मित्रो जीवन की सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति सर्व कार्य साधन सिद्धि(मारण, मोहन,वशिकरण,उच्चाटन विद्वेषण) के लिए अचूक साधना।
श्री पञ्च मुखी वीर हनुमन्त कवच
विधि -विधान सहित
विधि -विधान सहित
विनियोग :
ॐ अस्य श्री पञ्च-मुख वीर-हनुमन्त कवच श्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि ,गायत्री छंद ,पञ्च मुखी श्री वीर हनुमान देवता,रां बीजं ,मं शक्ति,चंद्र कीलकं , पंचमुख्यान्तर्गत श्री हनुमन्त कृपा प्रसाद प्राप्तर्थ्य कवच पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर-न्यास
ॐ रां अंगुष्ठाभ्यां नमः , ॐ रीं तर्जनीभ्यां नमः ,ॐ रुं मध्यभ्यां नमः , ॐ रें अनामिकाभ्यां नमः ,ॐ रों कनिष्ठाभ्यां नमः ,ॐ रं करतल कर प्रस्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि शडांग न्यास
ॐ रां हृदयाय नमः , ॐ रीं शिरसे स्वाहा ,ॐ रुं शिखायै वषट , ॐ रें कवचाय हूँ , ॐ रौं नेत्रयाय वौषट , ॐ रः अस्त्राय फट्ट।
दिग्बन्ध
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ कं खं गं घँ डं चं छं जं झं त्रं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा ।( दशो दिशाओं में दृष्टिपात करते हुए अपने चारों और तीन चुटकी बजाए तथा अस्त्र मुद्रा निर्मित कर बाये हाथ की हथेली पर तीन ताली बजाये।
ध्यान
वंदे वानर नरसिंह खग्राट क्रोडाश्ववक्तृनविंतं ।
दिव्यालङ्क्रणं त्रिपंच नयनं दैदीप्यमानं ऋचा।
हस्ताब्जैरसिखेट पुस्तकं सुधा कुम्भ अंगशादीन्हलान्।
खटवाडगं फणिभूरूहं दश भुजं सर्वारिदपार्पहम ।
पञ्च वक्त्र महा भीम त्रिपंच नयनैरयुतम्।
दशभिर्बाहुभिरयुक्तं सर्व कामार्थ सिद्धिदम।।
पूर्व दिशा को मुख -
पूर्वे तु वानर वक्त्रं कोटि सूर्य समप्रभम ।
द्रष्टा कराल वदनं भृकुटि कुटिलेक्षणं ।।
दक्षिण दिशा को मुख -
अस्यैव दक्षिणे वक्त्र नारसिंघम महाद्भुतं।
अत्युग्र तेजो जवलितं भीसणं भय नाशनम।।
पश्चिम दिशा की मुख-
पश्चिमे गरुड़ वक्त्रं व्रज-तुण्ड महा-बलम
सर्व-नाग-प्रश्मन्न विष क्रंत्तनम ।।
उतर दिशा को मुख -
उत्तरे सुकर वक्त्रं कृष्णदित्य महोज्वलंम
पाताल सिद्धिद नृणाम ज्वर-रोगादि नाशनम ।।
उध्र्व दिशा को मुख -
उध्र्व हयानं घोरं दानवान्तकरं परम
येन वक्त्रेण विपेंद्र सर्व -विद्याविनिर्ययु ।।
ॐ अस्य श्री पञ्च-मुख वीर-हनुमन्त कवच श्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि ,गायत्री छंद ,पञ्च मुखी श्री वीर हनुमान देवता,रां बीजं ,मं शक्ति,चंद्र कीलकं , पंचमुख्यान्तर्गत श्री हनुमन्त कृपा प्रसाद प्राप्तर्थ्य कवच पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कर-न्यास
ॐ रां अंगुष्ठाभ्यां नमः , ॐ रीं तर्जनीभ्यां नमः ,ॐ रुं मध्यभ्यां नमः , ॐ रें अनामिकाभ्यां नमः ,ॐ रों कनिष्ठाभ्यां नमः ,ॐ रं करतल कर प्रस्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि शडांग न्यास
ॐ रां हृदयाय नमः , ॐ रीं शिरसे स्वाहा ,ॐ रुं शिखायै वषट , ॐ रें कवचाय हूँ , ॐ रौं नेत्रयाय वौषट , ॐ रः अस्त्राय फट्ट।
दिग्बन्ध
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ कं खं गं घँ डं चं छं जं झं त्रं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा ।( दशो दिशाओं में दृष्टिपात करते हुए अपने चारों और तीन चुटकी बजाए तथा अस्त्र मुद्रा निर्मित कर बाये हाथ की हथेली पर तीन ताली बजाये।
ध्यान
वंदे वानर नरसिंह खग्राट क्रोडाश्ववक्तृनविंतं ।
दिव्यालङ्क्रणं त्रिपंच नयनं दैदीप्यमानं ऋचा।
हस्ताब्जैरसिखेट पुस्तकं सुधा कुम्भ अंगशादीन्हलान्।
खटवाडगं फणिभूरूहं दश भुजं सर्वारिदपार्पहम ।
पञ्च वक्त्र महा भीम त्रिपंच नयनैरयुतम्।
दशभिर्बाहुभिरयुक्तं सर्व कामार्थ सिद्धिदम।।
पूर्व दिशा को मुख -
पूर्वे तु वानर वक्त्रं कोटि सूर्य समप्रभम ।
द्रष्टा कराल वदनं भृकुटि कुटिलेक्षणं ।।
दक्षिण दिशा को मुख -
अस्यैव दक्षिणे वक्त्र नारसिंघम महाद्भुतं।
अत्युग्र तेजो जवलितं भीसणं भय नाशनम।।
पश्चिम दिशा की मुख-
पश्चिमे गरुड़ वक्त्रं व्रज-तुण्ड महा-बलम
सर्व-नाग-प्रश्मन्न विष क्रंत्तनम ।।
उतर दिशा को मुख -
उत्तरे सुकर वक्त्रं कृष्णदित्य महोज्वलंम
पाताल सिद्धिद नृणाम ज्वर-रोगादि नाशनम ।।
उध्र्व दिशा को मुख -
उध्र्व हयानं घोरं दानवान्तकरं परम
येन वक्त्रेण विपेंद्र सर्व -विद्याविनिर्ययु ।।
आयुधादि ध्यान -
खडंग त्रिशूलं खट्वांग पाशांकुश पर्वतम
खेटांगसिनीपुस्तम च सुधा कुम्भ कळं तथा
एतन्यायुद्ध जातानि धार्यन्तं भजमहे।
प्रेतासनोपविस्ठ तु दिव्याभरण भूषितं।
दिव्य मलाम्बर धरं दिव्य गन्धानुलेपनम् ।।
सर्वेश्वर्यमयं देवमनन्तं विश्वतो मुखम् ।
एवं ध्यायेत पञ्च मुखं सर्व काम फल प्रदम्।।
पंचास्यमचयुतमनेक विचित्र विर्यम् ।
श्री शंख चक्र रमणीय भुजाग्र देशम ।।
पिताम्बरं मुकुटं कुण्डलं नुपुरांगम ।
उदधैतिं कपि वरं हृदि भावयामि
चंद्रार्द्ध चरणावरबिंद युगलं कौपीन मौजी धरम।
नाभ्यां वैकटि सूत्र बद्ध वसनं यज्ञोपवीतं शुभम् ।।
हस्ताभ्यामवलमव्यम चांचलि पुटं हारावलिं कुण्डलम् ।
विभद्रवीर्यम शिखं प्रसन्न वदनं विद्याजनेयं भजे।
ॐ मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशन।
शत्रुंसंहार मां रक्ष श्रियं दापय में प्रभो ।।
खडंग त्रिशूलं खट्वांग पाशांकुश पर्वतम
खेटांगसिनीपुस्तम च सुधा कुम्भ कळं तथा
एतन्यायुद्ध जातानि धार्यन्तं भजमहे।
प्रेतासनोपविस्ठ तु दिव्याभरण भूषितं।
दिव्य मलाम्बर धरं दिव्य गन्धानुलेपनम् ।।
सर्वेश्वर्यमयं देवमनन्तं विश्वतो मुखम् ।
एवं ध्यायेत पञ्च मुखं सर्व काम फल प्रदम्।।
पंचास्यमचयुतमनेक विचित्र विर्यम् ।
श्री शंख चक्र रमणीय भुजाग्र देशम ।।
पिताम्बरं मुकुटं कुण्डलं नुपुरांगम ।
उदधैतिं कपि वरं हृदि भावयामि
चंद्रार्द्ध चरणावरबिंद युगलं कौपीन मौजी धरम।
नाभ्यां वैकटि सूत्र बद्ध वसनं यज्ञोपवीतं शुभम् ।।
हस्ताभ्यामवलमव्यम चांचलि पुटं हारावलिं कुण्डलम् ।
विभद्रवीर्यम शिखं प्रसन्न वदनं विद्याजनेयं भजे।
ॐ मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशन।
शत्रुंसंहार मां रक्ष श्रियं दापय में प्रभो ।।
पञ्च मुख श्री हनुमान जी के पृथक पृथक मुखों के गायत्री सहित मन्त्र पाठ ---
ॐ पूर्व दिशायां श्री कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ रं दुताय विदमहे पवन-पुत्राय धीमहि तन्नो वीर प्रचोदयात।ॐ हरी-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ वं वं वं वं वं फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ पञ्च वादनाय पूर्वे कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ दक्षिण दिशायां श्री नरसिंह मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ व्रज-नाखाय तीक्ष्ण द्रष्टाय च धीमहि तन्नो नारसिंह प्रचोदयात।ॐ हरि-मार्केट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ फं फं फं फं फं हुं फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय दक्षिणे श्री नारसिंह-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ पश्चिम -दिशायां श्री गरुड़-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ वीनता सुताय विदमहे सुवर्ण-पक्षाय च धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात। ॐ हरि मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ खं खं खं खं खं हूँ फट् घे घे घे मारणाय स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय पश्चिमे श्री गरुड़ मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ उत्तर-दिशायां श्री वाराह -मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ नारायणाय विदमहे विष्णु-स्वरूपाय च धीमहि वराहः प्रचोदयात ।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ ठं ठं ठं ठं ठं हूँ फट् घे घे घे स्तम्भनाय स्वाहा।ॐ पञ्च वादनाय उत्तरे श्री वराह-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ उध्र्व दिशायां श्री अश्व-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः। ॐ बागीश्वराय विदमहे हयग्रीवराय च धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट्।ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ हूँ फट् घे घे घे आकर्षण- सकल सम्पत्कराय स्वाहा। ॐ पञ्च वादनाय उधर्वे श्री अश्व-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः ।
दिशान्तर्गत श्री पञ्च-मुख श्री हनुमन्त के प्रथक प्रथक मुख के मन्त्र पाठ----
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पूर्वे श्री कपि-मुखाय ॐ नमो श्री वीर-हनुमंते ॐ ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्रु विनाशाय सर्व शत्रु संघारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय दक्षिणे कराल वदन श्री नारसिंह -मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ हं हं हं हं हं सकल भूत-प्रेत-दमनाय ब्रह्म-हत्या समंध बाधा निवरणाय महा-बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पश्चिमे श्री गरुड़-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ मं मं मं मं मं महा रुद्राय सकल रोग-विष हरणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय उत्तरे श्री आदि वराहः-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ लं लं लं लं लं लक्ष्मण प्राण-दात्रे लंका-पुरी दाहनाय सकल संपत-कराय पुत्र-पौत्रादि वृद्धि कराय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय ऊध्र्व दिशे श्री अश्व मुखाय श्री नमो श्री वीर-हनुमंते आईएम रुं रुं रुं रुं रुं रूद्र मूर्तये वेद विद्या स्वरूपिणे सकल-लोक कारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ पूर्व दिशायां श्री कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ रं दुताय विदमहे पवन-पुत्राय धीमहि तन्नो वीर प्रचोदयात।ॐ हरी-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ वं वं वं वं वं फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ पञ्च वादनाय पूर्वे कपि मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ दक्षिण दिशायां श्री नरसिंह मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ व्रज-नाखाय तीक्ष्ण द्रष्टाय च धीमहि तन्नो नारसिंह प्रचोदयात।ॐ हरि-मार्केट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ फं फं फं फं फं हुं फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय दक्षिणे श्री नारसिंह-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ पश्चिम -दिशायां श्री गरुड़-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।ॐ वीनता सुताय विदमहे सुवर्ण-पक्षाय च धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात। ॐ हरि मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ खं खं खं खं खं हूँ फट् घे घे घे मारणाय स्वाहा।ॐ पञ्च वदनाय पश्चिमे श्री गरुड़ मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः।
ॐ उत्तर-दिशायां श्री वाराह -मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।ॐ नारायणाय विदमहे विष्णु-स्वरूपाय च धीमहि वराहः प्रचोदयात ।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् ।ॐ ठं ठं ठं ठं ठं हूँ फट् घे घे घे स्तम्भनाय स्वाहा।ॐ पञ्च वादनाय उत्तरे श्री वराह-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः।
ॐ उध्र्व दिशायां श्री अश्व-मुखाय श्री वीर हनुमंते नमः। ॐ बागीश्वराय विदमहे हयग्रीवराय च धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात।ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट्।ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ हूँ फट् घे घे घे आकर्षण- सकल सम्पत्कराय स्वाहा। ॐ पञ्च वादनाय उधर्वे श्री अश्व-मुखाय श्री वीर-हनुमंते नमः ।
दिशान्तर्गत श्री पञ्च-मुख श्री हनुमन्त के प्रथक प्रथक मुख के मन्त्र पाठ----
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पूर्वे श्री कपि-मुखाय ॐ नमो श्री वीर-हनुमंते ॐ ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्रु विनाशाय सर्व शत्रु संघारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय दक्षिणे कराल वदन श्री नारसिंह -मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ हं हं हं हं हं सकल भूत-प्रेत-दमनाय ब्रह्म-हत्या समंध बाधा निवरणाय महा-बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा-मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।ॐ नमो भगवते पञ्च वादनाय पश्चिमे श्री गरुड़-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ मं मं मं मं मं महा रुद्राय सकल रोग-विष हरणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय उत्तरे श्री आदि वराहः-मुखाय ॐ नमो श्री वीर हनुमंते ॐ लं लं लं लं लं लक्ष्मण प्राण-दात्रे लंका-पुरी दाहनाय सकल संपत-कराय पुत्र-पौत्रादि वृद्धि कराय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ हरि-मर्कट महा मर्कटाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते पञ्च वदनाय ऊध्र्व दिशे श्री अश्व मुखाय श्री नमो श्री वीर-हनुमंते आईएम रुं रुं रुं रुं रुं रूद्र मूर्तये वेद विद्या स्वरूपिणे सकल-लोक कारणाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
।। कवच माला मन्त्र पाठ ।।
ॐ नमो भगवते अंजेनाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते प्रबल पराक्रमाय आक्रान्ताय सकल दिग्मंडलाय शोभितान्याय धवलीकृताय जगत्तराय, व्रज देहाय,रुद्रावताराय, लंका-पुरी दाहनाय, उद्धिलंगकनाय,सेतु-बंधनाय,दश-कंठ-शिराक्रांताया,सिताआश्वासनाय,अनंत-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायकाय,महा-बलाय,वायु-पुत्राय,अंजनी-देवी गर्भ-सम्भूताय,श्री राम लक्ष्मणानंदकराया ,कपि-सैन्य प्रिय-कराया,सुग्रीव सहायकारण कार्य-साधकाय,पर्वतोत्पातनाय,कुमार-ब्रह्मचारिणे,गंभीर-शब्दोदयाय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व-दुष्ट-गृह निवर्णाय,सर्व-रोग ज्वरोच्चाटनाय, डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रं हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते महा बलाय ,सर्व -दोष निवर्णाय,सर्व-दुष्ट-गृह-रोगानुच्चाटनाय,सर्व-भूत-मंडलादि सर्व-दुष्ट मंडलोच्चाटनाय-उच्चाटनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा-,,बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर -हनुमंते सर्व -भूत ज्वर,सर्व-प्रेत-ज्वर, एकाहिक-ज्वर,द्वाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर,चातुर्थिक ज्वर,संतप्त-विषम ज्वर,गुप्त-ज्वर,ताप-ज्वर,शीत-ज्वर,माहेश्वरी-ज्वर,वैष्णवी ज्वरादि सर्व ज्वारान् छिंदि-छिंदि, भिन्दि- भिन्दि,यक्ष-राक्षसान भूत-प्रेत-वेताल-पिसाचन् उच्चाटोच्चाटय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः आहो-आहो असई-असई एहि-एहि ॐ ओहो ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते अंजेनाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते प्रबल पराक्रमाय आक्रान्ताय सकल दिग्मंडलाय शोभितान्याय धवलीकृताय जगत्तराय, व्रज देहाय,रुद्रावताराय, लंका-पुरी दाहनाय, उद्धिलंगकनाय,सेतु-बंधनाय,दश-कंठ-शिराक्रांताया,सिताआश्वासनाय,अनंत-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायकाय,महा-बलाय,वायु-पुत्राय,अंजनी-देवी गर्भ-सम्भूताय,श्री राम लक्ष्मणानंदकराया ,कपि-सैन्य प्रिय-कराया,सुग्रीव सहायकारण कार्य-साधकाय,पर्वतोत्पातनाय,कुमार-ब्रह्मचारिणे,गंभीर-शब्दोदयाय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व-दुष्ट-गृह निवर्णाय,सर्व-रोग ज्वरोच्चाटनाय, डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रं हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते महा बलाय ,सर्व -दोष निवर्णाय,सर्व-दुष्ट-गृह-रोगानुच्चाटनाय,सर्व-भूत-मंडलादि सर्व-दुष्ट मंडलोच्चाटनाय-उच्चाटनाय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा-,,बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर -हनुमंते सर्व -भूत ज्वर,सर्व-प्रेत-ज्वर, एकाहिक-ज्वर,द्वाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर,चातुर्थिक ज्वर,संतप्त-विषम ज्वर,गुप्त-ज्वर,ताप-ज्वर,शीत-ज्वर,माहेश्वरी-ज्वर,वैष्णवी ज्वरादि सर्व ज्वारान् छिंदि-छिंदि, भिन्दि- भिन्दि,यक्ष-राक्षसान भूत-प्रेत-वेताल-पिसाचन् उच्चाटोच्चाटय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः आहो-आहो असई-असई एहि-एहि ॐ ओहो ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते पवनात्मजाय डाकिनी-शाकिनी-लाकिनी-काकिनी-साकिनी-हाकिनी पर प्रभाव चूर्णय चूर्णय त्रोटय त्रोटय उच्चाटय-उच्चाटय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सिंह -शार्दुल व्याघ्र गण्ड भेरुण्ड पुरुषामृगणां आसानिर्वासिनो आक्रमण कुरु कुरु ,सर्व रोगान निवारय-निवारय ,हरय हरय,आक्रोशय-आक्रोशय, सर्व-शत्रुन मर्दय मर्दय उन्माद भयं छिन्दी-छिन्दी, भिन्दि-भिन्दि,विषादय-विषादय मारय मारय, शोषय शोषय ,मोहय,-मोहय,ज्वालय ज्वालय,प्रहराय-प्रहराय,मम सकल -रोगान छेदय-छेदय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सर्व-रोग दुस्ट-ग्राहान उच्चाटय-उच्चाटय पर बलान क्षोभ्य-क्षोभ्य सर्व-कार्याणि साधय साधय, श्रृंखला-बंधन मोक्षय मोक्षय ,काराग्रहादिभ्यः मोचय मोचय ,शिर-शूल,कर्ण-शूल,अक्षि-शूल,कुक्षी-शूल,पार्श्व,-शूलादि महा-रोगान निवारय-निवारय सर्व-शत्रु कुलं संघारय संघारय,नाग-पाशं काटय-काटय, निर्मूलय-निर्मूलय ॐ अनंत-वासुकि-तक्षक-कार्कोटकालिय-कुलिक-पदम्-महापदम-कुमुद-जलचर,रात्रिचर,दिवाचरादि सर्व-विषं निर्विष कुरु,सर्व रोगनिवारणं कुरु,निवारण कुरु,सर्व-वश्यं कुरु वश्यं कुरु,सर्व-दुष्ट-जन मुख-स्तम्भनं कुरु स्तम्भनं कुरु,सर्वराज-भयं, चोर-भयं, अग्नि-भयं प्रशमनं कुरु,प्रशमनं कुरु,सर्व पर-यंत्र,पर-मन्त्र,पर-तंत्र,पर-विद्या प्राकट्य-प्राकट्य, छेदय-छेदय,संत्रास्य-संत्रास्य ,मम सर्व-विद्या प्रकटय-प्रकटय ,पोष्य-पोष्य सर्वारिष्ट शमय-शमय मम सर्व-शत्रुन प्रहारय-प्रहराय मर्दय-मर्दय,संघारय-संघारय, तापय-तापय,सर्व-रोग पिशाच-बाधान् निवारय-निवारय विष-बाधा निवारय निवारय,असाध्य-कार्य साध्य-साध्य ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सिंह -शार्दुल व्याघ्र गण्ड भेरुण्ड पुरुषामृगणां आसानिर्वासिनो आक्रमण कुरु कुरु ,सर्व रोगान निवारय-निवारय ,हरय हरय,आक्रोशय-आक्रोशय, सर्व-शत्रुन मर्दय मर्दय उन्माद भयं छिन्दी-छिन्दी, भिन्दि-भिन्दि,विषादय-विषादय मारय मारय, शोषय शोषय ,मोहय,-मोहय,ज्वालय ज्वालय,प्रहराय-प्रहराय,मम सकल -रोगान छेदय-छेदय ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते सर्व-रोग दुस्ट-ग्राहान उच्चाटय-उच्चाटय पर बलान क्षोभ्य-क्षोभ्य सर्व-कार्याणि साधय साधय, श्रृंखला-बंधन मोक्षय मोक्षय ,काराग्रहादिभ्यः मोचय मोचय ,शिर-शूल,कर्ण-शूल,अक्षि-शूल,कुक्षी-शूल,पार्श्व,-शूलादि महा-रोगान निवारय-निवारय सर्व-शत्रु कुलं संघारय संघारय,नाग-पाशं काटय-काटय, निर्मूलय-निर्मूलय ॐ अनंत-वासुकि-तक्षक-कार्कोटकालिय-कुलिक-पदम्-महापदम-कुमुद-जलचर,रात्रिचर,दिवाचरादि सर्व-विषं निर्विष कुरु,सर्व रोगनिवारणं कुरु,निवारण कुरु,सर्व-वश्यं कुरु वश्यं कुरु,सर्व-दुष्ट-जन मुख-स्तम्भनं कुरु स्तम्भनं कुरु,सर्वराज-भयं, चोर-भयं, अग्नि-भयं प्रशमनं कुरु,प्रशमनं कुरु,सर्व पर-यंत्र,पर-मन्त्र,पर-तंत्र,पर-विद्या प्राकट्य-प्राकट्य, छेदय-छेदय,संत्रास्य-संत्रास्य ,मम सर्व-विद्या प्रकटय-प्रकटय ,पोष्य-पोष्य सर्वारिष्ट शमय-शमय मम सर्व-शत्रुन प्रहारय-प्रहराय मर्दय-मर्दय,संघारय-संघारय, तापय-तापय,सर्व-रोग पिशाच-बाधान् निवारय-निवारय विष-बाधा निवारय निवारय,असाध्य-कार्य साध्य-साध्य ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा
ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महा बलाय हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ नमो भगवते श्री वीर-हनुमंते अभीष्ठ वर पददायकाय मम सर्वाभीष्ट सर्व -संपदरक्षणाय ॐ जं जं जं जं जं जगज्जीवनाय हूँ फट् ॐ ह्रीं श्रीं ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रैं ह्रौं ह्रः हूँ फट् घे घे घे स्वाहा।ॐ श्री कपि-मुखाय नमः।ॐ श्री नारसिंहमुखाय नमः ।ॐ श्री गरुड़ मुखाय नमः। ॐ श्री वराह मुखाय नमः।ॐ श्री अश्व मुखाय नमः।ॐ पञ्च मुख श्री वीर हनुमंते नमः।
फल श्रुति।
एक बार नित्य पाठ से सर्व शत्रु निवारण, दो बार पाठ से सर्व शत्रु वशीकरण, तीन बार पाठ से सर्व सम्पति, चार बार पाठ से सर्व रोग निवारण पञ्च बार पाठ से पुत्र-पौत्र प्राप्ति, छे बार पाठ से सर्व-देव वशीकरण,सात बार नित्य पाठ से सर्व शौभाग्य प्राप्ति,आठ बार नित्य पाठ से ईस्ट सिद्धि, नो बार नित्य पाठ से सर्व राज्य भोग और दस बार नित्य पाठ से त्रैलोक्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
जय श्री राम ।
आचार्य अनिल वर्मा
ज्योतिष ,वास्तु व् मन्त्र तंत्र मर्मज्ञ
981171536, 8826098989
www.aryaastrologer.com
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एक बार नित्य पाठ से सर्व शत्रु निवारण, दो बार पाठ से सर्व शत्रु वशीकरण, तीन बार पाठ से सर्व सम्पति, चार बार पाठ से सर्व रोग निवारण पञ्च बार पाठ से पुत्र-पौत्र प्राप्ति, छे बार पाठ से सर्व-देव वशीकरण,सात बार नित्य पाठ से सर्व शौभाग्य प्राप्ति,आठ बार नित्य पाठ से ईस्ट सिद्धि, नो बार नित्य पाठ से सर्व राज्य भोग और दस बार नित्य पाठ से त्रैलोक्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
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