#रत्न कैसे काम करते है।

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#रत्न कैसे काम करते हैं ?
रत्नों अवशोषित तरंगें हमारे तन और मन पर जो सूक्ष्मतर तरंगे का प्रभाव छोडती है वह अद्रश्य चेतना का विषय है | उसे रसायन, भोतिक, जैविक आदि शास्त्रों की तरह प्रयोगशाला में जांचा-परखा नहीं जा सकता | रत्नों की कार्य पद्धति ठीक रंग चिकित्सा की तरह है | जिस रंग के कारण शरीर के अवयवों में न्यूनता आती है, #रत्न #सूर्य की रश्मियों से वह रंग शोषित करके शरीर में समाविस्ट कर देते हैं | रत्नों से सूक्ष्मतर स्पंदन हमारे स्वभाव, गुण तथा कर्मानुसार प्रभाव छोड़ते हैं और हमें अनेक समस्यों से मुक्ति दिलाते हैं |
यह पूर्णतया वैज्ञानिक है। इसीलिए #आभूषण के रुप में पहनने के साथ रत्न द्वारा भाग्यशाली प्रभाव पाने के लिए भी लगभग प्रत्येक देश में पहना जाता है। रत्न का अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव इस बात पर भी निर्भर करता है कि उनका उचित चयन किया गया है अथवा नहीं। यह कार्य एक #रत्न #विज्ञान की जानकारी रखने वाला विद्वान ही कर सकता। इसके लिए लम्बी गणनाऍ करनी पड़ती हैं जो दोनों वर्गो के लिए उचित ज्ञान के अभाव में संभव नहीं हैं। रत्न का उचित चुनाव न हो पाने के कारण व्यक्ति को उसका लाभ भी नहीं मिल पाता और इसीलिए इस विज्ञान को अंधविश्वास, ठगी, हास्यासपद आदि की श्रेणी में रख दिया जाता है।
#सूर्य की #किरणों को जब प्रिज्म से निकलने दिया जाता है तो वह किरण सात रंगों में दिखाई देती है। इसको यदि पर्दे पर लिया जाए तो यह सात रंग निश्चित क्रम में देखे जा सकते हैं। रंगो का यह क्रम है – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल। यह रंग कैसे दिखाई देते हैं, यह समझ लिया जाए तो रत्न विज्ञान सरल हो जाएगा। किसी भी वस्तु के रंग का हमें प्रकाश से ही आभास होता है। जिस रंग या रंगों की वस्तु होती है, #सूर्य #प्रकाश किरण का वह रंग उस में समाहित नहीं हो पाता जबकि उस रंग के अलावा सब रंग उसमें समाहित हो जाते है। परावर्तन के नियम से जब समाहित न होने वाले रंग की किरण हमारी ऑख तक पहॅुचती है तो हमें यह रंग प्रतीत होता है। उदाहरण के लिए कोई नीले रंग का फूल किरण के छः रंग तो अपने में समाहित कर लेगा। सातवॉ नीला रंग हमारी ऑख में पड़ेगा और हमें फूल नीला प्रतीत होगा।
हमारे ग्रहों के भी सात रंग हैं, यह सिद्ध किया जा चुका है। सूर्य का रंग नारंगी है। चंद्रमा का श्वेत, मंगल का लाल, बुद्ध का हरा, गुरु का पीला, शुक्र का श्वेत और शनि का काला रंगा है। काले रंग का अर्थ है रंगों का अभाव। यह रंग अन्य रंगों को अपने अंदर समेट लेता है। यह कोई भी रंग बाहर नहीं फेंकता। शनि भी इसी गुण कारण रंग अपने में लेता ही लेता है, देता नहीं। इसीलिए शनि के दुष्प्रभाव के लिए दान देने की ही प्रथा है।
रत्न विभिन्न रंगों के होने के कारण किसी ग्रह विशेष का रंग बाहर फेंक देते हैं। रत्न का फोकस जितना उत्तम तराशा गया होगा, रंग विशेष का गुण उतना ही अधिक व्यक्ति के उंगली, गले, माथे आदि में छूते रहने के कारण उसमें प्रवेश करेगा। पहले घरों की खिड़कियों में रंग-बिरंगे कॉच इसी उद्देश्य से लगवाए जाते थे कि कॉच के रंगों वाली रश्मियॉ अपने गुण विशेष से घर को प्रभावित करती रहें। जल चिकित्सा का भी यही सिद्धांत है। जो गुण दोष सूर्य की रश्मियों में विभिन्न रंगों के कारण होते हैं, वह उस रंग की कॉच की बोतल द्वारा उसमें भरे शुद्ध जल में उत्पन्न करवाये जाते हैं। यह जल औषधि का कार्य करता है। शरीर में उस रंग से सम्बन्धित क्षति को यह पूरा करता है।
प्रश्न यह उठता है कि जब विभिन्न रंगों के सस्ते कॉच से कार्य चल सकता है तो महॅगें और दुर्लभ उन्हीं रंगों के रत्न क्यॅू लिए जाऍ? कॉच में भी तो रश्मियों को आत्मकेन्द्रित करने का गुण निहित है।
इसका जबाब यह है कि रत्न पूर्णतया विभिन्न रसायनों के एकत्रित होने से प्राकृतिक रुप से अन्य खनिज लवणों की तरह अरबों-खरबों वर्षों में बनतें हैं। रत्नों का बनना रसायनिक क्रिया है। यह पूर्णतया वैज्ञानिक है । सॉलिड स्टेट (सेमी कण्डक्टर) इलैक्ट्रानिकी सिलिकॉन और जर्मेनियम में जो शुद्ध रुप से विद्युत का कुचालक है, दस लाख अणुओं के पीछे एक अणु दूसरे विशेष तत्व को मिला देने पर भी विद्युत धारा के अर्धसंचालक बन जाते हैं अर्थात् इनमें एक ही दिशा में करेंट प्रवाहित हो सकता है। विपरीत दिशा में करेंट का बहना सम्भव नहीं है। रत्न भी इसी पध्दति पर काम करते हैं।
इस प्रक्रिया से शरीर और प्रयोग किए गये रत्न और दुष्प्रभाव देने वाले ग्रह के रंग स्पंदनों में सामंजस्य स्थापित होने लगता है। रंगों के अतिरिक्त पीज़ो और फोटो इलैक्ट्रिक प्रभाव द्वारा भी रत्न प्रभाव डालते हैं। पीज़ो प्रभाव अर्थात् दबाव से भी इनमें इलैक्ट्रिो मैग्निटिक प्रभाव होता है, यह सिद्ध किया जा चुका है। धीरे-धीरे उस ग्रह का प्रतिकूल प्रभाव घटने लगता है और जनसाधारण की भाषा में इस अनुरुप परिणाम को रत्नों द्वारा चमत्कार की संज्ञा दी जाने लगती है।
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