माँ बगलामुखी कल्प विधान

   



 बगलामुखी कल्प विधान
माँ बगलामुखी कल्प विधान द्वारा मनुष्य किसी भी प्रकार की समस्या के समाधान , जीवन के हर छेत्र में उन्नति , विद्या प्राप्ति ,बाधा निवारण ,शत्रु संघार ,बीमारी दुर्घटना से बचाव ,कोर्ट कचहरी के मुकदमे मैं विजय की प्राप्ति ,आदि हर कार्य के लिए अचूक साधन है।  इसका प्रयोग नियम से करें मुझे पूर्ण विश्वाश है माँ की कृपा से आपके कार्य सिद्ध अवश्य होंगे।

इसमें माँ बगलामुखी का सर्वांग पूजन आगे दी विधि के अनुसार करें। सर्वप्रथम 3 बार मूलमंत्र से प्राणायाम करें बाएं नथुने से धीरे-धीरे सांस खींच कर उसे तब तक रोके रहे जबतक छटपटाहट महसूस होने लगे फिर इसे दांए नथुने से धीरे-धीरे बाहर छोडे़ पुनः दांए से खींचकर बाए नथुने से सांस छोडें यह एक प्राणायाम हुआ, इस प्रकार तीन बार कर, मूल मंत्र का 108बार जाप कर, दिग्बन्धन के समय सम्बन्धित दिशा में चुटकी बजाए-
दिग्बन्धन -
ऊँ ऐं  ह्लीं श्रीं श्यामा माँ पूर्वतः पातु। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेय्यां पातु तारिणी।। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं माहविद्या दक्षिणे तु। ऊ ऐं ह्लीं श्रीं नैर्ऋत्यां षोडशी तथा।। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भुवनेशी पश्चिमयाम्। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वायव्यां बगलमुखी।। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ता च। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऐशान्यां धूमावती तथा।। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऊर्घ्व तु, कमला पातु। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवता।। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अद्यस्तात् चैव मातङगी। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं सर्वदिग् बगलामुखी।।
विनियोग - विनियोग बोल कर जल पृथ्वी पर डाले। दांए हाथ में जल लेकर
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ब्रह्मास्त्र  सिद्ध प्रयोग स्त्रोत मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, हृं बीजम् शक्ति, लं कीलकं, मम सर्वार्थ-साधन-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः।
फिर सम्बन्धित स्थानो को छुए
ऊँ भगवते नारदाय ऋषये नमः शिरसि , ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः श्यामा देव्यै नमः ललाटे। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः तारा देव्यै नमः कर्णयोः। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः महा विद्यायै नमः भुरवोर्मध्ये ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः षोडशी देव्यै नमः नेत्रयो। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः श्री बगला मुखी देव्यै नमः मुखे। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः बगला भुवनेश्वरीभ्यां नमः नासिकयोः। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः छिन्न मस्ता देव्यै नमः नाभौ। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः धूमावती देव्यै नमः कटयाम्। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः कमला देव्यै नमः गुहृो। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः श्री मातंगी देव्यै नमः पादयो। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः  बीजाय नमः नाभौ। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लूं ह्लैं ह्लौं ह्लः कीलकाय नमः सर्वाङगे। मम सर्वार्थ साधने बगला देव्यै जपे विनियोगः नमः । (जल पृथ्वी पर डाल दे)

करन्यास-
ऊँ ह्लां  बगलामुखी अडगुष्ठाभ्यां नमः। ऊँ ह्लीं बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः। ऊँ ह्लूं बगलामुखी मध्यमाभ्यां नमः। ऊँ ह्लैं बगलामुखी अनामिकाभ्यां नमः। ऊँ ह्लौं बगलामुखी कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ऊँ ह्लः बगलामुखी करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयदिन्यास-
ऊँ  ह्लां हृदयाय नमः। (हृदय को दांए हाथ से स्पर्श करें) ऊँ ह्लीं बगलामुखी शिरसे स्वाहा।(सिर का स्पर्श करें) ऊँ ह्लूं सर्व दुष्टानां शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श करें) ऊँ ह्लैं वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। (कवच बनाएं) ऊँ ह्लौं जिह्वां कीलय् नेत्रयाय वौषट। (नेत्रों का स्पर्श करें) ह्लः अस्त्राय फट (सिर के पीछे से, दाए हाथ से चुटकी बजाते हुए, दांए हाथ की गदेली पर, बांए हाथ की तर्जनी मध्यमा से तीन बार ताली बजाए।)
कवच - दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे, इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।


ध्यान -

   सौवर्णासन -संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं,
   हेमाभाङग- रूचिं शशाङक- मुकुटां सच्चम्पक-स्त्रग्युताम्।
   हस्तैर्मुद्गर -
-पाश- वज्र- रसनाः संविभ्रतीं भीषणाम
   र्व्याप्ताङगीं बगलामुखी त्रि-जगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत।।


यन्त्रोद्वार -
त्रिकोणं चैव षट्-कोणं, वसु-पत्रं ततः परम्।
पुनश्च वसु-पत्रं, वर्तुलं प्रकल्पयेत्।।
षोडशारं ततः पश्चात्, चतुरस्त्रं विधीयते।
वर्तुलं चतुरस्तं , मध्ये मायां समालिखेत्।।

नोट -      माँ बगलामुखी के उपरोक्त यन्त्रोंद्वार वाला ही यंत्र प्रयोग करें, बाजार में इनकेविभिन्न प्रकार के यंत्र मिलते हैं। इसकी विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर, सर्वांग पूजन करते हैं। पीले वस्त्रपर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र स्थापित कर जहाँ-जहाँ पूजयामि है वहाँ-वहाँ पुष्प की पंखुडियाँ सामने प्लेट मेंडालते जाए तर्पयामि भी जल से करते रहें।
आदौ-त्रिकोण देवताः पूजयेत् -
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं क्रोधिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं  ह्लीं श्रीं स्तंभिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
ऊँ ऐं ह्लीं  श्रीं चामर धारिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
पुनस्त्रि कोणे -
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ओडयान पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जालन्धर पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कामगिरि पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अनन्त नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं  ह्लीं श्री कण्ठ नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं दन्तात्रेय नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ षट्कोणे
ऊँ ऐं ह्लीं  श्रीं सुभगायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भग वाहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भग मालिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भग शुद्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भग पत्न्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्लीं  श्रीं ब्राह्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं माहेश्वर्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं  श्रीं कौमार्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वैष्णव्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वाराहौै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं इन्द्राण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चामुण्डायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ द्वितीय वसुपत्रे -
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं विजयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अपराजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
अथ पत्राग्रे-
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं असिताङग भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं रूरू भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्ड भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं क्रोध भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं उन्मन्त भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कपालि भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भीषण भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं संहार भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
षोडश दले -
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगला मुख्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चचलाये स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अचलायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वश्यायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कालिकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कल्मषायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं छात्रयै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं  श्रीं काल्पान्तायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं शाकिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अष्ट गन्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भोगेच्छायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। ऊँ ऐं ह्लीं  श्रीं भाविकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।
मन्त्र पाठ -108 बार पाठ कर, स्त्रोत का पाठ करें।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगला मुखि सर्व दुष्टानां वश्यं कुरू कुरू कलीं कलीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। ऊँ ह्रलीं बगलामुखि श्रीबगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, पर मन्त्रान् निवारय निवारय, वीर चंक्र छेदयछेदय, वृहस्पति मुखं स्तम्भय स्तम्भय, ऊँ ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा, ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुंफट् स्वाहा। (108 बार पाठ करें)

स्त्रोत्र -
ब्रह्मास्त्रां प्रवक्ष्यामि बगलां नारद सेविताम्।
देव गन्धर्व यक्षादि सेवित पाद पङकजाम्।।
त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या सर्व शत्रु वशङकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरीमारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लां द्राविणि द्राविणि भ्रामिणि भ्रामिणी एहि एहि सर्व भूतान् उच्चाटय उच्च्चाटय सर्व दुष्टान् निवारयनिवारय भूत प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनीः छिन्धि छिन्धि, खड्गेन भिन्धि भिन्धि मुद्गरेण संमारयसंमारय, दुष्टान्, भक्षय-भक्षय, ससैन्यं भूपतिं कीलय मुख स्तम्भनं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
आत्म-रक्षा ब्रह्म-रक्षा, विष्णु-रक्षा रूद्र-रक्षा, इन्द्र-रक्षा, अग्नि-रक्षा, यम-रक्षा, नैर्ऋत-रक्षा, वायु-रक्षा, कुवेर-रक्षा, ईशान-रक्षा, सर्व-रक्षा, भूत-प्रेत, पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-रक्षा-अग्नि वैताल-रक्षा गण-गन्धर्व-रक्षा, तस्मात् सर्वरक्षां कुरू कुरू, व्याध्र-गज-सिंह रक्षागण तस्कर-रक्षा, तस्मात् सर्व बन्ध्यामि ऊँ ह्लां बगलामुखि हुँ फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लीं भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिंविनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगलामुखि एहि-एहि पूर्व दिशायां बन्धय-बन्धय इन्द्रस्य मखंस्तम्भ-स्तम्भ इन्द्र शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरे एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय अग्नि मुखंस्तम्ीाय स्तम्भय अग्नि शस्त्र निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दयमर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ  ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महर्षि मर्दिनि एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय समस्यअग्नि स्तम्भय स्तम्भय यम शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दयमर्दय ऊँ ह्लीं हज्जृम्भणं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्डिके एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय नैऋत्य मुखंस्तम्भय नैऋत्य शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कराल नयने एहि-एहि पश्चिम दिशायां बन्धय-बन्धय वरूण मुखंस्तम्भय वरूण शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लींवश्यं कुरू कुरू ऊँ  ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कालिके एहि-एहि वायव्य दिशायां बन्धय-बन्धय वायु मुखंस्तम्भय वायु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लींवश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महा त्रिपुर सुन्दरी एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय कुवेरमुखं स्तम्भय कुबेर शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं महाभैरवि एहि एहि ईशान दिशायां बन्धय बन्धय ईशान मुखं स्तम्भयस्तम्भय ईशान शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलींवश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं गाङगेश्वरि एहि एहि ऊर्ध्व दिशायां बन्धय बन्धय ब्रह्मणं चतुर्मखंस्तम्भय स्तम्भय ब्रह्म शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दयऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ललितादेवी एहि एहि अन्तरिक्ष दिशायां बन्धय बन्धय विष्णु मुखंस्तम्भय स्तम्भय विष्णु शस्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दयमर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं चक्रधारिणि एहि एहि अधो दिशायां बन्धय बन्धय वासुकि मुखं स्तम्भयस्तम्भय वासुकि शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँहलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
दुष्ट मन्त्रम् दुष्ट यन्त्रं दुष्ट पुरूषम् बन्धयामि शिखां बन्ध ललाट बन्ध भ्रवौबन्ध नेत्रे बन्ध कर्णों बन्ध नासौ बन्ध ओष्ठी बन्ध अधरौ बन्ध जिह्वां बन्ध रसनां बन्ध बुद्धि कष्ठम्बन्ध हृदयं बन्ध कुक्षि बन्ध हस्तौ बन्ध नाभि बन्धा लिङगम् बन्ध गुहां बन्ध ऊरू बन्ध जानू बन्ध जङघे बन्ध गुल्फौ बन्ध पादौ बन्ध स्वर्ग-मृत्युं-पातालं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि इन्द्राय सुराधिपतये ऐरावत् वाहनाय श्वेत वर्णाय वज्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् नाशय नाशय विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि अग्नेय तेजोधिपतये छाग वाहनाय रक्तवर्णाय शक्ति हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये महिष वाहनाय कृष्ण वर्णायदण्ड हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वरूणाय जलाधिपतये मकर वाहनाय श्वेत वर्णाय पाश हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय ध्रूम वर्णाय ध्वजा हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ईशानाय भूताधि पतये वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णाय त्रिशूल हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां  बगलामुखि हुं फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्व दिग्लोकपालाधि पतये हंस वाहनायश्वेत वर्णाय कमण्डलु हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वैष्णी सहिताय नागाधिपतये गरूण वाहनाय श्यामवर्णाय चक्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखंस्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ नमो भगवते पुण्य पवित्रे स्वाहा।
ऊँ ह्लीं बगलामुखि नित्यम् एहि एहि रवि मण्डल मध्याद् अवतर अवतर सानिध्यं कुरू कुरू। ऊँ ऐं परमेश्वरीम् आवाहयामि नम्। मम् सानिध्यं कुरू। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुम् फट्स्वाहा।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बगले चतुर्भुजे मुद्धरशर संयुक्ते दक्षिणेजिह्वा व्रज संयुक्ते वामे श्री महाविद्ये पीत वस्त्रे पच्च महाप्रेताधि रूढे सिद्ध विद्याधर बन्दिते ब्रह्मविष्णु रूद्र पूजिते आनन्द स्वरूपे विश्व सृष्टि स्वरूपे महा भैरव रूप धारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल सतम्भिनि वाम मार्गाश्रिते श्री बगले ब्रह्म विष्णु रूद्र रूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानावरूप सहस्त्रादित्य शेभिते त्रिवर्णे एहि एहि हृदयं प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भ स्तम्भ अन्य भूत पिशाचान्खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय पर विद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीर चक्रं धनुषांसंभारय संभारय त्रिशूलेन् छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरू कुरू संमाहेय-संमोहय बिना जाप्येन सिद्धय सिद्धय बिना मन्त्रंण सिद्धिं कुरू कुरू सकल दुष्टान् घातय-घतय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरू-कुरू सकल कुल राक्षसान् दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्षय भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फाटकादीन् नाश्य नाशय ऊँ ह्रीं विषम ज्वरं नाशय-नाशय विषं निर्विष कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहा।
ऊँ बगलामुखि स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे स्वाहा। ऊँ त्रिपुर भैरवि स्वाहा। ऊँ विजयायैस्वाहा। ऊँ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा। ऊँ सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै स्वाहा। ऊँ विन्घ्य वासिन्यैस्वाहा। ऊँ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गाये स्वाहा। ऊँ भवान्यै स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै स्वाहा। ऊँ महामायायै स्वाहा। ऊँ कमल लोचनायै स्वाहा। ऊँ तारायै स्वाहा। ऊँ योगिन्यै स्वाहा। ऊँ कौमार्यै स्वाहा। ऊँशिवायै स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लीं शिव तत्व व्यापिनि बगलामुखि स्वाहा। ऊँ ह्लीं माया तत्व-व्यापिनिबगलामुखि हृदयाय स्वाहा। ऊँ ह्लीं विद्या तत्व व्यापिनि बगलामुखि शिरशे स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः शिरो रक्षतु बगलामुखि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः भालं रक्षतु पीताम्बरे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नेत्रे रक्षतु महा भैरवि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कर्णों रक्षतु विजये रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नासौ रक्षतु जये रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वदनं रक्षतु शारदे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः स्कनधौ रक्षतु विन्घ्यं रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बाहु रक्षतु त्रिपुर सुन्दरि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां  ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः करौ रक्षतु दुर्गे रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उदरं रक्षतु भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नाभिं रक्षतु महामाये रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कटिं रक्षतु कमल लोचने रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां  ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उरौ रक्षतु तारे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां  ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः संर्वाङगे रक्षतु महातारे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः अग्रे रक्षतु येागिनि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः पृष्ठे रक्षतु कौमारि रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः दक्षिण पार्श्वे रक्षतु शिवे रक्ष रक्ष स्वाहा। ऊँ ह्लां ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वाम पार्श्वे रक्षतु इन्द्राणि रक्ष रक्ष स्वाहा।
ऊँ गां गीं गूं गैं गौं गः गणपतये सर्व जन मुख स्तम्भनाय आगच्डछ आगच्छमम विध्नान् नाशय नाशय दुष्टं खादय खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकाल मृत्युं हन हनभो गणाधिपते ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

हवन - जहाँ-जहाँ स्वाहा है आहुतियां देते रहें।

एक हजार पाठ के उपरान्त यह पाठ स्वतः चलने लगता है, भगवती के यंत्रकी पंचोपचार पूजन कर, रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठे व अपनी त्रिकुटि के मध्य में ध्यान रखते हुए पाठ करें कैसा भी आप पर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसको यह ध्वस्त कर देता है व अभिचारिक व्यक्ति को दंड भी मिल जाता है। इस पाठ को आप अपनी दैनिक पूजा में यदि स्थान देते हैं तो भगवती आप की पूरी सुरक्षा ही नहीं करती वरन् बहुत कुछ दे देती है, जिसे स्वयं आप अनुभव करेंगे, धर्मता पूर्वक क्रमशः आगे बढ़ते रहें, भगवती आप की प्रत्येक मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी।एक वर्ष में ही आप शक्ति सम्पन्न हो जाएगें। ऐसा अनुभवी साधकों ने स्वीकारा है।


श्री पञ्च मुखी वीर हनुमन्त कवच

                 

मित्रो जीवन की सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति सर्व कार्य साधन सिद्धि(मारण, मोहन,वशिकरण,उच्चाटन विद्वेषण) के लिए अचूक साधना।
श्री पञ्च मुखी वीर हनुमन्त कवच
विधि -विधान सहित
विनियोग :
ॐ अस्य श्री पञ्च-मुख वीर-हनुमन्त कवच श्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि ,गायत्री छंद ,पञ्च मुखी श्री वीर हनुमान देवता,रां बीजं ,मं शक्ति,चंद्र कीलकं , पंचमुख्यान्तर्गत श्री हनुमन्त कृपा प्रसाद प्राप्तर्थ्य कवच पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर-न्यास
ॐ रां अंगुष्ठाभ्यां नमः , ॐ रीं तर्जनीभ्यां नमः ,ॐ रुं मध्यभ्यां नमः , ॐ रें अनामिकाभ्यां नमः ,ॐ रों कनिष्ठाभ्यां नमः ,ॐ रं करतल कर प्रस्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि शडांग न्यास
ॐ रां हृदयाय नमः , ॐ रीं शिरसे स्वाहा ,ॐ रुं शिखायै वषट , ॐ रें कवचाय हूँ , ॐ रौं नेत्रयाय वौषट , ॐ रः अस्त्राय फट्ट।
दिग्बन्ध
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ कं खं गं घँ डं चं छं जं झं त्रं  टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा ।( दशो दिशाओं में दृष्टिपात करते हुए अपने चारों और तीन चुटकी बजाए तथा अस्त्र मुद्रा निर्मित कर बाये हाथ की हथेली पर तीन ताली बजाये।
ध्यान
वंदे वानर नरसिंह खग्राट क्रोडाश्ववक्तृनविंतं ।
दिव्यालङ्क्रणं त्रिपंच नयनं दैदीप्यमानं ऋचा।
हस्ताब्जैरसिखेट पुस्तकं सुधा कुम्भ अंगशादीन्हलान्।
खटवाडगं फणिभूरूहं दश भुजं सर्वारिदपार्पहम ।
पञ्च वक्त्र महा भीम त्रिपंच नयनैरयुतम्।
दशभिर्बाहुभिरयुक्तं सर्व कामार्थ सिद्धिदम।।
पूर्व दिशा को मुख -
पूर्वे तु वानर वक्त्रं कोटि सूर्य समप्रभम ।
द्रष्टा कराल वदनं भृकुटि कुटिलेक्षणं ।।
दक्षिण दिशा को मुख -
अस्यैव दक्षिणे वक्त्र नारसिंघम महाद्भुतं।
अत्युग्र तेजो जवलितं भीसणं भय नाशनम।।
पश्चिम दिशा की मुख-
पश्चिमे गरुड़ वक्त्रं व्रज-तुण्ड महा-बलम
सर्व-नाग-प्रश्मन्न विष क्रंत्तनम ।।
उतर दिशा को मुख -
उत्तरे सुकर वक्त्रं कृष्णदित्य महोज्वलंम
पाताल सिद्धिद नृणाम ज्वर-रोगादि नाशनम ।।
उध्र्व दिशा को मुख -
उध्र्व हयानं घोरं दानवान्तकरं परम
येन वक्त्रेण विपेंद्र सर्व -विद्याविनिर्ययु ।।
आयुधादि ध्यान -
खडंग त्रिशूलं खट्वांग पाशांकुश पर्वतम
खेटांगसिनीपुस्तम च सुधा कुम्भ कळं तथा
एतन्यायुद्ध जातानि धार्यन्तं भजमहे।
प्रेतासनोपविस्ठ तु दिव्याभरण भूषितं।
दिव्य मलाम्बर धरं दिव्य गन्धानुलेपनम् ।।
सर्वेश्वर्यमयं देवमनन्तं विश्वतो मुखम् ।
एवं ध्यायेत पञ्च मुखं सर्व काम फल प्रदम्।।
पंचास्यमचयुतमनेक विचित्र विर्यम् ।
श्री शंख चक्र रमणीय भुजाग्र देशम ।।
पिताम्बरं मुकुटं कुण्डलं नुपुरांगम ।
उदधैतिं कपि वरं हृदि भावयामि
चंद्रार्द्ध चरणावरबिंद युगलं कौपीन मौजी धरम।
नाभ्यां वैकटि सूत्र बद्ध वसनं यज्ञोपवीतं शुभम् ।।
हस्ताभ्यामवलमव्यम चांचलि पुटं हारावलिं कुण्डलम् ।
विभद्रवीर्यम शिखं प्रसन्न वदनं विद्याजनेयं भजे।
ॐ मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशन।
शत्रुंसंहार मां रक्ष श्रियं दापय में प्रभो ।।
पञ्च मुख श्री हनुमान जी के पृथक पृथक मुखों के गायत्री सहित मन्त्र पाठ ---
ॐ पूर्व दिशायां श्री कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ रं दुताय विदमहे पवन-पुत्राय धीमहि तन्नो वीर प्रचोदयात।ॐ हरी-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ वं वं वं वं वं फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ पञ्च वादनाय पूर्वे कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ दक्षिण दिशायां श्री नरसिंह मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ व्रज-नाखाय तीक्ष्ण द्रष्टाय च धीमहि तन्नो नारसिंह प्रचोदयात।ॐ हरि-मार्केट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ फं फं फं फं फं हुं फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय दक्षिणे श्री नारसिंह-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ पश्चिम -दिशायां श्री गरुड़-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ वीनता सुताय विदमहे सुवर्ण-पक्षाय च धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात। ॐ हरि मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ खं खं खं खं खं हूँ फट् घे घे घे मारणाय स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय पश्चिमे श्री गरुड़ मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ उत्तर-दिशायां श्री वाराह -मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ नारायणाय विदमहे विष्णु-स्वरूपाय च धीमहि वराहः प्रचोदयात ।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ ठं ठं ठं ठं ठं हूँ फट् घे घे घे स्तम्भनाय स्वाहा।ॐ पञ्च वादनाय उत्तरे श्री वराह-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ उध्र्व दिशायां श्री अश्व-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः। ॐ बागीश्वराय विदमहे हयग्रीवराय च धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट्।ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ हूँ फट् घे घे घे आकर्षण- सकल सम्पत्कराय स्वाहा। ॐ पञ्च वादनाय उधर्वे श्री अश्व-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः ।
दिशान्तर्गत श्री पञ्च-मुख श्री हनुमन्त के प्रथक प्रथक मुख के मन्त्र पाठ----
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पूर्वे श्री कपि-मुखाय ॐ नमो श्री वीर-हनुमंते ॐ ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्रु विनाशाय सर्व शत्रु संघारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय दक्षिणे कराल वदन श्री नारसिंह -मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ हं हं हं हं हं सकल भूत-प्रेत-दमनाय ब्रह्म-हत्या समंध बाधा निवरणाय महा-बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पश्चिमे श्री गरुड़-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ मं मं मं मं मं महा रुद्राय सकल रोग-विष हरणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय उत्तरे श्री आदि वराहः-मुखाय ॐ नमो  श्री वीर हनुमंते ॐ लं लं लं लं लं लक्ष्मण प्राण-दात्रे लंका-पुरी दाहनाय सकल संपत-कराय पुत्र-पौत्रादि वृद्धि कराय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय ऊध्र्व दिशे श्री अश्व मुखाय श्री नमो श्री वीर-हनुमंते आईएम रुं रुं रुं रुं रुं रूद्र मूर्तये वेद विद्या स्वरूपिणे सकल-लोक कारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
।। कवच माला मन्त्र पाठ ।।
ॐ नमो भगवते अंजेनाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते प्रबल पराक्रमाय आक्रान्ताय सकल दिग्मंडलाय शोभितान्याय धवलीकृताय जगत्तराय, व्रज देहाय,रुद्रावताराय, लंका-पुरी दाहनाय, उद्धिलंगकनाय,सेतु-बंधनाय,दश-कंठ-शिराक्रांताया,सिताआश्वासनाय,अनंत-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायकाय,महा-बलाय,वायु-पुत्राय,अंजनी-देवी गर्भ-सम्भूताय,श्री राम लक्ष्मणानंदकराया ,कपि-सैन्य प्रिय-कराया,सुग्रीव सहायकारण कार्य-साधकाय,पर्वतोत्पातनाय,कुमार-ब्रह्मचारिणे,गंभीर-शब्दोदयाय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व-दुष्ट-गृह निवर्णाय,सर्व-रोग ज्वरोच्चाटनाय, डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रं हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते महा बलाय ,सर्व -दोष निवर्णाय,सर्व-दुष्ट-गृह-रोगानुच्चाटनाय,सर्व-भूत-मंडलादि सर्व-दुष्ट मंडलोच्चाटनाय-उच्चाटनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा-,,बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर -हनुमंते सर्व -भूत ज्वर,सर्व-प्रेत-ज्वर, एकाहिक-ज्वर,द्वाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर,चातुर्थिक ज्वर,संतप्त-विषम ज्वर,गुप्त-ज्वर,ताप-ज्वर,शीत-ज्वर,माहेश्वरी-ज्वर,वैष्णवी ज्वरादि सर्व ज्वारान् छिंदि-छिंदि, भिन्दि- भिन्दि,यक्ष-राक्षसान भूत-प्रेत-वेताल-पिसाचन् उच्चाटोच्चाटय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः आहो-आहो असई-असई एहि-एहि ॐ ओहो ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते पवनात्मजाय डाकिनी-शाकिनी-लाकिनी-काकिनी-साकिनी-हाकिनी पर प्रभाव चूर्णय चूर्णय त्रोटय त्रोटय उच्चाटय-उच्चाटय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सिंह -शार्दुल व्याघ्र गण्ड भेरुण्ड पुरुषामृगणां आसानिर्वासिनो आक्रमण कुरु कुरु ,सर्व रोगान निवारय-निवारय ,हरय हरय,आक्रोशय-आक्रोशय, सर्व-शत्रुन मर्दय मर्दय उन्माद भयं छिन्दी-छिन्दी, भिन्दि-भिन्दि,विषादय-विषादय मारय मारय, शोषय शोषय ,मोहय,-मोहय,ज्वालय ज्वालय,प्रहराय-प्रहराय,मम सकल -रोगान छेदय-छेदय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सर्व-रोग दुस्ट-ग्राहान उच्चाटय-उच्चाटय पर बलान क्षोभ्य-क्षोभ्य सर्व-कार्याणि साधय साधय, श्रृंखला-बंधन मोक्षय मोक्षय ,काराग्रहादिभ्यः मोचय मोचय ,शिर-शूल,कर्ण-शूल,अक्षि-शूल,कुक्षी-शूल,पार्श्व,-शूलादि महा-रोगान निवारय-निवारय सर्व-शत्रु कुलं संघारय संघारय,नाग-पाशं काटय-काटय, निर्मूलय-निर्मूलय ॐ अनंत-वासुकि-तक्षक-कार्कोटकालिय-कुलिक-पदम्-महापदम-कुमुद-जलचर,रात्रिचर,दिवाचरादि सर्व-विषं निर्विष कुरु,सर्व रोगनिवारणं कुरु,निवारण कुरु,सर्व-वश्यं कुरु वश्यं कुरु,सर्व-दुष्ट-जन मुख-स्तम्भनं कुरु स्तम्भनं कुरु,सर्वराज-भयं, चोर-भयं, अग्नि-भयं प्रशमनं कुरु,प्रशमनं कुरु,सर्व पर-यंत्र,पर-मन्त्र,पर-तंत्र,पर-विद्या प्राकट्य-प्राकट्य, छेदय-छेदय,संत्रास्य-संत्रास्य ,मम सर्व-विद्या प्रकटय-प्रकटय ,पोष्य-पोष्य सर्वारिष्ट शमय-शमय मम सर्व-शत्रुन प्रहारय-प्रहराय मर्दय-मर्दय,संघारय-संघारय, तापय-तापय,सर्व-रोग पिशाच-बाधान् निवारय-निवारय विष-बाधा निवारय निवारय,असाध्य-कार्य साध्य-साध्य ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते अभीष्ठ वर पददायकाय मम सर्वाभीष्ट सर्व -संपदरक्षणाय ॐ जं जं जं जं जं जगज्जीवनाय हूँ फट् ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ श्री कपि-मुखाय नमः।ॐ श्री नारसिंहमुखाय नमः ।ॐ श्री गरुड़ मुखाय नमः। ॐ श्री वराह मुखाय नमः।ॐ श्री अश्व मुखाय नमः।ॐ पञ्च मुख श्री वीर हनुमंते नमः।
फल श्रुति।
एक बार नित्य पाठ से सर्व शत्रु निवारण, दो बार पाठ से सर्व शत्रु वशीकरण, तीन बार पाठ से सर्व सम्पति, चार बार पाठ से सर्व रोग निवारण पञ्च बार पाठ से पुत्र-पौत्र प्राप्ति, छे बार पाठ से सर्व-देव वशीकरण,सात बार नित्य पाठ से सर्व शौभाग्य प्राप्ति,आठ बार नित्य पाठ से ईस्ट सिद्धि, नो बार नित्य पाठ से सर्व राज्य भोग और दस बार नित्य पाठ से त्रैलोक्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
जय श्री राम ।
आचार्य अनिल वर्मा
ज्योतिष ,वास्तु व् मन्त्र तंत्र मर्मज्ञ
981171536, 8826098989
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श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र

श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र

Shri Hanuman Vadvanal Stotra

 यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है ।

विधिः- सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है ।

विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।

ध्यानः-
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।

।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।

आचार्य अनिल वर्मा
9811715366

ओऊम् नमः शिवाय्! 33 करोड़ नहीं 33 कोटी देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में


ॐ नमः शिवाय ।।
शिव डमरू बजाते और मौज आने पर नृत्य भी करते हैं, यह प्रलयंकर की मस्ती का प्रतीक है, व्यक्ति उदास, निराश और खिन्न-विपन्न बैठकर अपनी उपलब्ध शक्तियों को न खोयें, पुलकित-प्रफुल्लित जीवन जियें, शिव यही करते हैं, इसी नीति को अपनाते हैं, उनका डमरू ज्ञान, कला, साहित्य और विजय का प्रतीक है, यह पुकार-पुकारकर कहता है कि शिव कल्याण के देवता हैं।
उनके विचारों रूपी खेत में कल्याणकारी योजनाओं के अतिरिक्त और किसी वस्तु की उपज नहीं होती, विचारों में कल्याण की समुद्री लहरें हिलोरें लेती हैं, उनके हर शब्द में सत्यम्, शिवम् की ही ध्वनि निकलती है, डमरू से निकलने वाली सात्त्विकता की ध्वनि सभी को मंत्रमुग्ध सा कर देती है, और जो भी उनके समीप आता है अपना सा बना लेता है।
शिव का आकार लिंग स्वरूप माना जाता है, उसका अर्थ यह है कि सृष्टि साकार होते हुए भी उसका आधार आत्मा है, ज्ञान की दृष्टि से उसके भौतिक सौंदर्य का कोई बड़ा महत्त्व नहीं है, मनुष्य को आत्मा को उपासना करनी चाहिये, उसी का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये, सांसारिक रूप, सौंदर्य और विविधता में घसीटकर उस मौलिक सौंदर्य को तिरोहित नहीं करना चाहिये।
गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी होना शिव जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना है, सांसारिक व्यवस्था को चलाते हुए भी वे योगी रहते हैं, पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वे अपनी धर्मपत्नी को भी मातृ-शक्ति के रूप में देखते हैं, यह उनकी महानता का दूसरा आदर्श है, ऋद्धि-सिद्धियाँ उनके पास रहने में गर्व अनुभव करती हैं, यहाँ उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि गृहस्थ रहकर भी आत्मकल्याण की साधना असंभव नहीं, जीवन में पवित्रता रखकर उसे हँसते-खेलते पूरा किया जा सकता है।
शिव के प्रिय आहार में एक सम्मिलित है- भांग, (भंग) अर्थात विच्छेद-विनाश, माया और जीव की एकता का भंग, अज्ञान आवरण का भंग, संकीर्ण स्वार्थपरता का भंग, कषाय-कल्मषों का भंग, यही है शिव का रुचिकर आहार, जहाँ शिव की कृपा होगी वहाँ अंधकार की निशा भंग हो रही होगी और कल्याणकारक अरुणोदय वह पुण्य दर्शन मिल रहा होगा।
शिव को पशुपति कहा गया है, पशुत्व की परिधि में आने वाली दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों का नियन्त्रण करना पशुपति का काम है, नर-पशु के रूप में रह रहा जीव जब कल्याणकर्त्ता शिव की शरण में आता है, तो सहज ही पशुता का निराकरण हो जाता है और क्रमश: मनुष्यत्व और देवत्व विकसित होने लगता है।
महामृत्युञ्जय मंत्र में शिव को त्र्यंबक और सुगंधि पुष्टि वर्धनम् गाया है, विवेक दान को त्रिवर्ग कहते हैं, ज्ञान, कर्म और भक्ति भी त्र्यंबक है, इस त्रिवर्ग को अपनाकर मनुष्य का व्यक्तित्व प्रत्येक दृष्टि से परिपुष्ट व परिपक्व होता है, उसकी समर्थता और संपन्नता बढ़ती है, साथ ही श्रद्धा, सम्मान भरा सहयोग उपलब्ध करने वाली यशस्वी उपलब्धियाँ भी करतलगत होती हैं, यही सुगंध है।
गुण कर्म स्वभाव की उत्कृष्टता का प्रतिफल यश और बल के रूप में प्राप्त होता है, इसलिये तनिक भी संदेह नहीं, इसी रहस्य का उद्घाटन महामृत्युञ्जय मंत्र में विस्तारपूर्वक किया गया है, देवताओं की शिक्षाओं और प्रेरणाओं को मूर्तमान करने के लिए अपने ही हिंदू समाज में प्रतीक पूजा की व्यवस्था की गई है, जितने भी देवताओं के प्रतीक हैं उन सबके पीछे कोई न कोई संकेत भरा पड़ा है, प्रेरणायें और दिशाएँ भरी पड़ी हैं।
अभी भगवान शंकर का उदाहरण दे रहा था मैं आपको और यह कह रहा था, कि सारे विश्व का कल्याण करने वाले शंकर जी की पूजा और भक्ति के पीछे जिन सिद्धांतों का समावेश है, हमको उन्हें सीखना चाहिये था, जानना चाहिये था और जीवन में उतारना चाहिए था, लेकिन हम उन सब बातों को भूलते हुए चले गयें और केवल चिह्न−पूजा तक सीमाबद्ध रह गये।
विश्व-कल्याण की भावना को भी हम भूल गये जिसे 'शिव' शब्द के अर्थों में बताया गया है, शिव' माने कल्याण, कल्याण की दृष्टि रखकर के हमको कदम उठाने चाहिये और हर क्रिया-कलाप एवं सोचने के तरीके का निर्माण करना चाहिये, यह शिव शब्द का अर्थ होता है, सुख हमारा कहाँ है? यह नहीं, वरन कल्याण हमारा कहाँ है? कल्याण को देखने की अगर हमारी दृष्टि पैदा हो जाए तो यह कह सकते हैं कि हमने भगवान शिव के नाम का अर्थ जान लिया।
'ॐ नम: शिवाय' का जप तो किया, लेकिन 'शिव' शब्द का मतलब क्यों नहीं समझा, मतलब समझना चाहिये था और तब जप करना चाहिये था, लेकिन हम मतलब को छोड़ते चले जा रहे हैं और बाह्य रूप को पकड़ते चले जा रहे हैं, इससे काम बनने वाला नहीं है, हिंदू समाज के पूज्य जिनकी हम दोनों वक्त आरती उतारते हैं, जप करते हैं, शिवरात्रि के दिन पूजा और उपवास करते हैं, और न जाने क्या-क्या प्रार्थनायें करते-कराते हैं।
क्या वे भगवान शंकर हमारी कठिनाइयों का समाधान नहीं कर सकते? क्या हमारी उन्नति में कोई सहयोग नहीं दे सकते? भगवान को देना चाहिये, हम उनके प्यारे हैं, उपासक हैं, हम उनकी पूजा करते हैं, वे बादल के तरीके से हैं, अगर पात्रता हमारी विकसित होती चली जाएगी तो वह लाभ मिलते चले जाएँगे जो शंकर भक्तों को मिलने चाहिये।
जय महादेव!
ओऊम् नमः शिवाय्!
33 करोड़ नहीं 33 कोटी देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में ;
कोटि = प्रकार ।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते हैं ।
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता ।
हिंदू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उड़ाई गयी की हिन्दूओं के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में :-
12 प्रकार हैँ :-
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँशभाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...!
8 प्रकार हैं :-
वासु:, धरध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार हैं :-
रुद्र: ,हरबहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार ।
कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी
यह बहुत ही अच्छी जानकारी है इसे अधिक से अधिक लोगों में बाँटिये और इस कार्य के माध्यम से पुण्य के भागीदार बनिये ।
👉 एक हिंदू होने के नाते जानना आवश्यक है ।
🙏अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाए
📜अपने भारत की संस्कृति
को पहचानें।
ज्यादा से ज्यादा
लोगों तक पहुचायें।
खासकर अपने बच्चों को बताए
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दुसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
पञ्च देव -
गणेश ,
विष्णु ,
शिव ,
देवी ,
सूर्य !
पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
आठ लक्ष्मी -
आग्घ ,
विद्या ,
सौभाग्य ,
अमृत ,
काम ,
सत्य ,
भोग ,एवं
योग लक्ष्मी !
नव दुर्गा --
शैल पुत्री ,
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,
कात्यायिनी ,
कालरात्रि ,
महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !
दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल !
मुख्य ११ अवतार -
मत्स्य ,
कच्छप ,
वराह ,
नरसिंह ,
वामन ,
परशुराम ,
श्री राम ,
कृष्ण ,
बलराम ,
बुद्ध ,
एवं कल्कि !
बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
बारह राशी -
मेष ,
वृषभ ,
मिथुन ,
कर्क ,
सिंह ,
कन्या ,
तुला ,
वृश्चिक ,
धनु ,
मकर ,
कुंभ ,
कन्या !
बारह ज्योतिर्लिंग -
सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल ,
ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ ,
त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !
पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
आचार्य अनिल वर्मा
9811715366
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नवरत्न

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प्रिय मित्रो आज हम आपको राशि रत्न से सम्बंधित जानकारी दे रहे है ,
रत्न -उपरत्न मिलकर लगभग ८४ प्रकार के रत्न मुख्यता इस्तेमाल होते है परंतु ज्योतिष अनुसार प्रत्येक राशि और व्यक्ति के लग्न भाव अनुसार जो रत्न पहनाये जाते है वो मुख्य ९ प्रकार के और उनके उपरत्न अलग होते है ,
मुख्य रत्न मोती ,मूंगा ,माणक ,पन्ना ,नीलम ,पुखराज ,हीरा ,गोमेद ,लहसुनिया होते है इनके अलग अलग उपरत्न  होते है जो मुख्या रत्न से सस्ते होते है और जो देखने मैं इन मुख्य रत्नों जैसे ही लगते है।
1.मोती -यह रत्न समुन्दर में शीप में पाया जाता है शीप, एक समुंदरी जीव का खोल होता है ,यह रत्न मानसिक शांति के लिए ,शरीर मैं कैल्सियम की कमी दूर कर के लिए और भाग्य वर्धक धनवर्धक,चन्द्रमा का मुख्य रत्न है ,यह रत्न कर्क लग्न का मुख्य रत्न है और वृश्चिक मीन लग्न के लिए भी भाग्य वर्धक है ,इसकी भस्म जो आयुर्वेदिक ओषधि है उसे मुक्ता भस्म कहते है।
मोती आजकल चीन में कृत्रिम रूप से भी बनाया जाता है ,साउथ सी और खाड़ी का मोती बहुत अच्छा होता है।
2.मूंगा-यह रत्न भी समुन्दर की गहराई में लकड़ी जैसी चट्टानों का बना होता है ,यह रत्न मुख्यता मंगल गृह के शुभ प्रभाव को बढ़ाने , व्यक्ति को एनरजेटिक बनाने ,हिम्मत देने और हृदय को मजबूत करने के लिए पहनाया जाता है। इसकी भस्म को परवल भस्म कहते है।
मेष और वृश्चिक लग्न का मुख्या रत्न और कर्क ,मीन,सिंह  धनु लग्न के लिए भी भाग्यवर्धक रत्न है।
3.पन्ना -यह रत्न पहाड़ी छेत्र के तलहटी से प्राप्त होता है इसका रंग हरा ,हल्का या गहरा हरा भी होता है , बढ़िया पन्ना कोलंबिया ,जाम्बिया ,से प्राप्त होता है , इसकी भस्म को आयुर्वेद अनुसार अनेको बीमारियों में काम मैं लिया जाता है ,यह रत्न हृदय ,मस्तिष्क ,बुद्धि के लिए,व्यापर कार्य ,पड़ने लिखने के कार्य ,गणित के कार्यो मैं  बहुत उपयोगी है ,
बुध गृह का विशेष रत्न मिथुन ,कन्या लग्न वृष ,तुला मैं भी पहनाया जा सकता है ,
माणक -यह रत्न लाल गुलाबी रंग का होता है ,यह भारत ,बर्मा थाईलैंड मैं अधिक मिलता है ,बर्मा का 4.माणक सबसे महँगा होता है। यह सूर्य का विशेष रत्न है ,इसकी भस्म ह्रदय की मजबूती के लिए बहुत उपयोगी है ,यह उच्च रक्तचाप वालो को नहीं खानी चहिये ,
सिंह लगन का मुख्या रत्न है , धनु लग्न के लिए भी भाग्यवर्धक है ,
5.पुखराज -इसका रंग पिला,सफ़ेद,हल्का पिला ,गुलाबी कभी कभी नीलम की आभा के साथ पिला रंग भी होता है ,पिला पुखराज बृहस्पति गृह के लिए पहना जाता है ,बढ़िया पुखराज लंका से आता  है।
धनु मीन लगन का मुख्या रत्न है , मेष ,कर्क ,वृश्चिक लग्न को भी पहनाया जाता है।
6.नीलम -इसका रंग नीला ,हल्का नीला ,होता है ,दरअसल नीलम पुखराज एक ही खान से मिलते है जिसका रंग नीला उसे नीलम जिसका रंग पिला उसे पुखराज और जिसका रंग दोनों रंगों से मिला होता है उसे पीताम्बरी कहते है। (पीताम्बरी कुंभ लगन के लिए विशेष शुभ होती है )
शनि गृह का मुख्या रत्न है ,इसे मकर ,कुम्भ तुला ,वृष लगन वाले पहन सकते है ,इसके बारे मैं किद्वंती है की यह रत्न बहुत जल्दी नफा नुकसान कर देता है ,इसे लोग पहले बांध कर टेस्ट करके पहने की सलाह देते है। इस रत्न के साथ हीरा या ओपल भी बहुत शुभ होता है।
7.हीरा -यह रत्न बहुत चमकदार ,आकर्षक महँगा होता है. रत्न का काम ही आकर्षण करना है ,स्त्रियों के लिए यह विशेष रत्न है।yah शुक्र गृह का रत्न है।  इसके उपरत्न मैं ओपल या जिरकॉन को भी पहना जाता है।
यह रत्न वृष तुला लग्न के लिए विशेष रत्न है इसे मकर ,कुंभ लगन वाले भी पहन सकते है। हीरा और नीलम रत्न हमेशा एक दूसरे के पूरक मने जाते है ,दरअसल शनि का रत्न नीलम व्यक्ति को गहराई से सोचने,एकाकी जीवन ,आध्यात्मिकता  की प्रवर्ति दे देता है और व्यक्ति भोग विलास से दूर हो जाता है इसी प्रकार हीरा पहने वाला व्यक्ति अधिक भोग विलासी कामुक हो जाता है इसलिए ये दोनों रत्न एक दूसरे के पूरक हो जाते है।
8.गोमेद -यह रत्न भूरा ,पिला ,कालापन लिए हुए भूरा रंग का होता है। यह रत्न मुख्य राहु गृह के लिए उपयोगी है ,जिस व्यक्ति की कुंडली मैं राहु केंद्र या त्रिकोण मैं शुभ अकेला हो , या केंद्र के स्वामी के साथ त्रिकोण मैं और त्रिकोण के स्वामी के साथ केंन्द्र मैं हो उन्हें ही पहनाया जा सकता है ,इस रत्न को बिना ज्योतिष सलाह के कभी न पहने। यह रत्न नुकसान करने मैं नीलम से भी ज्यादा खतरनाक है ,राहु की शांति के लिए इसका जलप्रवाह बहुत सुबह होता है.
9.लहसुनिया -यह रत्न सलेटी रंग पर बिल्ली के आँख जैसी धारी लिए होता है इसकिये इसे कैट्स ऑय कहते है ,यह रत्न केतु गृह का मुख्या गृह है इसे भी गोमेद की तरह विचार करके पहना जाता है।

किसी भी ज्योतिष सलाह के लिए रत्न ,रुद्राक्ष धारण करने की विधि,इनका मंत्र ,प्राणप्रतिष्ठा करवाने के लिए , आपके अनुसार कौन सा रत्न शुभ है जानने के लिए संपर्क करें -
आचार्य अनिल वर्मा
9811715366

बगलामुखी माला मंत्र

भगवती, बगलामुखी माला मंत्र
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ॐ नमो भगवती, ॐ नमो वीरप्रतापविजय भगवती, बगलामुखी!
मम सर्वनिन्दकानाम् सर्वदुष्टानाम वाचम् मुखम् पदम् स्तम्भय,
जिव्हाम मुद्रय मुद्रय, बुद्धिम् विनाशय विनाशाय, अपरबुद्धिम कुरु,
कुरु, अत्मविरोधिनाम् शत्रुणाम् शिरो, ललाटम् मुखम्, नेत्र, कर्ण,
नासिकोरू, पद, अणु-अणु, दन्तोष्ठ, जिव्हा, तालु, गुह्य, गुदा, कटि,
जानु, सर्वांगेषु केशादिपादान्तम् पादादिकेश्पर्यन्तम् , स्तम्भय स्तम्भय,
खें खीं मारय मारय, परमंत्र, परयंत्र, परतन्त्राणि, छेदय छेदय, आत्ममन्त्रतंत्राणि
रक्ष रक्ष, ग्रहम निवारय निवारय , व्याधिम् विनाशय विनाशय, दुखम् हर हर,
दारिद्रयम् निवारय निवारय, सर्वमंत्रस्वरूपिणि, दुष्टग्रह, भूतग्रह, पाषाणग्रह,
सर्वचाण्डालग्रह, यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह, भूतप्रेत पिशाचानाम्, शाकिनी
डाकिनीग्रहाणाम, पूर्वदिशम् बंधय बंधय, वार्ताली! माम् रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशम् बंधय
बंधय किरातवार्ताली! माम् रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशम् बंधय बंधय, स्वप्नवार्ताली! माम्
रक्ष रक्ष, उत्तरदिशम् बंधय बांधय भद्रकालि! माम् रक्ष रक्ष, ऊर्ध्व दिशम् बंधय
बंधय उग्रकाली! माम् रक्ष रक्ष, पाताल दिशम् बंधय बंधय बगला परमेश्वरी! माम्
रक्ष रक्ष, सकल रोगान् विनाशय विनाशय, शत्रु पलायनम् पंचयोजनम्ध्ये
राजजनस्वपचम् कुरु कुरु, शत्रून दह दह, पच पच, स्तम्भयस्तम्भय, मोहय मोहय,
आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय हुम् फट् स्वाहा |

इस मंत्र का नित्य एक माला जाप रात्रि मैं करने से किसी भी प्रकार का भय ,चोरी,दुर्घटना,बीमारी,क्लेश,और शत्रु क्षय होता है।
जय माँ।