श्री सूक्त हिंदी अनुवाद सहित


                                                
                
मै आप सबके लिए श्री सूक्तं के मंत्र अर्थ सहित दे रहा हूँ। आप इन मंत्रो द्वारा अपने जीवन मै धन धान्य सम्पनता यश लाभ प्राप्त कर सकते है , इन मंत्रो मे से कोई भी एक मंत्र का अनुष्ठान अर्थात १२५००० मंत्र की एक आवर्ती अनुष्ठान कर सकते है , इसके लिए भगवन गणेश माँ लक्ष्मी और भगवन विष्णु का आवाहन करके नित्य ३० माला ४० दिनों तक लगातार रोज जाप करें। 
माँ महालक्ष्मी आप के संपूर्ण परिवार पर कृपा करेगी,

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  श्री सूक्तं अर्थ सहित
           ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
           चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह। (१)
हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली , चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ। 
         ॐ तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्
            यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं परुषानहम।। (२)
हे जातवेदा अग्निदेव आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै सुवर्ण ,गौ, अश्व और पुत्र पोत्रदि को प्राप्त करूँ। 
             ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनिम। 
                 श्रियं देविमुप हवये श्रीर्मा देवी जुस्ताम।। () 

जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं ,ऐसे रथ में बैठी हुई , हथियो की निनाद स संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ। दीप्यमान तथा सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर मई सर्वदा निवास करे
       ॐ कां सोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। 
                    पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम्।। ()

जिसका स्वरूप वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्यायुक्ता है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं। स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली। कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ।

        ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुस्टामुदराम्।
            तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां तवां वृणे।।(५)
चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृत कान्तिवाली , अपनी कीर्ति से देदीप्यमान , स्वर्ग लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित अत्यंत दानशीला ,कमल के मध्य रहने वाली ,सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदाती ,जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ। अतः मैं तुम्हारा आश्रय लेता हूँ

        ॐ आदित्यवर्णे तप्सोअधि जातो वनस्पतिस्तव व्रक्षोथ बिल्वः।
          तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य अलक्ष्मीः।।(६)
हे सूर्य के समान कांति वाली देवी अप्पके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक वृक्ष विशेष उत्पन्न हुआ। तदन्तर अप्पके हाथ से बिल्व का वृक्ष उत्पन्न हुआ। उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें।।

                 उपैतु मां देवसखः किर्तिक्ष्च मणिना सह।
               प्रदुभुर्तॉस्मि रास्ट्रेअस्मिन् कीर्तिंमृद्विमं ददातु मे।(७)

हे लक्ष्मी ! देवसखा अर्थात श्री महादेव के सखा (मित्र ) इन्द्र ,कुबेरादि देवतओं की अग्नि मुझे प्राप्त हो अर्थात मैं अग्निदेव की उपासना करूँ। एवं मणि के साथ अर्थात चिंतामणि के साथ या कुबेर के मित्र मणिभद्र के साथ या रत्नों के साथ ,कीर्ति कुबेर की कोशशाला या यश मुझे प्राप्त हो अर्थात धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। मैं इस संसार में उत्पन्न हुआ हूँ , अतः हे लक्ष्मी आप यश और एश्वर्या मुझे प्रदान करें।
                   क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
                  अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात्।।()
भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ। हे लक्ष्मी  आप मेरे घर में अनैश्वर्य तथा धन वृद्धि के प्रतिब धकविघ्नों को दूर करें।
                 गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यापुष्टां करीषिणीम्।
                 ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम्।।(९)
सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य,किसी से भी न दबने योग्य। धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर गोउ ,अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली , समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार मैं सादर बुलाता हूँ।।

                  मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
                 पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।(१०)

हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प। वाणी की सत्यता,गोउ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि एवं याव्ब्रिहादी) एवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य ,भोज्य। चोष्य,चतुर्विध भोज्य पदार्थ ) इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ। सम्पति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ।।

                       कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
                      श्रियम वास्य मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।(११)

"कर्दम "नामक ऋषि -पुत्र से लक्ष्मी प्रक्रस्ट पुत्रवाली हुई है। हे कर्दम !तुम मुझमें अच्छी प्रकार से निवास करो अर्थात कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी को मेरे यहाँ रहना ही होगा। हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें ,केवल अतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की मत लक्ष्मी को मेरे घर में  निवास कराओ।।
               आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।
              नि च देवीं मातरं श्रियं वास्य मे कुले।।(12)

जिस प्रकार कर्दम ली संतति 'ख्याति 'से  लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार कल्पान्तर में भी समुन्द्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी अभिप्राय से कहा जा सकता है कि वरुण देवता स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें। (पदार्थो कि सुंदरता ही लक्ष्मी है। लक्ष्मी  के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रित -ये चार पुत्र हैं। इनमे 'चिक्लीत ' से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक  लक्ष्मी  पुत्र ! तुम मेरे गृह में निवास करो। केवल तुम ही नहीं ,अपितु दिव्यगुण युक्त सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।
             आद्रॉ  पुष्करिणीं  पुष्टिं पिंडग्लां पदमालिनीम्।
            चन्द्रां  हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। (13)
हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडग्रा से अभिषिच्यमाना (आद्र शारीर वाली ) पुष्टि को देने वाली अथवा पुष्टिरूपा रक्त और पीतवर्णवाली ,कमल कि माला धारण करने वाली ,संसार को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप लक्ष्मी को बुलाओ।।
                 आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
               सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। (१४)
हे अग्निदेव !तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयद्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं,दुस्टों को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (सारांश  यह हें कि , 'जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता,उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना संसार का कोई भी कार्य नहीं चल सकता ), सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा  (अर्थात जिस प्रकार सूर्य अपने प्रकाश और वृष्टि द्वारा जगत का पालन -पोषण करता है उसी प्रकार लक्ष्मी ,ज्ञान और धन के द्वारा संसार का पालन -पोषण करती है)अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।

               तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम्
     यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योअश्र्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। (१५)
हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन जगद्विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र न जेन वाली हों ,उन्हें बुलाओ। जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं सुवर्ण , उत्तम ऐश्वर्य ,गौ ,दासी ,घोड़े और पुत्र -पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ।

                यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
               सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्।। (१६)


जो मनुष्य लक्ष्मी कि कामना करता हो ,वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत  का हवन और साथ ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें।




मंगल

मंगल
सत्य ,शारीरिक और मानसिक ताकत ,पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले पदार्थ ,भाई बहनो के गुण ,क्रूरता ,रण ,साहस ,विद्वेष ,रसोई कि अग्नि ,जाति के लोग ,सोना ,अस्त्र ,शत्रु ,चोर ,दूसरे कि स्त्री मैं रति ,मिथ्या भाषण ,वीर्य ,चित्त कि समुन्नति ,उत्साह ,उदारता ,बहादुरी ,पाप ,बुरा काम ,सेनाधिपत्य ,चोट ,,घुंगराले केश ,क्रूर दृष्टि ,स्वाभाव से उग्र ,पित्त प्रधान ,लाल रंग ,प्रचंड स्वाभाव ,साथ ही अति उदार ,रसोई और अग्नि से सम्बंधित कार्य ,शस्त्र धारण करने वाला ,सुनार, मेढ़ा ,गीदड़ी ,बन्दर ,ग्रध्र ,चोर
दान कि वस्तुए
लाल रंग ,मूंगा ,सोना ,ताम्बा ,मसूर ,गुड़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,केशर ,कस्तूरी ,रक्त बैल ,लाल चन्दन
मंत्र -ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भोमये नमः
वैदिक मंत्र -
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम् ।।
पुराणोक्त मंत्र

ॐ भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा । वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुजः ।।
दिशा
दक्षिण

चन्द्र

चन्द्र के करक
स्थूल शारीर ,युवावस्था ,सुंदर नेत्र ,रक्त प्रवाह ,मृदु वाणी ,गौर वर्ण ,सफ़ेद वस्त्र ,कफ और वात ,स्त्री ,जल के जानवर ,खरगोश ,बगुला ,सस्ता का पूजक ,जल तत्त्व
दान -मोती ,चांदी ,चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,स्वेत पुष्प ,शंख ,कपूर ,स्वेत बैल ,स्वेत चन्दन ,
जहा स्त्रियां रहती हों ,शह्द ,जल ,औषधि
मंत्र -ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः।
वैदिक मंत्र - ऊँ इमं देवा असपत्नं ग्वं सुवध्यं ।
महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै
पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणाना ग्वं राजा ।
चंद्रमा का पौराणिक मंत्र – Poranik Mantra for Moon
ऊँ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम ।।

चंद्रमा गायत्री मंत्र – Chandra Gayatri Mantra
ऊँ अमृतंग अन्गाये विधमहे कलारुपाय धीमहि, तन्नो सोम प्रचोदयात ।
चंद्रमा के देवता -अम्बा देवी
दिशा -पश्चिमोत्तर
चंद्रमा के शुभ प्रभाव के लिए  हर माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक प्रत्येक रात्रि चंडी के गिलास में कच्चा दूध , बुरा ,जल मिलकर चंद्रमा को देखते हुए अर्घ्य दे। घी का दीपक दिखाते हुए ॐ सोमाय नमः का जाप करें। पूर्णिमा को इसके साथ ही खीर बनाकर पत्ते पर रखकर भोग भी दे। 

सूर्य

नवग्रह के कारक
सूर्य :-ताम्बा ,सोना ,धेर्य ,शोर्य ,पराक्रम ,युद्ध मे विजय ,आत्मा ,शुख,प्रताप ,राजसेवा ,शक्ति,प्रकाश ,भगवन शिव सम्बंधी कार्य ,जंगल ,पहाड़ मैं यात्रा ,हवन ,कार्य मैं प्रवृति ,देवस्थान ,तीक्षणता ,उत्साह ,का विचार सूर्य से करें सूर्य के दान -ताम्बा ,गेहुँ ,लाल कपडा,माणक ,गुड़ ,घी ,केसर ,लालचंदन ,लालपुष्प ,सोना ,मूंग ,रक्त गाय 
मंत्र --ॐ ह्रां ह्रीँ ह्रौं सः सूर्याय नमः
सूर्य का वैदिक मंत्र
 ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
सूर्य का पौराणिक मंत्र
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।
सूर्य गायत्री मंत्र – 
Surya Gayatri Mantra
ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।
सूर्य का देवता -  सूर्य भगवान , शिव भगवान।
दिशा -  पूर्व दिशा

नित्य प्रतिदिन ताम्बे के पात्र में जल ,शक्कर ,लाल चन्दन डालकर अर्घ्य देना चाहिए।  सूर्य की कृपा से धन ,यश ,सम्मान ,आयु ,आरोग्यता ,सरकारी कार्यो मैं सफलता , राजनीति मैं पद मिलता है। सूर्य की कृपा से चेहरे पर तेज और आभा मंडल शुभ  ऊर्जावान होता है। सूर्य को ज्योतिष मैं पिता का स्थान व शरीर मैं आत्मा की संज्ञा दी गई है। सूर्य के ही आकर्षण से पृथ्वी आदि समस्त गृह मंडल भ्रमण करता है। 
यदि कुंडली मैं सूर्य  शुभ प्रभाव नहीं दे रहा तो सूर्य आराधना अवश्य करनी चाहिए इस एक गृह की शुभता से सभी शुभ  प्रभाव मिल सकते है। 
नित्य प्रतिदिन ताम्बे के पात्र में जल ,शक्कर ,लाल चन्दन डालकर अर्घ्य देना चाहिए।  सूर्य की कृपा से धन ,यश ,सम्मान ,आयु ,आरोग्यता ,सरकारी कार्यो मैं सफलता , राजनीति मैं पद मिलता है। सूर्य की कृपा से चेहरे पर तेज और आभा मंडल सुबह ऊर्जावान होता है। सूर्य को ज्योतिष मैं पिता का स्थान व शरीर मैं आत्मा की संज्ञा दी गई है। सूर्य के ही आकर्षण से पृह्वी आदि समस्त गृह मंडल भ्रमण करता है। यदि कुंडली मैं सूर्य सुबह प्रभाव नहीं दे रहा तो सूर्य आराधना अवश्य करनी चाहिए इस एक गृह की शुभता से सभी सुबह प्रभाव मिल सकते है। 

नवग्रह

navgrah

नवग्रह के कारक

सूर्य  के कारक
ताम्बा ,सोना ,धेर्य ,शोर्य ,पराक्रम ,युद्ध मे विजय ,आत्मा ,शुख,प्रताप ,राजसेवा ,शक्ति,प्रकाश ,भगवन शिव सम्बंधी कार्य ,जंगल ,पहाड़ मैं यात्रा ,हवन ,कार्य मैं प्रवृति ,देवस्थान ,तीक्षणता ,उत्साह ,का विचार सूर्य से करें
सूर्य के दान -ताम्बा ,गेहुँ ,लाल कपडा,माणक ,गुड़ ,घी ,केसर ,लालचंदन ,लालपुष्प ,सोना ,मूंग ,रक्त गाय
मंत्र --ॐ ह्रां ह्रीँ ह्रौं सः सूर्याय नमः
सूर्य का वैदिक मंत्र
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
सूर्य का पौराणिक मंत्र
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।
सूर्य  गायत्री मंत्र
ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।

चन्द्र के कारक
स्थूल शारीर ,युवावस्था ,सुंदर नेत्र ,रक्त प्रवाह ,मृदु वाणी ,गौर वर्ण ,सफ़ेद वस्त्र ,कफ और वात ,स्त्री ,जल के जानवर ,खरगोश ,बगुला ,सस्ता का पूजक ,जल तत्त्व
दान -मोती ,चांदी ,चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,स्वेत पुष्प ,शंख ,कपूर ,स्वेत बैल ,स्वेत चन्दन ,
जहा स्त्रियां रहती हों ,शह्द ,जल ,औषधि
मंत्र -ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः।
वैदिक मंत्र - ऊँ इमं देवा असपत्नं ग्वं सुवध्यं ।
महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै
पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणाना ग्वं राजा ।
चंद्रमा का पौराणिक मंत्र
ऊँ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुटभूषणम ।।
चंद्रमा गायत्री मंत्र
ऊँ अमृतंग अन्गाये विधमहे कलारुपाय धीमहितन्नो सोम प्रचोदयात ।
चंद्रमा के देवता -अम्बा देवी दिशा –पश्चिमोत्तर   

मंगल गृह के कारक 
सत्य ,शारीरिक और मानसिक ताकत ,पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले पदार्थ ,भाई बहनो के गुण ,क्रूरता ,रण ,साहस ,विद्वेष ,रसोई कि अग्नि ,जाति के लोग ,सोना ,अस्त्र ,शत्रु ,चोर ,दूसरे कि स्त्री मैं रति ,मिथ्या भाषण ,वीर्य ,चित्त कि समुन्नति ,उत्साह ,उदारता ,बहादुरी ,पाप ,बुरा काम ,सेनाधिपत्य ,चोट ,,घुंगराले केश ,क्रूर दृष्टि ,स्वाभाव से उग्र ,पित्त प्रधान ,लाल रंग ,प्रचंड स्वाभाव ,साथ ही अति उदार ,रसोई और अग्नि से सम्बंधित कार्य ,शस्त्र धारण करने वाला ,सुनारमेढ़ा ,गीदड़ी ,बन्दर ,ग्रध्र ,चोर दान कि वस्तुए लाल रंग ,मूंगा ,सोना ,ताम्बा ,मसूर ,गुड़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,केशर ,कस्तूरी ,रक्त बैल ,लाल चन्दन मंत्र -ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भोमये नमः वैदिक मंत्र -धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम् ।।पुराणोक्त मंत्र ॐ भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा । वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुजः ।।दिशा  दक्षिण
- ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।
तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले, 


बुध गृह के कारक 
-पांडित्य ,अच्छी वाक् शक्ति ,कला ,निपुणता ,विद्वानो द्वारा स्तुति ,मामा ,वाक् चातुर्य विद्या मैं बुद्धि का योग ,(बुद्धिमान होना अलग बात है विद्या मैं बुद्धि लगाये रखना अलसग बात है ) यज्ञ ,भगवन विष्णु सम्बन्धी धार्मिक कार्य ,सत्य वचन ,सीप ,विहार स्थल ,अमोद परमोद के स्थल ,शिल्प ,युवराज ,मित्र ,भांजा ,भांजी
बुध के शरीर कि कांति नविन दूब के सामान ,वात ,पित्त ,कफ त्रिदोषों का सम्मिश्रण ,इसका अधिपत्य नसो पर होता है ,स्वभाव से मधुर वाणी बोलने वाला ,मजाकपसन्द ,त्वचा प्रधान ,पन्ना ,सोना ,साबुत मूंग ,बड़ का पेड़ ,चौड़े पत्ते वाले पौधे ,केले का पेड़ ,बांस का पेड़ ,हरे खेत ,नाक का सिरा ,नसें ,जुबान ,दाँत बुध के छेत्र हैं।
दान कि वस्तुए -
पन्ना ,हरी मूंग कि दाल ,सोना ,कांसा ,खांड ,घी ,हरा वस्त्र ,सर्व पुष्प ,हाथी दाँत ,कपूरशस्त्र ,फल दिशा -उत्तर
पौराणिक मंत्र -प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम ।।
बुध के तांत्रोक्त मंत्र |
ॐ ऎं स्त्रीं श्रीं बुधाय नम:
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
ॐ स्त्रीं स्त्रीं बुधाय नम:
बुध का वैदिक मंत्र |
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।

गुरु गृह के कारक

पीला रंग ,ईशान ,आकाश तत्व ,शरीर मैं चर्बी ,सुख तथा ज्ञान ,धनु और मीन राशि का स्वामी ,धर्म,कर्म ,देव ,ब्राह्मण ,गृह ,पुत्र ,बंधू ,पौत्र ,पितामह ,सत्वगुण ,मित्र , मंत्री ,धनागार , विध्या ,उदर ,तथा देश का कारक है।  सोना , पीपल का पेड़ , चने की दाल ,पीला पुखराज इसका रत्न व सोना इसकी धातु है  , हल्दी ,केसर ,केले की जड़ , गुड़ , आचार्य ,गुरु ,पूजा का स्थान ,ब्रह्मा देवता , विष्णु स्तुति ,वेद शास्त्र का ज्ञाता , धार्मिक पुस्तक, संस्कृत का ज्ञान , सुसंस्कारित ,आदि विषय गुरु गृह से जाने जाते है। 
तान्त्रिक मंत्र- ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: ||
ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
वैदिक मंत्र 
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम॥
इदं बृहस्पतयेइदं न मम॥

शुक्र के कारक
शरीर में जननांग, वीर्य, नेत्र पर शुक्र का प्रभाव रहता है.शुक्र प्रेम, विवाह, वासना, मैथुन, सुख, ऐश्वर्य, गायन एवं नृत्य का अधिपति होता है.शुक्र विवाह एवं वैवाहिक सुख सहित सम्बन्ध विच्छेद का भी कारक होता है.शुक्र प्रभावित व्यक्ति आशिक मिज़ाज का होता है.सुन्दरता एवं कला का प्रेमी होता है.जिस पुरूष की कुण्डली में शुक्र शुभ और उच्च का होता है वह श्रृंगार प्रिय होता है.इन्हें स्त्रियों का साथ पसंद होता है व इनसे लाभ भी मिलता है.
चमकीला सफ़ेद रंग , आग्नेय कोण , सुख , प्रेम ,विवाह, भोग , विलास , संगीत , नृत्य , मनोरंजन,वाहन , सुन्दर भवन   सिनेमा ,अपनी स्त्री ,  वासना , इसके लिए चावल ,मिश्री , मिठाई , सफ़ेद चमकीला कपडा , चांदी , हिरा , जिरकॉन , इत्र , सफ़ेद चन्दन ,श्रृंगार का सामान, लक्ष्मी की स्तुति , शुक्र का मंत्र , जाप करना चाहिए 
तान्त्रिक मंत्र
शुक्र : ॐ शुक्राय नम:
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
वैदिक मंत्र 
शुक्र : ॐ अन्नात् परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय:।
सोमं प्रजापति: ॠतेन सत्यमिन्द्रियं पिवानं ग्वं
शुक्रमन्धसSइन्द्रस्येन्द्रियमि​दं पयोSमृतं मधु॥ इदं शुक्रायन मम।

शनि के कारक 
शनि के कोण ,मंद सूर्यपुत्र , यम , शनैश्चर ,आदि नाम है। शनि का रंग काला ,पश्चिम दिशा ,ब्रह्मा अधिदेवता ,शूद्र या संकर जाती ,नपुंसक ,तामसी ,वायु ,आलसी ,नसों पर अधिपत्य होता है। शनि का जीर्ण फटा हुआ वस्त्र ,लोहा धातु ,कसेला रस ,शिशिर ऋतू।  मकर और कुम्भ राशियों का स्वामी ,तुला मैं उच्च और मेष मैं नीच होता है ,पापग्रह और दुख सूचक है ,यह शुष्क गृह है , सप्तम स्थान पर निष्फल होता है ,
इसकी शांति के लिए शनि के मंत्र और दान करना चाहिए ,इसके लिए कला कपडा ,काले तिल ,साबूत उड़द ,लोहा , शीशा , मोटा अंनाज , कम्बल ,काली छत्री , जूता ,गुड़ , तेल ,आदि दान करना चाहिए। 
यदि कुंडली मैं शनि योगकारक हो तो नीलम /नीली , कटेला रत्न पहनना चाहिए। 
शनि के तांत्रिक मंत्र -
ओम प्रां प्रीं प्रों सः शनैश्चराय नमः। 
वैदिक मंत्र -
 ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
राहु के कारक
राहु और केतु की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है। यद्यपि यह सूर्य चन्द्र मंगल आदि की भांति कोई धरातल वाला ग्रह नही है,इसलिये राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है,राहु के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक आख्यान है,शनि की भांति राहु से भी लोग भयभीत रहते है,दक्षिण भारत में तो लोग राहु काल में कोई कार्य भी नही करते हैं।
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया गया है,पाराशर ने राहु को तमों अर्थात अंधकार युक्त ग्रह कहा है,उनके अनुसार धूम्र वर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा निरूपित किया है।
सामन्यत: राहु और केतु को राशियों पर आधिपत्य प्रदान नही किया गया है,हां उनके लिये नक्षत्र अवश्य निर्धारित हैं। तथापि कुछ आचार्यों ने जैसे नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के अधीन माना है,उनके अनुसार राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है।
राहु के लिये दान


आर्द्रा स्वाति शभिषा नक्षत्रों के काल में अभ्रक लौह जो हथियार के रूप में हो,तिल जो कि किसी पतली किनारी वाली तस्तरी में हो,नीला कपडा,छाग,तांबे का बर्तन,सात तरह के अनाज,उडद (माह),गोमेद,काले फ़ूल,खुशबू वाला तेल,धारी वाले कम्बल,हाथी का बना हुआ खिलौना,जौ धार वाले हथियार आदि।

राहु गायत्री

नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।

राहु का वैदिक बीज मंत्र

ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: राहुवे नम:॥
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥राहु का जाप मंत्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥

केतु के कारक 
केतु की आँखे लाल उग्र है ,वाणी मैं विष है ,सदेव धूम्रपान करता है , शरीर पर घाव के निशान , शरीर से कृष स्वाभाव से क्रूर और अत्याचार करने वाला है ,इसको शिखि ,धवज ,धूम्रा ,मृत्यु कहते है ,
जहाँ सांप रहते हो ,दीपक के कीड़ों द्वारा बनाया गया स्थान ,छिद्र जहा अँधेरा हो, पश्चिम दक्षिण (नै कृत्य ) दिशा ,केतु का कुल्थी , कला सफ़ेद तिल, कला सफ़ेद रंग, सलेटी कपडा, पर्वत , वायु जनित रोग ,
केतु की विचित्र धातु अर्थात पंचधातु ,रत्न लहसुनिया,गुप्त विध्या तंत्र ,मंत्र ,वैराग्य का कारक है ,केतु त्रिकोण और ३,६,९,११ भावो मैं बलवान होता है। 
दान-रांगा, पंचधातु, काले सफ़ेद तिल, सात अनाज, सलेटी कपडा ,तेल , नारियल लहसुनिया ,गुड़
रोज कौओं को रोटी खिलाएं. 
यदि सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोटी खिलाने से घर में बड़ो के आशीर्वाद लेने से और उनकी सेवा करने से सन्तान सुख की प्राप्ति होगी .
गौ ग्रास. रोज भोजन करते समय परोसी गयी थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को एवं एक हिस्सा कौए को खिलाएं आप के घर में हमेसा बरक्कत रहेगी,
भगवान गणेशजी की पूजा करें। गणेश के द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करें। केतु के मूल मंत्र का रात्रि में 40 दिन में 18,000 बार जप करें।
वैदिक मंत्र-
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथाः॥
बीज मंत्र- जप-संख्या 17000
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्‌।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्‌॥
बीज मंत्र-जप-संख्या 17000
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
सामान्य मंत्र-जप-संख्या 17000
ॐ कें केतवे नमः।