राहु

राहु

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली। चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु: सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥
राहु और केतु की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है। यद्यपि यह सूर्य चन्द्र मंगल आदि की भांति कोई धरातल वाला ग्रह नही है,इसलिये राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है,राहु के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक आख्यान है,शनि की भांति राहु से भी लोग भयभीत रहते है,दक्षिण भारत में तो लोग राहु काल में कोई कार्य भी नही करते हैं।
राहु के सम्बन्ध में समुद्र मंथन वाली कथा से प्राय: सभी परिचित है,एक पौराणिक आख्यान के अनुसार दैत्यराज हिरण्य कशिपु की पुत्री सिंहिका का पुत्र था,उसके पिता का नाम विप्रचित था। विप्रचित के सहसवास से सिंहिका ने सौ पुत्रों को जन्म दिया उनमें सबसे बडा पुत्र राहु था।
देवासुर संग्राम में राहु भी भाग लिया तो वह भी उसमें सम्मिलित हुआ। समुद्र मंथन के फ़लस्वरूप प्राप्त चौदह रत्नों में अमृत भी था,जब विष्णु सुन्दरी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान करा रहे थे,तब राहु उनका वास्तविक परिचय और वास्तविक हेतु जान गया। वह तत्काल माया से रूप धारण कर एक पात्र ले आया,और अन्य देवतागणों के बीच जा बैठा,सुन्दरी का रूप धरे विष्णु ने उसे अमृत पान करवा दिया,तभी सूर्य और चन्द्र ने उसकी वास्तविकता प्रकट कर दी,विष्णु ने अपने चक्र से राहु का सिर काट दिया,अमृत पान करने के कारण राहु का सिर अमर हो गया,उसका शरीर कांपता हुआ गौतमी नदी के तट पर गिरा,अमृतपान करने के कारण राहु का धड भी अमरत्व पा चुका था।
इस तथ्य से देवता भयभीत हो गये,और शंकरजी से उसके विनास की प्रार्थना की,शिवजी ने राहु के संहार के लिये अपनी श्रेष्ठ चंडिका को मातृकाओं के साथ भेजा,सिर देवताओं ने अपने पास रोके रखा,लेकिन बिना सिर की देह भी मातृकाओं के साथ युद्ध करती रही।
अपनी देह को परास्त होता न देख राहु का विवेक जागृत हुआ,और उसने देवताओं को परामर्श दिया कि इस अविजित देह के नाश लिये उसे पहले आप फ़ाड दें,ताकि उसका व्ह उत्तम रस निवृत हो जाये,इसके उपरांत शरीर क्षण मात्र में भस्म हो जायेगा,राहु के परामर्श से देवता प्रसन्न हो गये,उन्होने उसका अभिषेक किया,और ग्रहों के मध्य एक ग्रह बन जाने का ग्रहत्व प्रदान किया,बाद में देवताओं द्वारा राहु के शरीर की विनास की युक्ति जान लेने पर देवी ने उसका शरीर फ़ाड दिया,और अम्रुत रस को निकालकर उसका पान कर लिया।
ग्रहत्व प्राप्त कर लेने के बाद भी राहु सूर्य और चन्द्र को अपनी वास्तविकता के उद्घाटन के लिये क्षमा नही कर पाया,और पूर्णिमा और अमावस्या के समय चन्द्र और सूर्य के ग्रसने का प्रयत्न करने लगा।
राहु के एक पुत्र मेघदास का भी उल्लेख मिलता है,उसने अपने पिता के बैर का बदला चुकाने के लिये घोर तप किया,पुराणो में राहु के सम्बन्ध में अनेक आख्यान भी प्राप्त होते है।
खगोलीय विज्ञान में राहु
राहु और केतु आकाशीय पिण्ड नही है,वरन राहु चन्द्रमा और कांतिवृत का उत्तरी कटाव बिन्दु है। उसे नार्थ नोड के नाम से जाना जाता है। वैसे तो प्रत्येक ग्रह का प्रकास को प्राप्त करने वाला हिस्सा राहु का क्षेत्र है,और उस ग्रह पर आते हुये प्रकाश के दूसरी तरफ़ दिखाई देने वाली छाया केतु का क्षेत्र कहलाता है। यथा ब्रहमाण्डे तथा पिण्डे के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु के साथ राहु केतु आन्तरिक रूप से जुडे हुये है।कारण जो दिखाई देता है,वह राहु है और जो अन्धेरे में है वह केतु है।
ज्योतिष शास्त्र में राहु
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया गया है,पाराशर ने राहु को तमों अर्थात अंधकार युक्त ग्रह कहा है,उनके अनुसार धूम्र वर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा निरूपित किया है।
सामन्यत: राहु और केतु को राशियों पर आधिपत्य प्रदान नही किया गया है,हां उनके लिये नक्षत्र अवश्य निर्धारित हैं। तथापि कुछ आचार्यों ने जैसे नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के अधीन माना है,उनके अनुसार राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है।
राहु के नक्षत्र
राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति और शतभिषा है,इन नक्षत्रों में सूर्य और चन्द्र के आने पर या जन्म राशि में ग्रह के होने पर राहु का असर शामिल हो जाता है।
एक और धारणा
हमारे विचार से राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है,यह सूर्य से १९००० योजन से नीचे की ओर स्थित है,तथा सूर्य के चारों ओर नक्षत्र की भांति घूमता रहता है। शरीर में इसे पिट और पिण्डलियों में स्थान मिला है,जब जातक के विपरीत कर्म बन जाते है,तो उसे शुद्ध करने के लिये अनिद्रा पेट के रोग मस्तिष्क के रोग पागलपन आदि भयंकर रोग देता है,जिस प्रकार अपने निन्दनीय कर्मों से दूसरों को पीडा पहुंचाई थी उसी प्रकार भयंकर कष्ट देता है,और पागल तक बना देता है,यदि जातक के कर्म शुभ हों तो ऐसे कर्मों के भुगतान कराने के लिये अतुलित धन संपत्ति देता है,इसलिये इन कर्मों के भुगतान स्वरूप उपजी विपत्ति से बचने के लिये जातक को राहु की शरण में जाना चाहिये,तथा पूजा पाठ जप दान आदि से प्रसन्न करना चाहिये। गोमेद इसकी मणि है,तथा पूर्णिमा इसका दिन है। अभ्रक इसकी धातु है।
द्वादश भावों में राहु
राहु प्रथम भाव में शत्रुनाशक अल्प संतति मस्तिष्क रोगी स्वार्थी सेवक प्रवृत्ति का बनाता है।
राहु दूसरे भाव में कुटुम्ब नाशक अल्प संतति मिथ्या भाषी कृपण और शत्रु हन्ता बनाता है।
राहु तीसरे भाव में विवेकी बलिष्ठ विद्वान और व्यवसायी बनाता है।
राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है।
राहु पंचम भाग्यवान कर्मठ कुलनाशक और जीवन साथी को सदा कष्ट देने वाला होता है।
राहु छठे भाव में बलवान धैर्यवान दीर्घवान अनिष्टकारक और शत्रुहन्ता बनाता है।
राहु सप्तम भाव में चतुर लोभी वातरोगी दुष्कर्म प्रवृत्त एकाधिक विवाह और बेशर्म बनाता है।
राहु आठवें भाव में कठोर परिश्रमी बुद्धिमान कामी गुप्त रोगी बनाता है।
राहु नवें भाव में सदगुणी परिश्रमी लेकिन भाग्य में अंधकार देने वाला होता है।
राहु दसवें भाव में व्यसनी शौकीन सुन्दरियों पर आसक्त नीच कर्म करने वाला होता है।
राहु ग्यारहवें भाव में मंदमति लाभहीन परिश्रम करने वाला अनिष्ट्कारक और सतर्क रखने वाला बनाता है।
राहु बारहवें भाव में मंदमति विवेकहीन दुर्जनों की संगति करवाने वाला बनाता है।
चेतावनी
राहु के लिये जातक अपनी जन्म कुन्डली में देखें राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो,तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है,इसमे कोई संसय नही है। समय से पहले यानि महादशा अन्तरदशा आरम्भ होने से पहले राहु के बीज मन्त्र का अवश्य जाप कर लेना चाहिये। ताकि राहु प्रताडित न करे और वह समय सुख पूर्वक व्यतीत हो,याद रखें अस्त राहु भयंकर पीडाकारक होता है,चाहे वह किसी भी भाव का क्यों न हो।
राहु की विशेषता
राहु छाया ग्रह है,ग्रन्थों मे इसका पूरा वर्णन है,और श्रीमदभागवत महापुराण में तो शुकदेवजी ने स्पष्ट वर्णन किया कि यह सूर्य से १० हजार योजन नीचे स्थित है,और श्याम वर्ण की किरणें निरन्तर पृथ्वी पर छोडता रहता है,यह मिथुन राहि में उच्च का होता है धनु राशि में नीच का हो जाता है,राहु और शनि रोग कारक ग्रह है,इसलिये यह ग्रह रोग जरूर देता है। काला जादू तंत्र टोना आदि यही ग्रह अपने प्रभाव से करवाता है।अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते है,और षष्टांश में क्रूर होने पर ग्रद्य रोग हो जाते है।राहु के बारे में हमे बहुत ध्यान से समझना चाहिये,बुध हमारी बुद्धि का कारक है,जो बुद्धि हमारी सामान्य बातों की समझ से सम्बन्धित है,जैसे एक ताला लगा हो और हमारे पास चाबियों का गुच्छा है,जो बुध की समझ है तो वह कहेगा कि ताले के अनुसार इस आकार की चाबी इसमे लगेगी,दस में से एक या दो चाबियों का प्रयोग करने के बाद वह ताला खुल जायेगा,और यदि हमारी समझ कम है,तो हम बिना बिचारे एक बाद एक बडे आकार की चाबी का प्रयोग भी कर सकते है,जो ताले के सुराख से भी बडी हो,बुध की यह बौद्धिक शक्ति है क्षमता है,वह हमारी अर्जित की हुई जानकारी या समझ पर आधारित है,जैसे कि यह आदमी बडा बुद्धिमान है,क्योंकि अपनी बातचीत में वह अन्य कई पुस्तकों के उदाहरण दे सकता है,तो यह सब बुध पर आधारित है,बुध की प्रखरता पर निर्भर है,और बुध का इष्ट है दुर्गा।राहु का इष्ट है सरस्वती,सम्भवत: आपको यह अजीब सा लगे कि राहु का इष्ट देवता सरस्वती क्यों है,क्योंकि राहु हमारी उस बुद्धि का कारक है,जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है,जैसे आविष्कार की बात है,गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन ने पेड से सेब गिरने के आधार पर खोजा,यह सिद्धान्त पहले उसकी याददास्त में नही था,यहां जब दिमाग में एकदम विचार पैदा हुआ,उसका कारण राहु है,बुध नही होगा,जैसे स्वप्न का कारक राहु है,एक दिन अचानक हमारा शरीर अकडने लगा,दिमाग में तनाव घिर गया,चारों तरफ़ अशांति समझ में आने लगी,घबराहट होने लगी,मन में आने लगा कि संसार बेकार है,और इस संसार से अपने को हटा लेना चाहिये,अब हमारे पास इसका कारण बताने को तो है नही,जो कि हम इस बात का विश्लेषण कर लेते,लेकिन यह जो मानसिक विक्षिप्तता है,इसका कारण राहु है,इस प्रकार की बुद्धि का कारक राहु है,राहु के अन्दर दिमाग की खराब आलमतों को लिया गया है,बेकार के दुश्मन पैदा होना,यह मोटे तौर पर राहु के अशुभ होने की निशानी है,राहु हमारे ससुराल का कारक है,ससुराल से बिगाड कर नही चलना,इसे सुधारने के उपाय है,सिर पर चोटी रखना राहु का उपाय है,आपके दिमाग में आ रहा होगा कि चोटी और राहु का क्या सम्बन्ध है,चोटी तो गुरु की कारक है,जो लोग पंडित होते है पूजा पाठ करते है,धर्म कर्म में विश्वास करते है,वही चोटी को धारण करते है,राहु को अपना कोई भाव नही दिया गया है,इस प्रकार का कथन वैदिक ज्योतिष में तो कहा गया है,पाश्चात्य ज्योतिष में भी राहु को नार्थ नोड की उपाधि दी गयी है,लेकिन कुन्डली का बारहवां भाव राहु का घर नही है तो क्या है,इस अनन्त आकाश का दर्शन राहु के ही रूप में तो दिखाई दे रहा है,इस राहु के नीले प्रभाव के अन्दर ही तो सभी ग्रह विद्यमान है,और जितना दूर हम चले जायेंगे,यह नीला रंग तो कभी समाप्त नही होने वाला। राहु ही ब्रह्माण्ड का दृश्य रूप है।
राहु की अपनी कोई राशि नही है
राहु की अपनी कोई राशि नही है,यह जिस ग्रह के साथ बैठता है वहां तीन कार्य करता है।
१.यह उस ग्रह की पूरी शक्ति समाप्त कर देता है।
२.यह उस ग्रह और भाव की शक्ति खुद लेलेता है।
३.यह उस भाव से सम्बन्धित फ़लों को दिलवाने के पहले बहुत ही संघर्ष करवाता है फ़िर सफ़लता देता है।
कहने का तात्पर्य है कि बडा भारी संघर्ष करने के बाद सत्ता देता है और फ़िर उसे समाप्त करवा देता है।
राहु कूटनीति का ग्रह है
राहु कूटनीति का सबसे बडा ग्रह है,राहु जहां बैठता है शरीर के ऊपरी भाग को अपनी गंदगी से भर देता है,यानी दिमाग को खराब करने में अपनी पूरी पूरी ताकत लगा देता है। दांतों के रोग देता है,शादी अगर किसी प्रकार से राहु की दशा अन्तर्दशा में कर दी जाती है,तो वह शादी किसी प्रकार से चल नही पाती है,अचानक कोई बीच वाला आकर उस शादी के प्रति दिमाग में फ़ितूर भर देता है,और शादी टूट जाती है,कोर्ट केश चलते है,जातिका या जातक को गृहस्थ सुख नही मिल पाते है।इस प्रकार से जातक के पूर्व कर्मो को उसी रूप से प्रायश्चित कराकर उसको शुद्ध कर देता है।
राहु जेल और बन्धन का कारक है
राहु का बारहवें घर में बैठना बडा अशुभ होता है,क्योंकि यह जेल और बन्धन का मालिक है,१२ वें घर में बैठ कर अपनी महादशा अन्तर्दशा में या तो पागलखाने या अस्पताल में या जेल में बिठा देता है,यह ही नही अगर कोई सदकर्मी है,और सत्यता तथा दूसरे के हित के लिये अपना भाव रखता है,तो एक बन्द कोठरी में भी उसकी पूजा करवाता है,और घर बैठे सभी साधन लाकर देता है। यह साधन किसी भी प्रकार के हो सकते है।
राहु संघर्ष करवाता है
हजारों कुन्डलियों को देखा,जो महापुरुष या नेता हुये उन्होने बडे बडे संघर्ष किये तब जाकर कहीं कुर्सी पर बैठे,जवाहर लाल नेहरू सुभाषचन्द्र बोस सरदार पटेल जिन्होने जीवन भर संघर्ष किया तभी इतिहास में उनका नाम लिखा गया,हिटलर की कुन्डली में भी द्सवें भाव में राहु था,जिसके कारण किसी भी देश या सरकार की तरफ़ मात्र देखलेने की जरूरत से उसको मारकाट की जरूरत नही पडती थी।
राहु १९वीं साल में जरूर फ़ल देता है
यह एक अकाट्य सत्य है कि किसी कुन्डली में राहु जिस घर में बैठा है,१९ वीं साल में उसका फ़ल जरूर देता है,सभी ग्रहों को छोड कर यदि किसी का राहु सप्तम में विराजमान है,चाहे शुक्र विराजमान हो,या बुध विराजमान हो या गुरु विराजमान हो,अगर वह स्त्री है तो पुरुष का सुख और पुरुष है तो स्त्री का सुख यह राहु १९ वीं साल में जरूर देता है। और उस फ़ल को २० वीं साल में नष्ट भी कर देता है। इसलिये जिन लोगों ने १९ वीं साल में किसी से प्रेम प्यार या शादी कर ली उसे एक साल बाद काफ़ी कष्ट हुये। राहु किसी भी ग्रह की शक्ति को खींच लेता है,और अगर राहु आगे या पीछे ६ अंश तक किसी ग्रह के है तो वह उस ग्रह की सम्पूर्ण शक्ति को समाप्त ही कर देता है।
राहु की दशा १८ साल की होती है
राहु की दशा का समय १८ साल का होता है,राहु की चाल बिलकुल नियमित है,तीन कला और ग्यारह विकला रोजाना की चाल के हिसाब से वह अपने नियत समय पर अपनी ओर से जातक को अच्छा या बुरा फ़ल देता है,राहु की चाल से प्रत्येक १९ वीं साल में जातक के साथ अच्छा या बुरा फ़ल मिलता चला जाता है,अगर जातक की १९ वीं साल में किसी महिला या पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध बने है,तो उसे ३८ वीं साल में भी बनाने पडेंगे,अगर जातक किसी प्रकार से १९ वीं साल में जेल या अस्पताल या अन्य बन्धन में रहा है,तो उसे ३८ वीं साल में,५७ वीं साल में भी रहना पडेगा। राहु की गणना के साथ एक बात और आपको ध्यान में रखनी चाहिये कि जो तिथि आज है,वही तिथि आज के १९ वीं साल में होगी।
राहु चन्द्र हमेशा चिन्ता का योग बनाते हैं
राहु और चन्द्र किसी भी भाव में एक साथ जब विराजमान हो,तो हमेशा चिन्ता का योग बनाते है,राहु के साथ चन्द्र होने से दिमाग में किसी न किसी प्रकार की चिन्ता लगी रहती है,पुरुषों को बीमारी या काम काज की चिन्ता लगी रहती है,महिलाओं को अपनी सास या ससुराल खानदान के साथ बन्धन की चिन्ता लगी रहती है। राहु और चन्द्रमा का एक साथ रहना हमेशा से देखा गया है,कुन्डली में एक भाव के अन्दर दूरी चाहे २९ अंश तक क्यों न हो,वह फ़ल अपना जरूर देता है। इसलिये राहु जब भी गोचर से या जन्म कुन्डली की दशा से एक साथ होंगे तो जातक का चिन्ता का समय जरूर सामने होगा।
पंचम का राहु औलाद और धन में धुंआ उडा देता है
राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर जातक को सट्टा लाटरी और शेयर बाजार से धन कमाने का बहुत शौक होता है,राहु के साथ बुध हो तो वह सट्टा लाटरी कमेटी जुआ शेयर आदि की तरफ़ बहुत ही लगाव रखता है,अधिकतर मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार का जातक निफ़्टी और आई.टी. वाले शेयर की तरफ़ अपना झुकाव रखता है। अगर इसी बीच में जातक का गोचर से बुध अस्त हो जाये तो वह उपरोक्त कारणों से लुट कर सडक पर आजाता है,और इसी कारण से जातक को दरिद्रता का जीवन जीना पडता है,उसके जितने भी सम्बन्धी होते है,वे भी उससे परेशान हो जाते है,और वह अगर किसी प्रकार से घर में प्रवेश करने की कोशिश करता है,तो वे आशंकाओं से घिर जाते है। कुन्डली में राहु का चन्द्र शुक्र का योग अगर चौथे भाव में होता है तो जातक की माता को भी पता नही होता है कि वह औलाद किसकी है,पूरा जीवन माता को चैन नही होता है,और अपने तीखे स्वभाव के कारण वह अपनी पुत्र वधू और दामाद को कष्ट देने में ही अपना सब कुछ समझती है।
सही भाव में राहु-गुरु चांडाल योग को हटाकर यान चालक बनाता है

बुध अस्त में जन्मा जातक कभी भी राहु वाले खेल न खेले तो बहुत सुखी रहता है,राहु का सम्बन्ध मनोरंजन और सिनेमा से भी है,राहु वाहन का कारक भी है राहु को हवाई जहाज के काम,और अंतरिक्ष में जाने के कार्य भी पसंद है,अगर किसी प्रकार से राहु और गुरु का आपसी सम्बन्ध १२ भाव में सही तरीके से होता है,और केतु सही है,तो जातक को पायलेट की नौकरी करनी पडती है,लेकिन मंगल साथ नही है तो जातक बजाय पायलेट बनने के और जिन्दा आदमियों को दूर पहुंचाने के पंडिताई करने लगता है,और मरी हुयी आत्माओं को क्रिया कर्म का काम करने के बाद स्वर्ग में पहुंचाने का काम भी हो जाता है। इसलिये बुध अस्त वाले को लाटरी सट्टा जुआ शेयर आदि से दूर रहकर ही अपना जीवन मेहनत वाले कामों को करके बिताना ठीक रहता है।

राहु सम्बन्धी अन्य विवरण
राहु से सम्बन्धित रोग उनके निवारण हेतु उपाय राहु के रत्न उपरत्न राहु से सम्बन्धित जडी बूटियां राहु के निमित्त उपाय और रत्न आदि धारण करने की विधि मंत्र स्तोत्र आदि का विवरण इस प्रकार से है।
राहु के रोग
राहु से ग्रस्त व्यक्ति पागल की तरह व्यवहार करता है
पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन खाजखुजली भूत चुडैल का शरीर में प्रवेश बिना बात के ही झूमना,नशे की आदत लगना,गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना,शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना,होरर शो देखने की आदत होना,भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना,नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना,कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना,शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना,शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना,ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना,नींद नही आना,शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना,बाजी नामक रोग लगा लेना,जैसे गाडीबाजी,रंडीबाजी,आदि,इन रोगों के अन्य रोग भी राहु के है,जैसे कि किसी दूसरे के मामले में अपने को दाखिल करने के बाद दो लोगों को आपस में लडाकर दूर बैठ कर तमाशा देखना,लोगों को पोर्न साइट बनाकर या क्लिप बनाकर लूटने की क्रिया करना और इन कामों के द्वारा जनता का जीवन बिना किसी हथियार के बरबाद करना भी है। अगर उपरोक्त प्रकार के भाव मिलते है,तो समझना चाहिये कि किसी न किसी प्रकार से राहु का प्रकोप शरीर पर है,या तो गोचर से राहु अपनी शक्ति देकर मनुष्य जीवन को जानवर की गति प्रदान कर रहा है,अथवा राहु की दशा चल रही है,और पुराने पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है।
राहु के रत्न उप रत्न
राहु के समय में अधिक से अधिक चांदी पहननी चाहिये
राहु के रत्न गोमेद,तुरसा,साफ़ा आदि माने जाते है,लेकिन राहु के लिये कभी भी रत्नों को चांदी के अन्दर नही धारण करना चाहिये,क्योंकि चांदी के अन्दर राहु के रत्न पहिनने के बाद वह मानसिक चिन्ताओं को और बढा देता है,गले में और शरीर में खाली चांदी की वस्तुयें पहिनने से फ़ायदा होता है। बुधवार या शनिवार को को मध्य रात्रि में आर्द्रा नक्षत्र में अच्छा रत्न धारण करने के बाद ४० प्रतिशत तक फ़ायदा हो जाता है,रत्न की जब तक उसके ग्रह के अनुसार विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है,तो वह रत्न पूर्ण प्रभाव नही देता है,इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी या पेन्डल में लगवाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करवालेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर अपने आप में पत्थर ही है,जिस प्रकार से किसी मूर्ति को दुकान से लाने के बाद उसे मन्दिर में स्थापित करने के बाद प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह फ़ल देना चालू करती है,और प्राण प्रतिष्ठा नही करवाने पर पता नही और कौन सी आत्मा उसके अन्दर आकर विराजमान हो जावे,और बजाय फ़ल देने के नुकसान देने लगे,उसी प्रकार से रत्न की प्राण प्रतिष्ठा नही करने पर भी उसके अन्दर और कौन सी शक्ति आकर बैठ जावे और जो किया जय वह खाकर गलत फ़ल देने लगे,इसका ध्यान रखना चाहिये,राहु की दशा और अन्तर दशा में तथा गोचर में चन्द्र सूर्य और लगन पर या लगनेश चन्द्र लगनेश या सूर्य लगनेश के ऊपर जब राहु की युति हो तो नीला कपडा भूल कर नही पहिनना चाहिये,क्योंकि नीला कपडा राहु का प्रिय कपडा है,और उसे एकपडे के पहिनने पर या नीली वस्तु प्रयोग करने पर जैसे गाडी या सामान पता नही कब हादसा देदे यह पता नही होता है।
राहु की जडी बूटियां
चंदन को माथे में लगाने वाला राहु से नही घबडाता
रत्न की अनुपस्थिति में राहु के लिये जडी बूटियों का प्रयोग भी आशातीत फ़ायदा देता है,इसकी जडी बूटियों में सफ़ेद चंदन को महत्ता दी गयी है,इसे आर्द्रा नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को आधी रात के समय काले धागे में बांध कर पुरुष अपनी दाहिनी बाजू में और स्त्रियां अपनी बायीं बाजू में धारण कर सकती है। इसके धारण करने के बाद राहु का प्रभाव कम होना चालू हो जाता है।
राहु के लिये दान
आर्द्रा स्वाति शभिषा नक्षत्रों के काल में अभ्रक लौह जो हथियार के रूप में हो,तिल जो कि किसी पतली किनारी वाली तस्तरी में हो,नीला कपडा,छाग,तांबे का बर्तन,सात तरह के अनाज,उडद (माह),गोमेद,काले फ़ूल,खुशबू वाला तेल,धारी वाले कम्बल,हाथी का बना हुआ खिलौना,जौ धार वाले हथियार आदि।
राहु गायत्री
नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।
राहु का वैदिक बीज मंत्र
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥
राहु का जाप मंत्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥