राहु

राहु के कारक
राहु और केतु की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है। यद्यपि यह सूर्य चन्द्र मंगल आदि की भांति कोई धरातल वाला ग्रह नही है,इसलिये राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है,राहु के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक आख्यान है,शनि की भांति राहु से भी लोग भयभीत रहते है,दक्षिण भारत में तो लोग राहु काल में कोई कार्य भी नही करते हैं।
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया गया है,पाराशर ने राहु को तमों अर्थात अंधकार युक्त ग्रह कहा है,उनके अनुसार धूम्र वर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा निरूपित किया है।
सामन्यत: राहु और केतु को राशियों पर आधिपत्य प्रदान नही किया गया है,हां उनके लिये नक्षत्र अवश्य निर्धारित हैं। तथापि कुछ आचार्यों ने जैसे नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के अधीन माना है,उनके अनुसार राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है।
राहु के लिये दान
आर्द्रा स्वाति शभिषा नक्षत्रों के काल में अभ्रक लौह जो हथियार के रूप में हो,तिल जो कि किसी पतली किनारी वाली तस्तरी में हो,नीला कपडा,छाग,तांबे का बर्तन,सात तरह के अनाज,उडद (माह),गोमेद,काले फ़ूल,खुशबू वाला तेल,धारी वाले कम्बल,हाथी का बना हुआ खिलौना,जौ धार वाले हथियार आदि।
राहु गायत्री
नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।
राहु का वैदिक बीज मंत्र
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: राहुवे नम:॥
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥
राहु का जाप मंत्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥