केतु के कारक



केतु के कारक 
केतु की आँखे लाल उग्र है ,वाणी मैं विष है ,सदेव धूम्रपान करता है , शरीर पर घाव के निशान , शरीर से कृष स्वाभाव से क्रूर और अत्याचार करने वाला है ,इसको शिखि ,धवज ,धूम्रा ,मृत्यु कहते है ,
जहाँ सांप रहते हो ,दीपक के कीड़ों द्वारा बनाया गया स्थान ,छिद्र जहा अँधेरा हो, पश्चिम दक्षिण (नै कृत्य ) दिशा ,केतु का कुल्थी , कला सफ़ेद तिल, कला सफ़ेद रंग, सलेटी कपडा, पर्वत , वायु जनित रोग ,
केतु की विचित्र धातु अर्थात पंचधातु ,रत्न लहसुनिया,गुप्त विध्या तंत्र ,मंत्र ,वैराग्य का कारक है ,केतु त्रिकोण और ३,६,९,११ भावो मैं बलवान होता है। 
दान-रांगा, पंचधातु, काले सफ़ेद तिल, सात अनाज, सलेटी कपडा ,तेल , नारियल ,लहसुनिया ,गुड़
तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले, 
रोज कौओं को रोटी खिलाएं. 
यदि सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोटी खिलाने से घर में बड़ो के आशीर्वाद लेने से और उनकी सेवा करने से सन्तान सुख की प्राप्ति होगी .
गौ ग्रास. रोज भोजन करते समय परोसी गयी थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को एवं एक हिस्सा कौए को खिलाएं आप के घर में हमेसा बरक्कत रहेगी,
भगवान गणेशजी की पूजा करें। गणेश के द्वादश नाम स्तोत्र का पाठ करें। केतु के मूल मंत्र का रात्रि में 40 दिन में 18,000 बार जप करें।
वैदिक मंत्र-
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथाः॥
बीज मंत्र- जप-संख्या 17000
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्‌।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्‌॥
बीज मंत्र-जप-संख्या 17000
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
सामान्य मंत्र-जप-संख्या 17000
ॐ कें केतवे नमः।