशमनं कुरु,प्रशमनं कुरु,सर्व पर-यंत्र,पर-मन्त्र,पर-तंत्र,पर-विद्या प्राकट्य-प्राकट्य, छेदय-छेदय,संत्रास्य-संत्रास्य ,मम सर्व-विद्या प्रकटय-प्रकटय ,पोष्य-पोष्य सर्वारिष्ट शमय-शमय मम सर्व-शत्रुन प्रहारय-प्रहराय मर्दय-मर्दय,संघारय-संघारय, तापय-तापय,सर्व-रोग पिशाच-बाधान् निवारय-निवारय विष-बाधा निवारय निवारय,असाध्य-कार्य साध्य-साध्य ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा
फल श्रुति।
एक बार नित्य पाठ से सर्व शत्रु निवारण, दो बार पाठ से सर्व शत्रु वशीकरण, तीन बार पाठ से सर्व सम्पति, चार बार पाठ से सर्व रोग निवारण पञ्च बार पाठ से पुत्र-पौत्र प्राप्ति, छे बार पाठ से सर्व-देव वशीकरण,सात बार नित्य पाठ से सर्व शौभाग्य प्राप्ति,आठ बार नित्य पाठ से ईस्ट सिद्धि, नो बार नित्य पाठ से सर्व राज्य भोग और दस बार नित्य पाठ से त्रैलोक्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
जय श्री राम ।
आचार्य अनिल वर्मा
ज्योतिष ,वास्तु व् मन्त्र तंत्र मर्मज्ञ
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श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र
श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र
Shri Hanuman Vadvanal Stotra
यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है ।
विधिः- सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है ।
विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।
ध्यानः-
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।
।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।
आचार्य अनिल वर्मा
9811715366
ओऊम् नमः शिवाय्! 33 करोड़ नहीं 33 कोटी देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में
शिव डमरू बजाते और मौज आने पर नृत्य भी करते हैं, यह प्रलयंकर की मस्ती का प्रतीक है, व्यक्ति उदास, निराश और खिन्न-विपन्न बैठकर अपनी उपलब्ध शक्तियों को न खोयें, पुलकित-प्रफुल्लित जीवन जियें, शिव यही करते हैं, इसी नीति को अपनाते हैं, उनका डमरू ज्ञान, कला, साहित्य और विजय का प्रतीक है, यह पुकार-पुकारकर कहता है कि शिव कल्याण के देवता हैं।
ओऊम् नमः शिवाय्!
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते हैं ।
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँशभाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...!
वासु:, धरध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
रुद्र: ,हरबहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार ।



को पहचानें।
ज्यादा से ज्यादा
लोगों तक पहुचायें।
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दुसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
शुक्ल पक्ष !
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
विष्णु ,
शिव ,
देवी ,
सूर्य !
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
विद्या ,
सौभाग्य ,
अमृत ,
काम ,
सत्य ,
भोग ,एवं
योग लक्ष्मी !
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,
कात्यायिनी ,
कालरात्रि ,
महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल !
कच्छप ,
वराह ,
नरसिंह ,
वामन ,
परशुराम ,
श्री राम ,
कृष्ण ,
बलराम ,
बुद्ध ,
एवं कल्कि !
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
वृषभ ,
मिथुन ,
कर्क ,
सिंह ,
कन्या ,
तुला ,
वृश्चिक ,
धनु ,
मकर ,
कुंभ ,
कन्या !
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल ,
ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ ,
त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
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नवरत्न
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प्रिय मित्रो आज हम आपको राशि रत्न से सम्बंधित जानकारी दे रहे है ,
रत्न -उपरत्न मिलकर लगभग ८४ प्रकार के रत्न मुख्यता इस्तेमाल होते है परंतु ज्योतिष अनुसार प्रत्येक राशि और व्यक्ति के लग्न भाव अनुसार जो रत्न पहनाये जाते है वो मुख्य ९ प्रकार के और उनके उपरत्न अलग होते है ,
मुख्य रत्न मोती ,मूंगा ,माणक ,पन्ना ,नीलम ,पुखराज ,हीरा ,गोमेद ,लहसुनिया होते है इनके अलग अलग उपरत्न होते है जो मुख्या रत्न से सस्ते होते है और जो देखने मैं इन मुख्य रत्नों जैसे ही लगते है।
1.मोती -यह रत्न समुन्दर में शीप में पाया जाता है शीप, एक समुंदरी जीव का खोल होता है ,यह रत्न मानसिक शांति के लिए ,शरीर मैं कैल्सियम की कमी दूर कर के लिए और भाग्य वर्धक धनवर्धक,चन्द्रमा का मुख्य रत्न है ,यह रत्न कर्क लग्न का मुख्य रत्न है और वृश्चिक मीन लग्न के लिए भी भाग्य वर्धक है ,इसकी भस्म जो आयुर्वेदिक ओषधि है उसे मुक्ता भस्म कहते है।
मोती आजकल चीन में कृत्रिम रूप से भी बनाया जाता है ,साउथ सी और खाड़ी का मोती बहुत अच्छा होता है।
2.मूंगा-यह रत्न भी समुन्दर की गहराई में लकड़ी जैसी चट्टानों का बना होता है ,यह रत्न मुख्यता मंगल गृह के शुभ प्रभाव को बढ़ाने , व्यक्ति को एनरजेटिक बनाने ,हिम्मत देने और हृदय को मजबूत करने के लिए पहनाया जाता है। इसकी भस्म को परवल भस्म कहते है।
मेष और वृश्चिक लग्न का मुख्या रत्न और कर्क ,मीन,सिंह धनु लग्न के लिए भी भाग्यवर्धक रत्न है।
3.पन्ना -यह रत्न पहाड़ी छेत्र के तलहटी से प्राप्त होता है इसका रंग हरा ,हल्का या गहरा हरा भी होता है , बढ़िया पन्ना कोलंबिया ,जाम्बिया ,से प्राप्त होता है , इसकी भस्म को आयुर्वेद अनुसार अनेको बीमारियों में काम मैं लिया जाता है ,यह रत्न हृदय ,मस्तिष्क ,बुद्धि के लिए,व्यापर कार्य ,पड़ने लिखने के कार्य ,गणित के कार्यो मैं बहुत उपयोगी है ,
बुध गृह का विशेष रत्न मिथुन ,कन्या लग्न वृष ,तुला मैं भी पहनाया जा सकता है ,
माणक -यह रत्न लाल गुलाबी रंग का होता है ,यह भारत ,बर्मा थाईलैंड मैं अधिक मिलता है ,बर्मा का 4.माणक सबसे महँगा होता है। यह सूर्य का विशेष रत्न है ,इसकी भस्म ह्रदय की मजबूती के लिए बहुत उपयोगी है ,यह उच्च रक्तचाप वालो को नहीं खानी चहिये ,
सिंह लगन का मुख्या रत्न है , धनु लग्न के लिए भी भाग्यवर्धक है ,
5.पुखराज -इसका रंग पिला,सफ़ेद,हल्का पिला ,गुलाबी कभी कभी नीलम की आभा के साथ पिला रंग भी होता है ,पिला पुखराज बृहस्पति गृह के लिए पहना जाता है ,बढ़िया पुखराज लंका से आता है।
धनु मीन लगन का मुख्या रत्न है , मेष ,कर्क ,वृश्चिक लग्न को भी पहनाया जाता है।
6.नीलम -इसका रंग नीला ,हल्का नीला ,होता है ,दरअसल नीलम पुखराज एक ही खान से मिलते है जिसका रंग नीला उसे नीलम जिसका रंग पिला उसे पुखराज और जिसका रंग दोनों रंगों से मिला होता है उसे पीताम्बरी कहते है। (पीताम्बरी कुंभ लगन के लिए विशेष शुभ होती है )
शनि गृह का मुख्या रत्न है ,इसे मकर ,कुम्भ तुला ,वृष लगन वाले पहन सकते है ,इसके बारे मैं किद्वंती है की यह रत्न बहुत जल्दी नफा नुकसान कर देता है ,इसे लोग पहले बांध कर टेस्ट करके पहने की सलाह देते है। इस रत्न के साथ हीरा या ओपल भी बहुत शुभ होता है।
7.हीरा -यह रत्न बहुत चमकदार ,आकर्षक महँगा होता है. रत्न का काम ही आकर्षण करना है ,स्त्रियों के लिए यह विशेष रत्न है।yah शुक्र गृह का रत्न है। इसके उपरत्न मैं ओपल या जिरकॉन को भी पहना जाता है।
यह रत्न वृष तुला लग्न के लिए विशेष रत्न है इसे मकर ,कुंभ लगन वाले भी पहन सकते है। हीरा और नीलम रत्न हमेशा एक दूसरे के पूरक मने जाते है ,दरअसल शनि का रत्न नीलम व्यक्ति को गहराई से सोचने,एकाकी जीवन ,आध्यात्मिकता की प्रवर्ति दे देता है और व्यक्ति भोग विलास से दूर हो जाता है इसी प्रकार हीरा पहने वाला व्यक्ति अधिक भोग विलासी कामुक हो जाता है इसलिए ये दोनों रत्न एक दूसरे के पूरक हो जाते है।
8.गोमेद -यह रत्न भूरा ,पिला ,कालापन लिए हुए भूरा रंग का होता है। यह रत्न मुख्य राहु गृह के लिए उपयोगी है ,जिस व्यक्ति की कुंडली मैं राहु केंद्र या त्रिकोण मैं शुभ अकेला हो , या केंद्र के स्वामी के साथ त्रिकोण मैं और त्रिकोण के स्वामी के साथ केंन्द्र मैं हो उन्हें ही पहनाया जा सकता है ,इस रत्न को बिना ज्योतिष सलाह के कभी न पहने। यह रत्न नुकसान करने मैं नीलम से भी ज्यादा खतरनाक है ,राहु की शांति के लिए इसका जलप्रवाह बहुत सुबह होता है.
9.लहसुनिया -यह रत्न सलेटी रंग पर बिल्ली के आँख जैसी धारी लिए होता है इसकिये इसे कैट्स ऑय कहते है ,यह रत्न केतु गृह का मुख्या गृह है इसे भी गोमेद की तरह विचार करके पहना जाता है।
किसी भी ज्योतिष सलाह के लिए रत्न ,रुद्राक्ष धारण करने की विधि,इनका मंत्र ,प्राणप्रतिष्ठा करवाने के लिए , आपके अनुसार कौन सा रत्न शुभ है जानने के लिए संपर्क करें -
आचार्य अनिल वर्मा
9811715366
बगलामुखी माला मंत्र
भगवती, बगलामुखी माला मंत्र
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ॐ नमो भगवती, ॐ नमो वीरप्रतापविजय भगवती, बगलामुखी!
मम सर्वनिन्दकानाम् सर्वदुष्टानाम वाचम् मुखम् पदम् स्तम्भय,
जिव्हाम मुद्रय मुद्रय, बुद्धिम् विनाशय विनाशाय, अपरबुद्धिम कुरु,
कुरु, अत्मविरोधिनाम् शत्रुणाम् शिरो, ललाटम् मुखम्, नेत्र, कर्ण,
नासिकोरू, पद, अणु-अणु, दन्तोष्ठ, जिव्हा, तालु, गुह्य, गुदा, कटि,
जानु, सर्वांगेषु केशादिपादान्तम् पादादिकेश्पर्यन्तम् , स्तम्भय स्तम्भय,
खें खीं मारय मारय, परमंत्र, परयंत्र, परतन्त्राणि, छेदय छेदय, आत्ममन्त्रतंत्राणि
रक्ष रक्ष, ग्रहम निवारय निवारय , व्याधिम् विनाशय विनाशय, दुखम् हर हर,
दारिद्रयम् निवारय निवारय, सर्वमंत्रस्वरूपिणि, दुष्टग्रह, भूतग्रह, पाषाणग्रह,
सर्वचाण्डालग्रह, यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह, भूतप्रेत पिशाचानाम्, शाकिनी
डाकिनीग्रहाणाम, पूर्वदिशम् बंधय बंधय, वार्ताली! माम् रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशम् बंधय
बंधय किरातवार्ताली! माम् रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशम् बंधय बंधय, स्वप्नवार्ताली! माम्
रक्ष रक्ष, उत्तरदिशम् बंधय बांधय भद्रकालि! माम् रक्ष रक्ष, ऊर्ध्व दिशम् बंधय
बंधय उग्रकाली! माम् रक्ष रक्ष, पाताल दिशम् बंधय बंधय बगला परमेश्वरी! माम्
रक्ष रक्ष, सकल रोगान् विनाशय विनाशय, शत्रु पलायनम् पंचयोजनम्ध्ये
राजजनस्वपचम् कुरु कुरु, शत्रून दह दह, पच पच, स्तम्भयस्तम्भय, मोहय मोहय,
आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय हुम् फट् स्वाहा |
इस मंत्र का नित्य एक माला जाप रात्रि मैं करने से किसी भी प्रकार का भय ,चोरी,दुर्घटना,बीमारी,क्लेश,और शत्रु क्षय होता है।
जय माँ।