जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं | वंश परंपरा की वृद्धि के लिए
एवम परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी है | पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री
माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं | धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति
के यज्ञ,दान ,तप व अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल
हो जाते हैं | महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में
गिरने से बचाता है | मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा
और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए |प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह
किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैं|
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है | भाग्य में संतान सुख है या नहीं ,पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा
,संतान कैसी निकलेगी
,संतान सुख कब मिलेगा
और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है , इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति
और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है |
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो ,उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता
है | भाव ,भाव स्थित राशि व उसका स्वामी
,भाव कारक बृहस्पति
और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना
आवश्यक है |पति एवम पत्नी दोनों
की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए |पंचम भाव से प्रथम संतान का
,उस से तीसरे भाव
से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए |
उस से आगे की संतान का विचार
भी इसी क्रम से किया जा सकता है |
संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध ,शुक्ल पक्ष का चन्द्र
स्व मित्र उच्च राशि – नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि
भाव या भाव स्वामी पर हो , भाव स्थित राशि का स्वामी स्व ,मित्र ,उच्च राशि –
नवांश का लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान
पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , संतान कारक गुरु भी स्व ,मित्र ,उच्च राशि –
नवांश का लग्न से शुभ स्थान
पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त –दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है |
शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि
पंचम भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि –
नवांश के हों तो संतान प्राप्ति
करातें हैं | पंचम भाव ,पंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम ,दो बलवान हों तो मध्यम ,एक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है |सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो
,शुभ स्थान पर हो
तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान
सुख की अनुभूति होती है | प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख
योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है :-
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति,दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ
भावों में हो |
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र ,उच्च राशि नवांश का हो |
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो |
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो |
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व ,मित्र ,उच्च राशि नवांश
का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो |
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों |
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों
,पंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो , पंचमेश और गुरु अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो , षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश
का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो , सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6,8
12 वें भाव में अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है | जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी
ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी |
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान
होती है |
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता
होती है |
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है |
गुरु ,लग्नेश ,पंचमेश ,सप्तमेश चारों ही बलहीन हों
तो अन्पतत्यता होती है |
गुरु ,लग्न व चन्द्र से
पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है |
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो ,शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो
अन्पतत्यता होती है |
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार
किया जाना चाहिए|जातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट ,शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट
का योग करें |राशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें |शेष राशि (बीज ) तथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो
अक्षमता होती है | इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट ,मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें |शेष राशि (क्षेत्र ) तथा उसका
नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है | बीज तथा क्षेत्र का विचार करने
से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ
की संभावना क्षीण होती है ,शुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति
उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है |
शुक्र से पुरुष की
तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें | पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता
सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए |
सूर्यादि ग्रह नीच ,शत्रु आदि राशि नवांश में,पाप युक्त दृष्ट ,अस्त ,त्रिक भावों का स्वामी हो कर
पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है | योग कारक ग्रह की पूजा ,दान ,हवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है | पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं | हरिवंश पुराण का श्रवण करें |सूर्य रत्न माणिक्य धारण करें | रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें
| सूर्य के बीज मन्त्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने
से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र
में जल में लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य
को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है | विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ क रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते
हैं |
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप
या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है जिसकी शांति
के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान ,गायत्री का जाप करें | श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष
दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें |
धारण करने से पहले ॐ श्रां
श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके
धूप,दीप ,पुष्प ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में
जाप करें |सोमवार को चावल ,चीनी ,आटा, श्वेत वस्त्र ,दूध दही ,नमक ,चांदी इत्यादि का दान करें |
मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप ,शत्रु का अभिचार या श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी
शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें |लाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में
मृगशिरा ,चित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका
अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण
से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प,
गुड ,अक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ क्रां क्रीं क्रों
सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें
| मंगलवार को गुड शक्कर
,लाल रंग का वस्त्र
और फल ,ताम्बे का पात्र
,सिन्दूर ,लाल चन्दन केसर ,मसूर की दाल इत्यादि का दान करें |
बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप ,तुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा
है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण ,विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |हरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषा,ज्येष्ठा ,रेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका
अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों
सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से
इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प,
गुड ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | बुधवार के
नमक रहित व्रत रखें , ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें |
बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे रंग का वस्त्र और
फल ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग इत्यादि का दान करें | तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है |
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु ,ब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष
को काटना है जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के
बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ
की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण
से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प,
हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो
उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें
, ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९०००
की संख्या में जाप करें | गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल
पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार
से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ -ब्राह्मण ,किसी साध्वी स्त्री को कष्ट
देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान ,ब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र
फल आदि का दान ,श्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की
अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों
में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद
पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें |
धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा
करके धूप,दीप , श्वेत पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर लें
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या
प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएं,रुद्राभिषेक करें ,शनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करें| नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य ,अनुराधा ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद
पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें |
धारण करने से पहले ॐ प्रां
प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा
करके धूप,दीप , नीले पुष्प, काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें| नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली , लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं
| काले घोड़े कि नाल
या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना
भी शुभ रहता है |शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये
नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें
| शनिवार को काले उडद
,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें |श्री हनुमान चालीसा का नित्य
पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है |
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति
के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें ,गोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्रा,स्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद
पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें |
धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८
उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,
काले तिल व अक्षत
आदि से पूजन कर लें|रांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है | ॐ भ्रां भ्रीं
भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,सतनाजा ,नारियल , रांगे की मछली ,नीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें | मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय
है |
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना
है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें , सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों
सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें |
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या
संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष
ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें | आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी |
1. संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के
१६ नमक रहित मीठे व्रत रखें | केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण
बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें | १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें |
2. पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण
में विधिवत धारण करें |
3. यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ( २३/३२)
से हवन कराएं |
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः |
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप
प्रतिदिन १०० दिन तक करें | तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवन,१००० से तर्पण ,१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं |
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१
की संख्या में पाठ करें |
7. संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार
पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी
गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा ,मन्त्र का नित्य जाप करें |
ऋतु काल के बाद पति और पत्नी
जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित
करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा | |
8.पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ( निर्णयामृत )
शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार
हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करें|प्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें |
सूर्यास्त के समय शिवलिंग की
भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू
,घी ,शक्कर का भोग लगाएं |
आठ दिशाओं में दीपक रख कर
आठ -आठ बार प्रणाम करें | नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें |
अंत में शिव पार्वती की आरती
पूजन करें |
9. पुत्र व्रत
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें | अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय
गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से
तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं
| बिल्व फल खा कर षडरस
भोजन करें | वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ
को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति
ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार
में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता | गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं ——
प्रथम मास - शुक्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार
को )
द्वितीय मास —मंगल ( गुड ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को )
तृतीय मास — गुरु (पीला वस्त्र ,हल्दी ,स्वर्ण , पपीता ,चने कि दाल , बेसन व दक्षिणा गुरूवार को )
चतुर्थ मास — सूर्य ( गुड , गेहूं ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा रविवार को
)
पंचम मास —- चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार
को )
षष्ट मास —
–-शनि ( काले तिल ,काले उडद ,तेल ,लोहा ,काला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को )
सप्तम मास —–
बुध ( हरा वस्त्र ,मूंग ,कांसे का पात्र ,हरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को )
अष्टम मास —- गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित
दान उसके वार में |यदि पता न हो तो अन्न ,वस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर
दें |
नवं मास - चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार
को )
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण
करना चाहिए |पंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह ,पंचमेश और उसका नवांशेश ,पंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रह,पंचमेश से युक्त ग्रह ,सप्तमान्शेष ,बृहस्पति ,लग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा
अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं |
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए | गुरु गोचर वश लग्न ,पंचम भाव ,पंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का
सुख मिलता है | लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें | प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु
का गोचर संतान प्राप्ति कराता है | गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति , दृष्टि या राशि सम्बन्ध
हो तो संतानोत्पत्ति होती है | पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त
होता है | बृहस्पति से पंचम
भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण (पंचम ,नवम स्थान ) में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है
|लग्नेश या पंचमेश
अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है | लग्नेश ,सप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो
तो संतान लाभ होता है |
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ,2 ,4 ,5 ,7 ,9 ,1 2 वें स्थान
पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ,6 10 ,11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट
हो तो स्त्री -पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है | आधान काल में गुरु लग्न ,पंचम या नवम में हो और पूर्ण
चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है |
विशेष
प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है | रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल
जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है
|रजस्वला होने की
तिथि से 4,6,8,10,12,14,16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5,7,9 वीं आदि विषम रात्रियों में
सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती है| याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों
का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति
होती है |
वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य ,हस्त,पुनर्वसु ,अभिजित,अनुराधा ,पूर्वा फाल्गुनी , पूर्वाषाढ़,पूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में
गर्भाधान पुत्र कारक होता है | कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए
| ज्योतिस्तत्व के
अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती
हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है
Acharya Anil Verma
Master in Astrology and Vaastu Shastra
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