काल सर्प दोष कारण और निवारण---
कुंडली में सात गृह सूर्य,
चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि जब राहू और केतु के बीच स्थित होते है तो कुंडली
में कालसर्प दोष का निर्माण होता है! मान लो यदि कुंडली के पहले घर में राहू स्थित
है और सातवे घर में केतु तो बाकी के सभी गृह पहले से सातवे अथवा सातवे से पहले घर के
बिच होने चाहिए! यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है की सभी ग्रहों की डिग्री राहू
और केतु की डिग्री के बीच स्थित होनी चाहिए, यदि कोई गृह की डिग्री राहू और केतु की
डिग्री से बाहर आती है तो पूर्ण कालसर्प योग स्थापित नहीं होगा, इस स्थिति को आंशिक
कालसर्प कहेंगे ! कुंडली में बनने वाला कालसर्प कितना दोष पूर्ण है यह राहू और केतु
की अशुभता पर निर्भर करेगा !
मानव जीवन पर कालसर्प दोष का प्रभाव
सामान्यता कालसर्प योग जातक
के जीवन में संघर्ष ले कर आता है ! इस योग के कुंडली में स्थित होने से जातक जीवन भर
अनेक प्रकार की कठिनाइयों से जूझता रहता है ! और उसे सफलता उसके अंतिम जीवन में प्राप्त
हो पाती है, जातक को जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, विवाह, कामयाबी,
नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी
मतलब की मुसीबते जातक को जीवन भर परेशान करती है ! कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प
पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति
पर आधारित होती है ! कुंडली में स्थित यह बारह प्रकार के काल सर्प दोष कौन से है, आइये
जानने की कोशिश करते है !
अनंत कालसर्प
दोष
जब कुंडली के पहले घर में
राहू , सातवे घर केतु और बाकि के सात गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो वह अनंत
कालसर्प दोष कहलाता है ! अनंत कालसर्प दोष जातक की शादीशुदा जिन्दगी पर बहुत बुरा असर
डालता है ! बितते वक्त के साथ जातक और जातक के जीवन साथी के बीच तनाव बढता जाता है
! जातक के नाजायज़ सम्बन्ध बाहर हो सकते है ! इसी कारण बात तलाक तक पहुच सकती है! जातक
के अपने जीवन साथी के साथ संबंधों में मधुरता नहीं होती ! अनंत कालसर्प दोष के कारण
जातक जीवन भर संघर्ष करता है और पूर्णतया फल प्राप्त नहीं करता ! संधि व्यापार में
सफलता नहीं मिलती और भागिदार दोखा कर जाते है !
कुलीक
कालसर्प दोष
जब कुंडली के दुसरे घर में
राहू और आठवें घर में केतु और बाकी के सातों गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो
यह कुलीक कालसर्प दोष कहलाता है ! जिस जातक की कुडली में कुलीक कालसर्प दोष होता है,
वह जातक खाने और शराब पिने की गलत आदतों को अपना लेता है ! तम्बाकू , सिगरेट आदि का
भी सेवन करता है, जातक को यह आदते बचपन से ही लग जाती है इस कारण जातक का पढाई से ध्यान
हट कर अन्य गलत कार्यों में लग जाता है ! ऐसे जातकों को मुह और गले के रोग अधिक होते
है, इन जातको का वाणी पर नियंत्रण नहीं होता इसलिए समाज में बदनामी भी होती है ! कुलीक
कालसर्प से ग्रस्त जातकों की शराब पीकर वाहन चलाने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है !
वासुकी
कालसर्प दोष
जब कुंडली में राहू तीसरे
घर में, केतु नौवें घर में और बाकी के सभी गृह इन दोनों के मध्य में स्थित हो
तो वासुकी काल्सर्प् दोष का निर्माण होता है ! जिन जातकों की कुंडली में वासुकी
कालसर्प दोष होता है उन्हें जीवन के सभी क्षेत्र में बुरी किस्मत की मार खानी पड़ती
है, कड़ी मेहनत और इमानदारी के बाउजूद असफलता हाथ आती है ! जातक के छोटे भाई और बहनों
पर बुरा असर पड़ता है ! जातक को लम्बी यात्राओं से कष्ट उठाना पड़ता है और धर्म कर्म
के कामों में विशवास नहीं रहता ! वासुकी कालसर्प दोष के कारण जातक की कमाई भी बहुत
कम हो सकती है इस कारण से जातक गरीबी और लाचारी का जीवन व्यतीत करता है !
शंखफल
कालसर्प दोष
कुंडली में राहू चौथे घर
में, केतु दसवें घर में और बाकी सभी गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो शंखफल कालसर्प
दोष का निर्माण होता है ! जिन जातकों की कुंडली में शंख फल कालसर्प दोष होता है वें
जातक बचपन से ही गलत कार्यों में पड़कर बिगड़ जाते है, जैसे पिता की जेब से पैसे चुराना,
विद्यालय से भाग जाना, गलत संगत में रहना और चोरी चाकरी और जुआ आदि खेलना ! यदि माता
पिता द्वारा समय रहते उपाय किये जाए तो बच्चों को बिगड़ने से बचाया जा सकता है ! शंख
फल कालसर्प से गृह्सित जातक की माता को जीवन बहुत परेशानिया झेलनी पड़ती है, यह परेशिनिया
मानसिक और शारीरिक दोनों हो सकती है ! जातक को विवाह का सुख भी अधिक नहीं मिलता, पति
या पत्नी से हमेशा दूरियां और अनबन बनी रहती है !
पदम् कालसर्प
दोष
कुंडली में जब राहू पांचवे
घर में , केतु ग्यारहवें घर में और बाकि के सभी गृह इन दोनों के मध्य स्थित होते है
तो पदम् कालसर्प दोष का निमाण होता है ! कुंडली में पदम् कालसर्प स्थित होने से जातक
को जीवन में कई कठनाइयों का सामना करना पड़ता है ! शुरवाती जीवन में जातक की पढाई में
किसी कारण से बाधा उत्पन्न होती है, यदि शिक्षा पूरी न हो तो नौकरी मिलने में परेशनिया
उत्पन्न होती है ! विवाह के उपरान्त बच्चो के जन्म में कठनाई और बच्चों का बीमार रहना
जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ! पदम् कालसर्प के बुरे प्रभाव से प्रेम में
धोखा मिल सकता है, इस दोष का विद्यार्थियों के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, उन्हें
इस काल सर्प का उपाय अवश्य करना चाहिए क्योकि हमारा पूरा जीवन अच्छी शिक्षा पर आधारित
होता है !
महापदम
कालसर्प दोष
कुंडली में महापदम् कालसर्प
का निर्माण तब होता है जब राहू छठे घर में , केतु बारहवें घर में और बाकि के सभी गृह
इन दोनों के मध्य स्थित हो ! महापदम् कालसर्प दोष जातक के जीवन में नौकरी , पेशा, बीमारी,
खर्चा, जेल यात्रा जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म देता है ! जातक जीवन भर नौकरी पेशा
बदलता रहता है क्योकि उसके सम्बन्ध अपने सहकर्मियों से हमेशा ख़राब रहते है ! हमेशा
किसी न किसी सरकारी और अदालती कायवाही में फसकर जेल यात्रा तक करनी पढ़ सकती है ! तरह
तरह की बिमारियों के कारण जातक को आये दिन अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते है ! इस
प्रकार महापदम् काल सर्प दोष जातक का जीना दुश्वार कर देता है !
तक्षक
कालसर्प दोष
कुंडली के सातवे घर में
राहू , पहले घर में केतु और बाकि गृह इन दोनों के मध्य आ जाने से तक्षक कालसर्प दोष
का निर्माण होता है ! सबसे पहले तो तक्षक काल सर्प का बुरा प्रभाव उसकी सेहत पर पड़ता
है ! जातक के शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बहुत कम होती है और इसलिए वह बार-बार
बीमार पड़ता रहता है ! दूसरा बुरा प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन पर पड़ता है, या तो
जातक के विवाह में विलम्ब होता है और यदि हो भी जाये तो विवाह के कुछ सालों के पश्चात्
पति पत्नी में इतनी दूरियाँ आ जाती है की एक घर में रहने के पश्चात् वे दोनों अजनबियों
जैसा जीवन व्यतीत करते है! जातक को अपने व्यवसाय में सहकर्मियों द्वारा धोखा मिलता
है और को भरी आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है!
कर्कोटक
कालसर्प दोष
कुंडली में जब राहू आठवें
घर में , केतु दुसरे घर में और बाकि सभी गृह इन दोनों के मध्य फसे हो तो कर्कोटक कालसर्प
दोष का निर्माण होता है ! कर्कोटक कालसर्प दोष के प्रभाव से जातक के जीवन पर बहुत बुरा
असर पड़ता है, जातक हमेशा सभी के साथ कटु वाणी का प्रयोग करता है, जिस वजह से उसके
सम्बन्ध अपने परिवार से बिगड़ जाते है और वह उनसे दूर हो जाता है ! कई मामलों में पुश्तैनी
जायजाद से भी हाथ धोना पड़ता है! जातक खाने पिने की गलत आदतों की वजह से अपनी सेहत
बिगाड़ लेता है, कई बार ज़हर खाने की वजह से मौत भी हो सकती है ! पारिवारिक सुख न होने
की वजह से कई बार विवाह न होने, विवाह देरी जैसे फल मिलते है, लेकिन इस दोष की वजह
से जातक को शारीरिक संबंधो की हमेशा कमी रहती है और वह विवाह का पूर्ण आनंद नहीं प्राप्त
करता !
शंखनाद
कालसर्प दोष
राहू कुंडली के नौवें घर
में, केतु तीसरे घर में और बाकि गृह इन दोनों के मध्य फसे हो तो इसे शंखनाद कालसर्प
कहते है ! शंखनाद कालसर्प दोष का जातक के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, जातक को
जीवन के किसी भी क्षेत्र में किस्मत या भाग्य का साथ नहीं मिलता, बने बनाये काम बिना
किसी कारण के बिगड़ जाते है! जातक को जीवन चर्या के लिए अधिक महनत करनी पड़ती है! जातक
के बचपन में उसके पिता पर इस दोष का बुरा असर पड़ता है और लोग कहते है की इस बच्चे
के आने के बाद घर में समस्याए आ गयी ! यह कालसर्प एक तरह का पितृ दोष का निर्माण भी
करता है, जिसके प्रभाव से जातक नाकामयाबी और आर्थिक संकट जैसी परेशानियों से जूझना
पड़ता है !
घटक कालसर्प
दोष
कुंडली में जब राहू दसवें
घर में और केतु चौथे घर में और बाकि सभी गृह इन दोनों के मध्य फसे हो तो घटक कालसर्प
दोष का निर्माण होता है ! घटक कालसर्प जातक के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है,
जातक हमेशा व्यवसाय और नौकरी की परेशानियों से जूझता रहता है, यदि वह नौकरी करता है
तो उसके सम्बन्ध उच्च अधिकारीयों से ठीक नहीं बनते, तरक्की नहीं होती, कई कई वर्षों
तक एक ही पद पर कार्यरत रहना पड़ता है ! और इसीलिए किसी भी काम से शंतुष्टि नहीं होती,
और बार बार व्यवसाय या नौकरी बदलनी पड़ती है ! इस कालसर्प का माता पिता की सेहत पर
भी बुरा असर पड़ता है और किसी कारण से जातक को उनसे पृथक होकर रहना पड़ता है !
विषधर
कालसर्प दोष
राहू ग्यारहवे स्थान पर,
केतु पाचवें स्थान पर और बाकी सभी गृह इन दोनों के मध्य फसे होने से कुंडली में विषधर
कालसर्प दोष का निर्माण होता है ! विषधर कालसर्प दोष जातक के जीवन बहुत बुरा प्रभाव
डालते है ! इस दोष के कारण जातक को आँख और हृदय रोग होते है, बड़े भाई बहनों से सम्बन्ध
अच्छे नहीं चलते ! जातक की याददाश्त कमज़ोर होती है, इसीलिए वह पढाई ठीक से नहीं कर
पाते! जातक को हमेशा व्यवसाय में उचित लाभ नहीं मिलता , जातक अधिक पैसा लगाकर कम मुनाफा
कमाता है ! इस योग के चलते जातक आर्थिक परेशानियाँ बनी रहती है ! प्रेम सम्बन्ध में
धोखा मिलता है और विवाह के उपरान्त बच्चों के जन्म में समस्याएं आती है, जन्म के बाद
बच्चों की सेहत भी खराब रहती है !
शेषनाग
कालसर्प दोष
कुंडली के बारहवें घर में
राहू, छठे घर में केतु और बाकी सभी गृह इन दोनों के मध्य फसे होने से शेषनाग कालसर्प
दोष का निर्माण होता है ! शेषनाग कालसर्प दोष जातक के जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न
करता है ! जातक हमेशा गुप्त दुश्मनों डर में रहता है, उसके गुप्त दुश्मन अधिक होते
है जो उसे समय समय पर नुक्सान पहुचाते रहते है! जातक हमेशा कोई न कोई स्वास्थ्य समस्या
से घिरा रहता है इसलिए उसके इलाज पर अधिक खर्चा होता है! इस दोष के कारण जातक जन्म
स्थान से दूर रहना पड़ता है, गलत कार्यों में भाग लेने से जेल यात्रा भी संभव है !
कालसर्प का प्रभाव काल
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कालसर्प का प्रभाव तब दृष्टिगोचर होता है जब राहु की दशा , अन्तर्दशा . प्रत्यान्तर दशा , चलती है .इस समय राहु अपना अशुभ प्रभाव देना शुरू करता है. गोचर में जब राहु केतु के मध्य सभी गह आ जाते हैं उस समय कालसर्प योग का फल मिलता है.गोचर में राहु के अशुभ स्थिति में होने पर भी कालसर्प योग पीड़ा देता है.
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कालसर्प का प्रभाव तब दृष्टिगोचर होता है जब राहु की दशा , अन्तर्दशा . प्रत्यान्तर दशा , चलती है .इस समय राहु अपना अशुभ प्रभाव देना शुरू करता है. गोचर में जब राहु केतु के मध्य सभी गह आ जाते हैं उस समय कालसर्प योग का फल मिलता है.गोचर में राहु के अशुभ स्थिति में होने पर भी कालसर्प योग पीड़ा देता है.
पीड़ादायक कालसर्प:
कुण्डली में कालसर्प योग किसी भी स्थिति में कष्टदायी होता है, लेकिन कुण्डली में ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति होने पर इसके अशुभ प्रभाव में वृद्धि होती है और यह योग अधिक कष्टकारी हो जाता है.कुण्डली में सूर्य और राहु अथवा चन्द्रमा और राहु की युति हो या फिर राहु गुरू के साथ मिलकर चाण्डाल योग बनाता है तब राहु की दशा महादशा के दौरान कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है .जिनकी कुण्डली में राहु और मंगल मिलकर अंगारक योग बनाते हैं उन्हें भी कालसर्प की विशेष पीड़ा भोगनी पड़ती है.
कुण्डली में कालसर्प योग किसी भी स्थिति में कष्टदायी होता है, लेकिन कुण्डली में ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति होने पर इसके अशुभ प्रभाव में वृद्धि होती है और यह योग अधिक कष्टकारी हो जाता है.कुण्डली में सूर्य और राहु अथवा चन्द्रमा और राहु की युति हो या फिर राहु गुरू के साथ मिलकर चाण्डाल योग बनाता है तब राहु की दशा महादशा के दौरान कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है .जिनकी कुण्डली में राहु और मंगल मिलकर अंगारक योग बनाते हैं उन्हें भी कालसर्प की विशेष पीड़ा भोगनी पड़ती है.
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जब राहु के साथ चंद्रमा
लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बीमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता
है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।
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जब लग्न में मेष, वृश्चिक,
कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव
में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो
तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े
संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।
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जब कालसर्प योग में राहु
के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।
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जब लग्न व लग्नेश पीड़ित
हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
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चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश
भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई
ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।
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जब राहु के साथ बृहस्पति
की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है।
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जब राहु की मंगल से युति
यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है।
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जब राहु के साथ सूर्य या
चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ
बढ़ती हैं।
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जब राहु के साथ शनि की युति
यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी
कारोबारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।
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जब राहु की बुध से युति
अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक
परेशानियाँ बढ़ती हैं।
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जब अष्टम भाव में राहु पर
मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, या देरी होती है।
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यदि जन्म कुंडली में शनि
चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त
व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है।
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जब लग्न में राहु-चंद्र
हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत
ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।
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जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु
या शनि से युति करे तब संबंधित जातक को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान
भी रहना चाहिए।
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जब दशम भाव का नवांश स्वामी
राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती
है।
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जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक
संबंध हो तब संबंधित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़
जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
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जब लग्न मेष, वृष या कर्क
हो तथा राहु की स्थिति 1ले 3रे 4थे 5वें 6ठे 7वें 8वें 11वें या 12वें भाव में हो।
तब उस स्थिति में जातक स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता
है।
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जब राहु छठे भाव में अवस्थित
हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
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जब राहु व चंद्रमा की युति
केंद्र (1ले 4थे 7वें 10वें भाव) या त्रिकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि
की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
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जब शुक्र दूसरे या 12वें
भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
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जब बुधादित्य योग हो और
बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
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जब लग्न व लग्नेश सूर्य
व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा
देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।
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जब दशम भाव में मंगल बली
हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव
नहीं पड़ता।
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जब शुक्र से मालव्य योग
बनता हो, यानी शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी
अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हो। तब कालसर्प योग का विपरत असर काफी कम हो
जाता है।
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जब शनि अपनी राशि या अपनी
उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों।
तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।
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जब मंगल की युति चंद्रमा
से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट
न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती हैं।
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जब राहु अदृश्य भावों में
स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग
समृध्दिदायक होता है।
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जब राहु छठे भाव में तथा
बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी
कमी महसूस नहीं होती।
अनुकूलन के उपाय -
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शुभ मुहूर्त में बहते पानी
में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
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हनुमान चालीसा का 108 बार
पाठ करें।
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महामृत्युन्जय मन्त्र का
जाप करने से भी अनन्त काल सर्प दोष का शान्ति होता है।
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गृह में मयूर (मोर) पंख
रखें ।
- श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
- शनिवार औ मंगलवार का व्रत रखें और शनि मंदिर में जाकर भगवान
शनिदेव कर पूजन करें व तैलाभिषेक करें, इससे तुरंत कार्य सफलता प्राप्त होती है।
- राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्रा का जाप करें
और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति
हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्रा का दान करें
- नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
- प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी
डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला
कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने
से अवश्य लाभ मिलता है।
- महामृत्युंजय मंत्रों का जाप प्रतिदिन 11 माला रोज करें, जब
तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
और मंगलवार को हनुमान जी को चौला चढ़ायें।
- शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों
ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
- शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित
करें।
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एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें।
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शनिवार का व्रत रखें, श्री शनिदेव का तैलाभिषेक व पूजन करें और लहसुनियां,
सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला वस्त्रा, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल आदि
का समय-समय पर दान करें
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सोमवार के दिन व्रत रखें, भगवान शिव के मंदिर में चांदी के नाग की पूजा
कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर
दें।
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किसी भी प्रकार
के कालसर्प दोष के निवारण के लिए कालसर्पदोष निवारण अनुष्ठान जिसमे लिंगतोभद्र की स्थापना
करके नित्य गौरी गणेश पूजन, पंचदेव पूजन , षोडशमातृका पूजन ,चौसठ योगिनी पूजन , नवग्रह
पूजन, नव नाग सर्प पूजन और १२५००० महामृत्युंजय मंत्र , नाग गायत्री १२५००० मंत्र जाप ११ दिन मैं पूर्ण करके हवन और नदी के
तट पर नारायण बलि, नाग बलि सर्प क्षमा विसर्जन आदि किर्याएँ करके स्नान दान आदि कर्म
होता है।
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प्रत्येक नाग
पंचमी और शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक अवश्य करें ,यदि किसी तीर्थ या द्वादश ज्योतिर्लिंग पर वर्ष में एक बार रुद्राभिषेक हो तो बहुत ही शुभ
फल मिलता है।
नोट- हमारे संसथान
दिल्ली में सभी प्रकार के पूजा अनुष्ठान नवग्रह दोष शांति, गंडमूल शांति ,मंगल दोष
शांति , अंगारक योग, गुरुचांडाल योग , कालसर्प दोष ,बगलामुखी अनुष्ठान , आदि सभी अनुष्ठान
के लिए विद्धान ब्राह्मणों का अति उत्तम व्यवस्था है। पूजा स्थल पर किसी भी प्रकार की सामग्री आपसे नहीं
मंगवाई जाती। हमारे यहाँ सभी प्रकार की पूर्ण व्यवस्था है।
आचार्य अनिल
वर्मा
MA IN
ASTROLOGY AND POST GRADUATE IN VASTU SHASTRA
C7/73 FIRST
FLOOR PRADEEP BHATIA ROAD SECTOR-7
ROHINI
DELHI -110085
9811715366
, 8826098989
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