अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा नवरात्र विधान –1-oct-2016


अश्विन  शुक्ल पक्ष प्रतिपदा  नवरात्र विधान


                                   

श्री सप्तश्लोकी दुर्गा
शिव उवाच :-
 देवि तवं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायनि।
क्लौं हि कार्यसिध्यर्थमुपाय ब्रूहि यन्नतः।।
शिवजी बोले -है देवि -तुम भक्तो के लिए सुलभ हो और समस्त कर्मो का विधान करने वाली हो। कलियुग मे कामनाओं की सिद्धि हेतु कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यकरूप व्यक्त करें।
देव्युवाच ;
श्रुणु देव प्रवक्ष्यामि क्लौं सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहनाप्यम्बास्तुति प्रकाश्यते।।
देवि ने कहा -हे देव -आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुग मे समस्त कामनाओं की सिद्धि करने वाले जो साधन है वह बतलाऊँगी सुनो। उसका नाम है " अम्बास्तुति " .
वह भगवती महामाया देवि ज्ञानियो के भी चित को बलपूर्वक खींचकर मोह मे दाल देती हैं।
माँ दुर्गे। आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती है। और स्वस्थ पुरुषो द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणकारी बुद्धि प्रदान करती है। दुःख, दरिद्रता , भय ,हरनेवाली देवी आपके सिवा कौन है जिसका चित सबका उपकार करने के लिए दयार्द्र रहता है।
नारायणी। तुम सदा सब प्रकार का मंगल करने वाली हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषो द्वारा सिद्ध करने वाली शरणागतवत्सला तीन नेत्रोंवाली  गौरी हो तुम्हे नमस्कार हैं।
शरण मे आये हुए पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी।  तुम्हे नमस्कार है। सर्वस्वरूपा , सर्वेश्वरी ,तथा सब प्रकार की शक्तियों से संपन्न दिव्यस्वरूपा दुर्गा देवी।  सब भयों से हमारी रक्षा करों  तुम्हे नमस्कार हैं।  देवि : तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो। और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो।  जो लोग तुम्हारी शरण मैं जा चुके है उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं तुम्हारी शरण मैं गए हुए मनुष्य दुसरो को शरण देने वाले हो जाते है। सर्वेशवरी। तुम इसी प्रकार तीनो लोको की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
शाश्त्रों के अनुसार कलियुग का युगधर्म शक्ति उपासना है।  कहा गया है जब कलिकाल प्रबल होगा तब एकमात्र शक्ति उपासना ही भव-सागर से पार  उतारेगी। तथा यह शक्ति उपासना ही महामाया अम्बे ,भवानी की उपासना ,व्रत  एवं साधना है। अपने भीतर शक्ति का संचार करना अपने को ऊर्जावान करना ही साधना है। नवरात्री मैं शक्ति की उपासना का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।  प्रत्येक वर्ष चार नवरात्री का विधान है।

1. चैत्र नवरात्री ( नववर्ष , चैत्र शुक्ल पक्ष )
2. शरद्कालीन नवरात्री  ( अश्विन शुक्ल पक्ष )
 दो नवरात्री गुप्त नवरात्री कहलाती है।
3. माघी नवरात्री (माघ शुक्ल पक्ष )
4. आषाढ़ी नवरात्री ( आषाढ़ शुक्ल पक्ष )

दरअसल नवरात्री का अवसर ऋतुओ के परिवर्तन का समय है। इस समय महाशक्ति के वेग की घटा जो श्रृष्टि के उद्भव व् लय का कारण है , अधिक तीव्र हो जाता है। और आराधना मैं महामाया का आह्वान अधिक सुगम हो जाता है। धार्मिक ग्रंथों मैं नवरात्र को अहोरात्र कहा गया है। इस ऋतू परिवर्तन के समय व्रत करने से पिछले संचित मल का निकास व् मन और आत्मा से अशुद्ध विकार का निष्कासन  कर   मन ,आत्मा  व् शरीर को शुद्धिकरण किर्या करके नवसृजन करना भी व्रत का महत्व है। साधना द्वारा चित्त पर पड़ी धुल को हटाकर स्वछ करने की किर्या करके अपने शरीर में शक्ति भरना साधना हैं। लोक भाषा में अपने अंदर ऊर्जा रहित कोषों को उर्जामयी बनाना है। इसका अर्थ है की प्रतिज्ञा करना कि मन , कर्म ,वचन से शुद्ध कर रहा हूँ  और आगे शुभ कर्मो द्धारा इसे शुद्ध रखूँगा। अशुभ कर्म करके अपनी आत्मा , तन  अशुद्ध नहीं करूँगा। 
माँ।  जो सृजन का प्रतिक है निर्माण करती है वह शक्ति मेरे अंदर शुभ कर्मो का निर्माण करें। माँ शक्ति मुझे शक्ति से ओतप्रोत करें। इन भावनाओं से साधना करके अपने शरीर , आत्मा ,चित्त को मजबूत बनाना शुभ कर्मो से प्रवत होकर अपने क्रियमाण द्धारा प्रारब्ध को सही करना व् संचित करना ही शुभ कर्मो की यह किर्या ही व्रत व् साधना है।
साधना के नियम :-
दुर्गा पूजा के लिए घर के एकांत कमरे को शुद्ध करके लकड़ी की चौकी उत्तर-पूर्व दिशा में लाल कपड़ा बिछाकर उसपर यन्त्र ,चित्र व् मूर्ति प्रतिष्ठत करके पूजा स्थान बनाना चाहिए। पूजा स्थान शयन कक्ष , शौचालय से दूर साफ -सुथरा होना चाहिए। जाप के लिए रुद्राक्ष की या कमल गट्टे के प्राण-प्रतिष्ठत् संस्कारित माला का ही उपयोग करना चाहिए। माला को गोमुखी में रखना चाहिए। सुमेरु को कभी पार नहीं करना चाहिए। लाल रंग का उनी आसन या कम्बल प्रयोग करना चाहिए। स्वयं भी शुद्ध वस्त्र हो सके तो लाल धोती धारण करना चाहिए ,इन नौ दिनों में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। जमीं पर उसी कक्ष में सोना चाहिए। मन व् आत्मा को विकारो से दूर रखें।
साधना की सामग्री :-
पूजा के बर्तन ,पात्र ,आचमनी ,लोटा ,तस्तरी ,कटोरिया ,अगरबत्ती , धूपबत्ती ,आरती पात्र ,माला , आसन ,लाल चन्दन ,रोली ,सिन्दूर ,अक्षत ,गंगाजल ,शुद्ध जल , गुलाब जल ,इत्र ,कपूर ,रुई ,माचिस ,कलश ,नारियल ,शुद्ध देसी घी ,पंचमेवा ,फूल -माला ,केसर , पंचपल्लव ,गुड़हल लाल कनेर के फूल ,पंचामृत ,मिश्री ,दूध का बना प्रसाद आदि।

पूजा आरम्भ :--
शुद्ध जल हाथ में लेकर स्वयं को शुद्ध करें -

          अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतॊअपि वा:
            यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं बाहाभ्यन्तरः शुचिः।।

आचमन :-तीन बार मंत्रोच्चारण के साथ जल का आचमन करें :-
ओम नारायणाय नमः
ओम केशवाय नमः
ओम माधवाय नमः
         भो दीप ब्रह्मा रूपस्त्वं कर्मसाक्षी हविघ्नक्रत् । 
        यावत कर्मस्माप्तिः स्यात् तावत्वं सुस्थिरो भव।  
दीपक जलायें :-  देवि के दाहिनी और अखंड दीप स्थापित करें :-

दीपदेवताभ्यो नमः आह्वयामी स्थापयामि नमष्कारोमि।
प्रार्थना करें है दीप देवता जब तक मेरी साधना चले तब तक आप अखंड प्रकाश अखंड ज्योति फैलाते रहे और मुझे साधना की सफलता मैं सहयोग देँ। (अखंड दीप के साथ छेड़-छाड़ करें उसके साथ एक छोटा दीपक अखंड दीप की ज्योति से जल कर अलग रख लें।)
दिग्बन्ध :- जहाँ हम पूजा कर रहे हैं वह कोई बढ़ा उपस्थित हो अतः हाथ में पिली सरसों या राई लेकर दायें हाथ से ढक लें।
         अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः। 
            ये भूता विघ्नाकर्तार्स्ते गच्छ्तु शिवाज्ञया
           अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतोदिशम्
             सर्वेषामविराधेन पूजाकर्म सभारम्भे।।
मंत्र बोलकर दाने समस्त दिशाओं मैं फैला दें।
गणपति पूजन :-        
सर्प्रथम गणेश जी को एक थाली में चावलों के ढ़ेरी पर पुष्पों के आसन पर स्थापित करें। हाथ मैं अक्षत लेकर :-

हरी
गणानान्त्वा गणपति हवामहे पिर्याणान्त्वा पिर्यपति हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति हवामहे वसोमम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्
अक्षत गणेश जी को समर्पित करें और पुष्प लेकर प्रार्थना करें :-
सुमुखश्चेकदंतश्च कपिलो गजकर्णः लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।। धुम्रकेतुर्गणाघ्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः द्वादशैतानि नामानि यः पठेन्छृणुयादपि ।।
विद्यारम्भे विवाहे प्रवेशे निर्गमे तथा संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य जायते।
पुष्प चढ़ा दें :
श्री मन्महागणाधिपतये नमः।  पुष्प चढ़ायें व् गणेश जी का ध्यान करें।
  श्री लक्ष्मिनारयणाभ्यां नमः। पुष्प चढ़ायें व् लक्ष्मी नारायण जी का ध्यान करें।
श्री उमामहेश्वराभ्यां नमः। पुष्प चढ़ाये व् उमा सहित महेस्वर जी का ध्यान करें।
  श्री वाणी हिरण्यगर्भाभ्याम् नमः। पुष्प चढ़ायें  व् ब्रह्मा जी का ध्यान करें।
शची पुरन्दराभ्यां नमः। इंद्रा इन्द्राणी का ध्यान  करे।
  मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः। माता  पिता के चरणों का ध्यान करें।
  इस्टदेवताभ्यो नमः। ईस्टदेवता का ध्यान करें।
कुलदेवताभ्यो नमः। अपने कुल के देवता का ध्यान करें।
ग्रामदेवताभ्यो नमः। अपने ग्राम के देवता का ध्यान करें।
  स्थानदेवताभ्यो नमः। अपने स्थान के देवता का ध्यान करें।
वास्तुदेवताभ्यो नमः। वास्तु देवता का ध्यान करें।
  सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्व देवताओं का ध्यान करें।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
एतत्कर्मप्रधानदेवताभ्यो नमो नमः।  प्रधान देवता अर्थात माता दुर्गा जी का ध्यान करें और पुष्प अर्पित कर दें।
गणेश जी को जल स्नान , पंचामृत स्नान ,पुनः शुद्ध जल से स्नान कराकर यज्ञोपवीतवस्त्र ,आभूषण ,गंध ,अक्षत ,पुष्प दूर्वा , इत्र , दीप ,नैवेध ,ताम्बूल ,दक्षिणा अर्पित करके आरती करें प्रार्थना करें :-
  नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो। नमो व्रातेभ्यो व्रात्पतिभ्यस्च वो नमो।
 नमो ग्रत सेभ्यो  ग्रत्सपतिभ्यस्च वो नमो। नमो विरुपेभ्यो विश्वरुपेभ्यश्च वो नमो नमः।
अन्यापूज्या रिद्धि-सिद्धि गणेश महाकाली , महालक्ष्मी , महासरस्वती सहित मम गृहे स्वस्थिरो प्रसन्नो वरदोभव सर्वदा।
संकल्प :-
यजमान के हाथ में पुष्प। अक्षत ,रोली ,सुपारी , दक्षिणा देकर निम्न संकल्प बुलवाएं।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः  श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञाया प्रवर्त्तमानस्य अध् श्रीब्राह्मणोऽन्हि द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अस्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तेकदेशान्तर्गते अमुक छेत्रे , अमुक संवत्सरे 2073 , अमुकायने , अमुक ऋतॊ शरद ऋतु, महामाङ्गल्यप्रदमासोत्तमे मासे अमुक मासे अश्विन  मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ अमुक वासरे -- अपना नाम , पिता का नाम , गौत्र बोलकर उत्पन्नोहं ममात्मनः सह्पुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो दीर्घायुरारोग्येश्वर्यादिवृद्धयर्थं इह जन्मनि जन्मान्तरे व सकलदुरितोपशमनार्थं तथा अखिलआधिव्याधिजरापीड़ामृत्यु परिहार्थं सर्वार्थ कामना सिध्यर्थे दुर्गा पूजा विधानम् तथा साधनम् करिष्ये।
बोलकर पुष्प अक्षत आदि पृथ्वी पर छोड़ दें।
कलश पूजन :-
चौकी से दाहिने (उत्तर दिशा ) के कोने में स्वस्तिक बना कर वहां पर भुर-भूरि मिटटी की वेदी बनाकर उसमे जौ धन के दानें बिखेर दें। उसपर कुमकुम ,अक्षत , फूल ,अर्पित कर पानी से भर कर कलश स्थापित करें। इस कलश में पंचधातु। पंचौषधि तीर्थ का जल , कूप का जल ,सुपारी ,दूब ,हल्दी की गाँठ ,दाल दें। उसके ऊपर पंचपल्लव लगाकर उसको चावल से भरे हुए पात्र से ढक दें। अब नारियल पर स्वास्तिक बना कर लाल कपड़ा लपेटकर कलश पर स्थापित कर दें। जल का छींटा देकर अक्षत ,फूल से नारियल की पूजा करें। कलश पर दायां हाथ रखकर वरुण देव का आह्वान करें :-
सर्वे समुद्रः सरिता स्तीर्थानि जलदा नदाः। आयुंते देव पूजार्थ दुरितक्षय कारकाः।
गंगे यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निाधि कुरु।।
कलश पर कुमकुम का छींटा दें।  पुष्माला चढ़ाएँ। दक्षिणा रखें।
अमामपतये नमः प्रसन्नो भव। अनया पूजया वरुणधावाहिता देवता प्रीयन्ताम् ममः।
(कलश तथा वेदी पर कुछ जल नित्य जरूर डालते रहें। )

संक्षिप्त गुरु पूजन करें।
दुर्गा पूजा :-
आवाहन :-
आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने स्थिर भवः।
यावत पूजा करिष्यामि तावत त्वं सनिधौ भवः।
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः।
दुर्गादेवीमवाहयामी आवाहनार्थे पुष्पांजलि समर्पयामि। (पुष्प समर्पण करें )
इसके बाद माँ दुर्गा देवी की विभिन्न उपचारो से पूजा करनी चाहिए।
आसन ,पाधः ,अर्घ्य ,आचमन ,स्नान ,स्नानार्थे आचमन ,दुग्ध स्नान ,दधि स्नान ,घृत स्नान ,मधु स्नान ,शर्करा स्नान ,पंचामृत स्नान ,गंधोधक स्नान ,शुद्धोदक स्नान ,आचमन ,वस्त्र ,सौभाग्य सूत्र ,चन्दन ,कुमकुम , काजल ,दुर्वांकुर , विल्वपत्र  ,आभूषण , पुष्प माला ,सौभाग्य पेटिका ,धुप ,दीप ,नैवेध ,आचमन ,फल ,ताम्बूल ,दक्षिणा ,एवं इसके बाद आरती करनी चाहिए।
प्रदक्षिणा :-
यानि कानि पापानि पन्मान्तरकृतनि
तानि सर्वाणि नश्यन्तु पदे।
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः।
प्रदक्षिणा समर्पयामि।
मंत्र पुष्पांजलि :-
श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हादेप्रेरणा समर्पित
मंत्रपुष्पांजलि कृप्या प्रतिगृह्यतां
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः।
मंत्रपुष्पांजलि समर्पयामि।
नमस्कार :-
या देवि सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
श्री जगदम्बा दुर्गादेव्यै नमः।
नमस्करण समर्पयामि।
मंत्रहीन क्रियाहीन भक्तिहीन सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः।
क्षमायाचना समर्पयामि।
अर्पण :-
तत्सद् ब्रह्मार्पणस्तु।
ओम विष्णवे नमः विष्णवे नमः विष्णवे नमः।

इस पूजन के बाद अपने संकल्प मैं कहे हुए मनोकामना की सिद्धि के लिए निम्न मंत्र की दिन तक श्रद्धा अनुसार सुबह शाम दोनों समय यथाशक्ति मंत्र जाप करें।

  मंत्र :- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।
इस मंत्र की न्यास विधि दुर्गासप्तशती में से ले लें।
दुर्गा सप्शती का नित्य पाठ करें। दुर्गा कवच ,अर्गला श्तोत्र , किलक , देवीर्थशिर्षम। रात्रिसूक्त  का नित्य पाठ भी करना चाहिए। कुंजिका श्रोत्र के 11.21.31.51.108 पाठ श्रद्धा अनुसार रोज करें। 
प्रत्येक दिन माँ जगदम्बा के अलग -अलग स्वरूपों का ध्यान करना चाहिए।
प्रथम शैलपुत्री द्धितीयं ब्रह्मचरणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम
पंचम स्कन्दमातेति षष्ठं कत्यानिति
सप्तम कालरात्रीति महागौरी चष्टमम्
नवमंn सिद्धिदात्री नवदुर्गाः प्रकीर्तिका
उक्तन्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।

        Acharya Anil Verma
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