मै आप सबके लिए श्री सूक्तं के मंत्र अर्थ सहित दे रहा हूँ। आप इन मंत्रो द्वारा अपने जीवन मै धन धान्य सम्पनता यश लाभ प्राप्त कर सकते है , इन मंत्रो मे से कोई भी एक मंत्र का अनुष्ठान अर्थात १२५००० मंत्र की एक आवर्ती अनुष्ठान कर सकते है , इसके लिए भगवन गणेश माँ लक्ष्मी और भगवन विष्णु का आवाहन करके नित्य ३० माला ४० दिनों तक लगातार रोज जाप करें।
माँ महालक्ष्मी आप के संपूर्ण परिवार पर कृपा करेगी,
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श्री सूक्तं अर्थ सहित
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो
म आ वह। (१)
हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण
वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान धवल पुष्पों
की माला धारण करने वाली , चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न
करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है ऐसे गुणों से युक्त
लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ।
ॐ तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्
यस्यां हिरण्यं विन्देयं
गामश्वं परुषानहम।। (२)
हे जातवेदा अग्निदेव आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आवाहन
करने पर मै सुवर्ण ,गौ, अश्व
और पुत्र पोत्रदि को प्राप्त करूँ।
ॐ अश्वपूर्वां
रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनिम।
श्रियं देविमुप हवये श्रीर्मा देवी जुस्ताम।। (३)
श्रियं देविमुप हवये श्रीर्मा देवी जुस्ताम।। (३)
जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं ,ऐसे रथ में बैठी हुई , हथियो की निनाद स संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ। दीप्यमान तथा सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर मई सर्वदा निवास करे
ॐ कां सोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम्।। (४)
जिसका स्वरूप वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्यायुक्ता है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं। स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली। कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ।
पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम्।। (४)
जिसका स्वरूप वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्यायुक्ता है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं। स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली। कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ।
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं
लोके देवजुस्टामुदराम्।
तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां तवां वृणे।।(५)
चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृत कान्तिवाली , अपनी कीर्ति से देदीप्यमान , स्वर्ग लोक में इन्द्रादि
देवों से पूजित अत्यंत दानशीला ,कमल के मध्य रहने वाली
,सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदाती ,जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ। अतः मैं तुम्हारा आश्रय लेता
हूँ ।
ॐ आदित्यवर्णे तप्सोअधि जातो वनस्पतिस्तव व्रक्षोथ
बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य
अलक्ष्मीः।।(६)
हे सूर्य के समान कांति वाली देवी अप्पके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने
वाला एक वृक्ष विशेष उत्पन्न हुआ। तदन्तर अप्पके हाथ से बिल्व का वृक्ष उत्पन्न हुआ।
उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें।।
उपैतु मां देवसखः किर्तिक्ष्च
मणिना सह।
प्रदुभुर्तॉस्मि रास्ट्रेअस्मिन्
कीर्तिंमृद्विमं ददातु मे।(७)
हे लक्ष्मी ! देवसखा अर्थात श्री महादेव के सखा (मित्र ) इन्द्र ,कुबेरादि देवतओं की अग्नि मुझे प्राप्त हो अर्थात मैं अग्निदेव की उपासना करूँ।
एवं मणि के साथ अर्थात चिंतामणि के साथ या कुबेर के मित्र मणिभद्र के साथ या रत्नों
के साथ ,कीर्ति कुबेर की कोशशाला या यश मुझे प्राप्त
हो अर्थात धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। मैं इस संसार में उत्पन्न हुआ हूँ , अतः हे लक्ष्मी आप यश और एश्वर्या मुझे प्रदान करें।
क्षुत्पिपासामलां
ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात्।।(८)
भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ। हे लक्ष्मी आप मेरे घर में अनैश्वर्य तथा धन वृद्धि के प्रतिब धकविघ्नों को दूर करें।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात्।।(८)
भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ। हे लक्ष्मी आप मेरे घर में अनैश्वर्य तथा धन वृद्धि के प्रतिब धकविघ्नों को दूर करें।
गन्धद्वारां दुराधर्षां
नित्यापुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां
तामिहोप हवये श्रियम्।।(९)
सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य,किसी से भी न दबने योग्य। धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर गोउ ,अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली , समस्त प्राणियों की स्वामिनी
तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार मैं सादर बुलाता हूँ।।
मनसः काममाकूतिं वाचः
सत्यमशीमहि।
पशुनां रूपमन्नस्य मयि
श्रीः श्रयतां यशः।।(१०)
हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प। वाणी की सत्यता,गोउ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि एवं याव्ब्रिहादी) एवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य ,भोज्य। चोष्य,चतुर्विध भोज्य पदार्थ
) इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ। सम्पति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान
एवं कीर्तिमान बनूँ।।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि
संभव कर्दम।
श्रियम वास्य मे कुले
मातरं पद्ममालिनीम्।।(११)
"कर्दम "नामक ऋषि -पुत्र से लक्ष्मी प्रक्रस्ट पुत्रवाली हुई है। हे
कर्दम !तुम मुझमें अच्छी प्रकार से निवास करो अर्थात कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी
को मेरे यहाँ रहना ही होगा। हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें ,केवल अतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार
की मत लक्ष्मी को मेरे घर में निवास कराओ।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं
वास्य मे कुले।।(12)
जिस प्रकार कर्दम ली संतति 'ख्याति 'से लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार कल्पान्तर
में भी समुन्द्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी
अभिप्राय से कहा जा सकता है कि वरुण देवता स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थो को उत्पन्न
करें। (पदार्थो कि सुंदरता ही लक्ष्मी है। लक्ष्मी के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रित -ये चार पुत्र हैं। इनमे 'चिक्लीत ' से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक
लक्ष्मी पुत्र ! तुम मेरे गृह में निवास
करो। केवल तुम ही नहीं ,अपितु दिव्यगुण युक्त
सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।
आद्रॉ पुष्करिणीं
पुष्टिं पिंडग्लां पदमालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। (13)
हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडग्रा
से अभिषिच्यमाना (आद्र शारीर वाली ) पुष्टि को देने वाली अथवा पुष्टिरूपा रक्त और पीतवर्णवाली
,कमल कि माला धारण करने वाली ,संसार को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप
लक्ष्मी को बुलाओ।।
आद्रां यः करिणीं यष्टिं
सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी
जातवेदो म आ वह।। (१४)
हे अग्निदेव !तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयद्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी
याचना करते हैं,दुस्टों को दंड देने
वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (सारांश यह हें
कि , 'जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं
सकता,उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना संसार का कोई भी
कार्य नहीं चल सकता ), सुन्दर वर्ण वाली एवं
सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा (अर्थात जिस
प्रकार सूर्य अपने प्रकाश और वृष्टि द्वारा जगत का पालन -पोषण करता है उसी प्रकार लक्ष्मी
,ज्ञान और धन के द्वारा संसार का पालन -पोषण
करती है)अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी
मन पगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योअश्र्वान्
विन्देयं पुरुषानहम्।। (१५)
हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन जगद्विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र
न जेन वाली हों ,उन्हें बुलाओ। जिन लक्ष्मी
के द्वारा मैं सुवर्ण , उत्तम ऐश्वर्य ,गौ ,दासी ,घोड़े और पुत्र -पौत्रादि
को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा
जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः
सततं जपेत्।। (१६)
जो मनुष्य लक्ष्मी कि कामना करता हो ,वह पवित्र और सावधान
होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ
ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें।